Articles

कोरोना से बचने के लिए कलेक्टर का फरमान

राजस्थान में दौसा जिले के कलेक्टर ने फरमान जारी किया है कि शादी समारोह में 45 वर्ष से ज्यादा उम्र के जो लोग वैक्सीन का पहला डोज लगवाए हुए नहीं होंगे, उन्हें समारोह में शामिल होने की अनुमति नहीं होगी। कलेक्टर के इस फरमान से पूरी कहानी समझ में आती है। यह देश अब कलेक्टरों के हवाले है और उनके जरिए धीरे-धीरे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के नागरिक गुलामी की तरफ खिसक रहे हैं। पता नहीं किस साजिश के तहत कोरोना को फैलने दिया गया और अब जबरन वैक्सीन लगवाने के लिए कहा जा रहा है। लोगों को वैक्सीन लगवाने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं वैक्सीन लगवाकर टीवी पर उसका सीधा प्रसारण करवाया था।

इस समय कोरोना फैल रहा है और टीकाकरण उत्सव चल रहा है। यह जनता के लिए मुसीबत है और सरकार के लिए उत्सव, क्योंकि सभी जानते हैं कि इसमें बहुत बड़ी धनराशि इधर-उधर हो रही है। कोरोना संक्रमितों के आंकड़े लगातार जारी हो रहे हैं, जिससे लोग डर रहे हैं। मोदी सरकार लोगों को डराकर रखने की नीति पर चल रही है और राज्यों के मुख्यमंत्री भी उनसे प्रेरणा ले रहे हैं। केंद्र की भाजपा सरकार और प्रदेशों की भाजपा सहित विभिन्न पार्टियों की सरकारों में जनता को कोरोना से बचाने की जबर्दस्त होड़ चल रही है। मरने वालों की संख्या लगातार जारी हो रही है। देश में जो मर रहे हैं, वे सिर्फ कोरोना से मर रहे हैं। बाकी सभी बीमारियां गायब हैं।

दौसा के कलेक्टर भारतीय प्रशासनिक सेवा से निकले हुए हैं, जिन्हें सिर्फ और सिर्फ प्रशासन करने की ट्रेनिंग मिली है। उन्हें अपने जिले की जनता को कोरोना से बचाना है। वह जितना बेहतर कार्य करेंगे, उतनी बेहतर उनकी कांफिडेंशल रिपोर्ट बनेगी। मुख्यमंत्री भी कलेक्टर पर नजर रखते हैं कि कौन कैसा काम कर रहा है। अपने जिले की जनता को किस तरह कसके रखता है। उसी हिसाब से कलेक्टर के भविष्य की रूपरेखा बनती है। शायद यही सोचकर कलेक्टर ने कहा कि शादी में वे ही शामिल होंगे, जिन्होंने पहला टीका लगवा लिया हो। क्या कलेक्टर के घर में शादी हो रही है? अगर दुल्हन के माता-पिता ने या दूल्हे के माता-पिता या उनके मामा, चाचा आदि सगे-संबंधियों ने पहला टीका नहीं लगवाया हो तो कलेक्टर क्या उन्हें जबरन समारोह से बाहर निकलवाएंगे?

नरेन्द्र मोदी ने लोगों को कई तरह के झांसे देते हुए प्रधानमंत्री पद पर अधिकार किया है। उसके बाद उन्होंने देश के सभी करीब साढ़े छह सौ जिलों के कलेक्टरों से अपने तार जोड़ लिए हैं। देश को कोरोना से बचाने के लिए उन्होंने अंग्रेजों का 1897 का महामारी कानून लागू किया है, जिसके तहत कलेक्टरों के पास लोगों को महामारी से बचाने के उपाय करने के अधिकार हैं। दौसा के कलेक्टर के फरमान का यह मतलब है कि जो लोग वैक्सीन लगवाकर शादी में नहीं जाएंगे, वे महामारी कानून का उल्लंघन करेंगे।

महामारी कैसी? कोविड-19 की दूसरी लहर। प्रशासन के स्तर पर टेस्ट हो रहे हैं और उसके आधार पर लोग पॉजिटिव-निगेटिव घोषित होते हैं। जो ज्यादा पॉजिटिव होता है, उसे क्वारंटीन किया जाता है या अस्पताल में भर्ती किया जाता है। इस पॉजिटिव-निगेटिव के आधार पर लोग कोरोना मरीज घोषित होकर अस्पतालों में भर्ती हो रहे हैं और बड़ी संख्या में इलाज के दौरान मर रहे हैं। उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के श्मशानों में सैकड़ों की संख्या में लाशें पहुंच रही हैं। मरने वालों की संख्या को छिपाया जा रहा है। उत्तर प्रदेश के एक शहर में श्मशान को ढंकने के लिए ऊंची दीवार बनवा दी गई है, लेकिन चिताओं से आसमान में उठते धुएं को रोकने का उपाय सरकार के पास नहीं है।

गनीमत है कि शत-प्रतिशत लोगों के टेस्ट नहीं हो रहे हैं, नहीं तो पता नहीं क्या हालत होती। प्रतिदिन संक्रमितों की संख्या लाखों में पहुंच रही है, जो और बढ़ेगी। लोग अस्पतालों में ज्यादा मर रहे हैं, घरों में कम। कई मामलों में साधारण सर्दी-जुकाम को कोराना संक्रमण समझकर डॉक्टर इलाज करते हैं और मरीज की हालत और बिगड़ जाती है। उसके बात यह कहा जाता है कि मरीज ऑक्सीजन की कमी से मर गया। अगर समय से रेमडेसिविर का इंजेक्शन मिल जाता तो शायद बच जाता। यह कोरोना वायरस की असली तस्वीर है। पिछले साल ट्रेलर था। इस साल फिल्म शुरू हो गई है। अचानक लोगों ने और किसी बीमारी से मरना बंद कर दिया है। सिर्फ कोरोना से मरने वालों की संख्या लाखों में पहुंच रही है।

दौसा के कलेक्टर पर महती जिम्मेदारी है और वह अपने कर्तव्य का पालन कर रहे हैं। ड्यूटी कर रहे हैं। अंग्रेज सरकार ने जनता को हांकने के लिए जिन चरवाहों को तैनात किया था, उसकी अगली कतार में कलेक्टर शामिल होते हैं। जो जनता को जितनी अच्छी तरह हांकता है, वह तरक्की पाता है। कलेक्टर के वैक्सीन संबंधी फरमान को लोग साधारण समझ सकते हैं, लेकिन जिस तरह एक चावल से पता चल जाता है कि चावल पके या नहीं, उसी तरह इस फरमान से समझा जा सकता है कि मोदी के नेतृत्व में चल रही देश की लोकतांत्रिक सरकार कैसी चल रही है।

लगता है कलेक्टरों की मनमानी पर अंकुश लगाने की स्थिति में कोई नेता नहीं है, चाहे वह सांसद हो, विधायक हो, मंत्री हो या मुख्यमंत्री। कोरोना के नाम पर कलेक्टरों के जरिए देश में एक ऐसा वातावरण बना दिया गया है, जिसमें जनता का दम घुटना लाजिमी है। लोगों ने मास्क लगा लिए, सेनिटाइजर से हाथ धोना शुरू कर दिए, सोशल डिस्टेंसिंग मान ली। अब वैक्सीन लगवाने की जबरदस्ती है। टीका लगवाने से बीमारी रुकेगी, यह सोचकर टीका लगवाना बुरी बात नहीं है। लगवाना चाहिए। लेकिन कोरोना के नाम पर पिछले एक-डेढ़ साल से जो घटनाचक्र घूम रहा है, उसके आधार पर अभी तक प्रमाणित नहीं हुआ है कि तीन-चार ब्रांड की जो वैक्सीन आ गई हैं, वह शर्तिया तौर पर कोरोना वायरस से बचा लेगी।

पिछले साल कोविड-19 का कहर नहीं फैला था, उसके पहले ही लॉकडाऊन, ताली-थाली, दीपक, पुष्पवर्षा आदि के जरिए कोरोना का माहौल बना दिया गया था। चार-पांच महीनों में अर्थव्यवस्था पर भयंकर चोट होने के बाद जब रिकवरी होने लगी तो मार्च के अंतिम हफ्ते से फिर हाहाकार शुरू। कहा जा रहा है कि कोविड-19 के ज्यादा खतरनाक डबल म्यूटेंट वायरस से यह हालत हो रही है, इसलिए बचने के लिए वैक्सीन लगवाना जरूरी है। लोग लगवा रहे हैं। लेकिन दौसा कलेक्टर के फरमान से लगता है कि सरकार लोगों को जबरन टीका लगवाने पर विवश कर रही है।

यह कैसी स्वतंत्रता और कैसा लोकतंत्र? क्या कोई सोचने वाला है? कोई भी कलेक्टर चिकित्सा विशेषज्ञ नहीं होता है। उसकी जिम्मेदारी होती है कि जिले का प्रशासन ठीक से चले। स्कूल, अस्पताल, अदालत आदि सुचारु रूप से चलते रहें। व्यापारियों को कोई तकलीफ न हो। जिले में शांति बनी रहे, वगैरह-वगैरह। लोगों को बीमारी से बचाने की योग्यता कलेक्टर के पास नहीं होती है। लेकिन लगता है कि इस समय डॉक्टरों की भी कोई नहीं सुन रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में न टेस्टिंग ज्यादा है और न ही संक्रमितों व मरने वालों की संख्या बढ़ रही है। जो भी हाहाकार मचा हुआ है, वह शहरों में मचा हुआ है। मुंबई, दिल्ली, बनारस, गाजियाबाद, लखनऊ, अहमदाबाद, बेंगलुरु, भोपाल, इंदौर आदि इत्यादि।

अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी कुछ टेस्टिंग शुरू हो गई है। दौसा में भी हो रही है और वहां से भी प्रतिदिन तीन अंकों में संक्रमितों के आंकड़े आ रहे हैं। कलेक्टर नहीं चाहते कि यह संख्या बढ़े, इसी लिए उन्होंने शादी में शामिल होने के लिए वैक्सीन लगवाने का फरमान जारी कर दिया है। शायद उन्हें लगता है कि जिले में अगर कोरोना फैल गया, तो उसके लिए कलेक्टर को ही जिम्मेदार माना जाएगा। ठीक है, लोग कोरोना से बचने के लिए दो टीके लगवा लेंगे, लेकिन डबल म्यूटेंट के बाद अब ट्रिपल म्यूटेंट वायरस फैलने की खबरें आनी शुरू हो गई है। क्या अगले साल मार्च में ट्रिपल म्यूटेंट वायरस हाहाकार मचाएगा और फिर उसके लिए अलग वैक्सीन बनेगी?

Leave a Reply

Web Design BangladeshBangladesh Online Market