Vivek Agrawal Books

Books: बार-बंदी : बर्बाद बारों की बेनूर बारात

किताब : बार-बंदी : बर्बाद बारों की बेनूर बारात
लेखक – विवेक अग्रवाल
पृष्ठ – 274 / अध्याय – 17

हम पहुंच रहे हैं इन बारबालाओं के अनदेखे और अनसुने संसार के अंदर, बजरिए कलम।

तिल-तिल मरती इच्छाओं और हर पल जीवन जीने की प्रबल आकांक्षा के चलते उनका संघर्ष किसी भी नारी से बड़ा हो जाता है।

1992 से आज तक इन बारबालाओं के साथ मिल कर विवेक अग्रवाल ने हजारों समाचार जुटाए हैं।

वे कहते हैं कि उनके बीच पैठना आसान है, उनका विश्वास जीतना बेहद मुश्किल। यह और बात है कि आप उन्हें धन – बाहुबल – संपर्क जाल का थोड़ा सा चमत्कार दिखाएं, वे आपके साथ हो लेंगी। वे लेकिन तब तक ही आपके साथ रहेंगीं, जब तक कि आपसे फायदा है। उनका भरोसा हासिल करना बड़ा जटिल होता है। इन डांस बारों और बारबालाओं के अंधियाले हिस्से कुरेद-कुरेद कर सामने लाने की बरसों की मेहतन का नतीजा है – बार बंदी।

महाराष्ट्र में बार-बंदी का सिलसिला क्या रहा? बारबालाएं कहां गईं? कानूनी लड़ाई कहां तक पहुंची?

2019 में डांस बार के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने पर भी कहानी खत्म नहीं होती। एक नया अध्याय शुरू हुआ।

‘बार बंदी’ में बारबालाओं के हर रंग, हर रूप, हर खेल की पूरी पड़ताल है।

सफल-असफल प्रेम कहानियां, अच्छे-बुरे पुलिस वालों की दास्तां, राजनेताओं और छद्म समाजसेवकों की कहानियां है।

तहखानों में छमछम और बांग्लादेशी बारबालाओं की तहकीकात है।

बार और बारबालाओं पर राजनीति क्या-कैसी रही, यह एक किताब में समाहित करना संभव नहीं, सो दूसरी किताब ‘बार बंदगी’ भी आ रही है।

द इंडिया इंक से प्रकाशित।

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