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देश के साथ बेईमानी तो नहीं कर रहे प्रधानमंत्री मोदी?

खबर मिली है कि कोरोना नामक महामारी से निबटने के लिए भारत सरकार उर्फ मोदी सरकार ने विश्व बैंक से एक अरब डॉलर का कर्ज लिया है। यह राशि रुपए में 75,752 करोड़ से अधिक होती है। किसी भी बड़े अखबार ने यह खबर छापने में रुचि नहीं ली और न ही किसी समाचार चैनल ने इसका प्रसारण करना उचित समझा। हकीकत यह है कि जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोरोना को वैश्विक महामारी घोषित किया था, तब मोदी सरकार ने इसके आधार पर विश्व बैंक से कर्ज लेने की तैयारी कर ली थी। विश्व बैंक जब कर्ज देती है तो कुछ शर्तें भी लगाती हैं। महामारी से निबटने के लिए मुख्य शर्तें हैं, पूरे देश में तालाबंदी, हर नागरिक के लिए मास्क लगाना अनिवार्य और सोशल डिस्टेंसिंग।

मोदी सरकार ने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लगाया और उसी दिन शाम को जनता से ताली-थाली बजवाकर जबर्दस्त मीडिया कवरेज के माध्यम से भारत में कोरोना के खिलाफ माहौल तैयार किया। इसके साथ ही विश्व बैंक से कर्ज लेने के लिए आवेदन कर दिया। डब्ल्यूएचओ की सिफारिश पर विश्व बैंक ने 29 मार्च को एक बिलियन डॉलर के कर्ज की मंजूरी दे दी। आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इससे पहले 24 मार्च को ही पूरे देश में 21 दिन का लॉकडाउन घोषित कर चुके थे। लॉकडाउन की शर्तें थी- लोग जहां हैं वहीं रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें और अनिवार्य रूप से मास्क लगाएं।

कर्ज की मंजूरी मिलने के बाद मोदी ने 29 मार्च की रात 9 बजे लोगों से बिजली बंद कर दीपक जलाने की अपील की। इस अपील पर दीवाली जैसा माहौल बना। इसका भी जबर्दस्त मीडिया कवरेज हुआ। जाहिर है 75,752 करोड़ रुपए मिलना मोदी सरकार के लिए दीवाली की तरह ही था। 2 अप्रैल को विश्व बैंक से कर्ज की राशि मिल गई। इस कर्ज के लिए प्रमुख शर्तें हैं, 2 महीने पूरे देश में लॉकडाउन, चार महीने सोशल डिस्टेंसिंग और हर नागरिक के लिए चेहरे पर मास्क लगाना अनिवार्य। 

गौरतलब है कि वैश्विक महामारी घोषित होने पर अन्य विकासशील देशों ने भी इन्हीं शर्तों पर विश्व बैंक से कर्ज लिया होगा। यही कारण है कि कई छोटे देशों ने अपने यहां एकसाथ तीन महीने का लॉकडाउन घोषित कर दिया। भारत छोटा देश नहीं है, इसलिए यहां किस्तों में लॉकडाउन बनाए रखने की योजना बनी। पहले 21 दिन, फिर 19 दिन, फिर दो हफ्ते, इसके बाद दो हफ्ते और लॉकडाउन जारी रहने की घोषणा होगी। भारत में यह लॉकडाउन 30 मई तक रहेगा। इसके बाद चार महीने सोशल डिस्टेंसिंग। अर्थात सितंबर तक लोग ठीक से काम-धंधा, व्यापार, रोजगार नहीं कर पाएंगे और मास्क लगाना जरूरी होगा।

विश्व बैंक की शर्तें ही प्रमुख कारण है, जिसके चलते भारत सहित तमाम विकासशील देशों में इस समय लॉकडाउन के साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना और मास्क लगाना अनिवार्य है। यह भी सत्य है कि लॉकडाउन से, सोशल डिस्टेंसिंग से और मास्क लगाने से किसी भी तरह की महामारी दूर नहीं होती है। यह सिर्फ एहतियातन उपाय के रूप में विश्व बैंक की शर्तें हैं, जिनका पालन करना कर्ज लेने के लिए अनिवार्य है।

मोदी सरकार ने यह प्रचार रही है कि वह जो कुछ कर रही है, कोरोना नामक महामारी से निबटने के लिए कर रही है। विश्व बैंक से कर्ज लेने के अलावा भारत के उद्योगपतियों ने भी सरकार को पीएम केयर फंड में अच्छी खासी राशि अनुदान के रूप में दे दी है। इस तरह मोदी सरकार ने कोरोना के नाम पर एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा धनराशि जुटा ली है, जिसका उपयोग कोरोना से निबटने में नहीं हो रहा है। स्वास्थ्य सुविधाएं सुधारने के लिए कितना खर्च हो रहा है, इसकी जानकारी अब तक सामने नहीं आई है। कोरोना से निबटने के लिए जो भी खर्च हो रहा है, वह राज्य सरकारें कर रही हैं।

वियतनाम, इंडोनेशिया, कोरिया, श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश सहित कई विकासशील देश हैं, जो भारत की तुलना में बहुत छोटे हैं। भारत बहुत बड़ा और छोटे किसानों, मजदूरों, व्यापारियों और गरीबों का देश है। यहां के लोग सरकार पर भरोसा रखते हैं और जो भी फरमान जारी होते हैं, मान लेते हैं। थोड़े बहुत शिक्षित, पढ़े-लिखे, सोच-विचार करने वाले लोग इन फरमानों पर सवाल उठाते हैं, लेकिन-किंतु-परंतु करते हैं तो उनकी आवाज बंद रखने के लिए सरकार के पास कई उपाय हैं, जिनमें पुलिस का बल प्रयोग प्रमुख है। मास्क नहीं लगाने वालों की पिटाई-कुटाई, गिरफ्तारी आदि इसका मुख्य प्रमाण है।

अब विश्व बैंक की शर्तों का पालन करना है, इसलिए काम-धंधा पहले की तरह शुरू करना संभव नहीं है। यह स्थिति कम से कम सितंबर तक बनाए रखना है। इसी लिए लॉकडाउन का डेढ़ महीना गुजर जाने बाद विभिन्न राज्यों में जहां-तहां फंसे लोगों को उनके गांव-घर पहुंचाने के इंतजाम किए जा रहे हैं। इस देश में करीब 22 करोड़ मजदूर हैं, जिनके परिवार का जीविकोपार्जन दूसरों के लिए काम करने से होता है। इसमें भी असंगठित क्षेत्र के मजदूर सबसे ज्यादा हैं। मोदी सरकार की नीतियों के कारण ये लोग अब भुखमरी की कगार पर पहुंचने वाले हैं। करोड़ों छोटे व्यापारी हैं। उनकी आजीविका भी स्थगित है। ये लोग भी परेशान होंगे। किसानों की चिंता किसी को नहीं है।

मोदी सरकार को यह साबित करना है कि वह वैश्विक मानदंडों का पालन कर रही है। इसके चक्कर में वह अपने ही देश के आम लोगों के जीवन की चिंता नहीं कर रही है। क्या हम यह मान लें कि आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के लिए अब तक के सबसे खतरनाक प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने एक बिलियन डॉलर के लिए करोड़ों लोगों की जिंदगी को चार-पांच महीने गिरवी रख दिया है?

ऋषिकेश राजोरिया

लेखक देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। देश, समाज, नागरिकों, व्यवस्था के प्रति चिंतन और चिंता, उनकी लेखनी में सदा परिलक्षित होती है।

(लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। इससे इंडिया क्राईम के संपादक या प्रबंधन का सहमत होना आवश्यक नहीं है – संपादक)

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