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बाजार में नोट नोटबंदी के पहले से डेढ़ गुना, फिर भी अर्थव्यवस्था का बंटाढार

नोटबंदी से पहले देश में करीब 17 लाख करोड़ रुपए की मुद्रा प्रचलन में थी। 8 नवंबर 2016 की मनहूस रात नोटबंदी हुई थी। उसके बाद देश की असंगठित अर्थ व्यवस्था को पलीता लगाने का काम हुआ। अगले साल 2017 में 13.35 लाख करोड़ रुपए की मुद्रा प्रचलन में रही। उसके बाद तेजी से नए नोट छपे। मार्च, 2021 के आंकड़ों के मुताबिक इस समय देश में 28 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की मुद्रा प्रचलन में है। मतलब यह कि नोटबंदी के चार साल बाद देश में चल रहे दस, बीस, पचास, सौ, दो सौ, पांच सौ और दो हजार रुपए के नोटों की संख्या 28 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा हो गई है।

नोटबंदी से पहले देशवासी 17 लाख करोड़ रुपए के नोट प्रचलन में होने के बावजूद आर्थिक रूप से फलफूल रहे थे। देश का विकास भी हो रहा था। रेलें, बसें, विमान सरकार की जिम्मेदारी पर जनता की सहूलियत के लिए चल रहे थे। नोटबंदी के बाद करोड़ों लोगों के अरमान ध्वस्त हो गए। गरीबों के लिए मोदी सरकार पूरी तरह बेरहम हो गई। नोटबंदी के बाद से ही अर्थव्यवस्था का बैंड बजा हुआ है और 28 लाख करोड़ रुपए के नोट बाजार में आ जाने के बाद भी गरीबों को राहत मिलने के आसार नहीं है। इसका क्या अर्थ है?

नोटबंदी के बाद ये जो नए नोट छपे हैं, उनका उपयोग निश्चित तौर पर चुनाव जीतने के लिए हो रहा है। भारतीय मुद्रा तेजी से काले धन में तब्दील होकर बांटने में खर्च हो रही है। रिजर्व बैंक कठपुतली के रूप में काम कर रहा है। मोदी सरकार के पास कोई ठीकठाक आर्थिक सलाहकार भी नहीं है। कोई समझदार अर्थशास्त्री सरकार का आर्थिक सलाहकार बनने के लिए भी तैयार नहीं है। ऐसे में भारतीय मुद्रा का उपयोग सरकार में बने रहने के लिए किस तरह किया जा रहा है, समझा जा सकता है।

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हुए। चुनाव जीतने के लिए भाजपा की तरफ से बहुत खर्च हुआ, लेकिन वह सरकार नहीं बना पाई। बंगाल से कई गुना ज्यादा खर्च उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जीतने के लिए हो रहा है। इस समय भाजपा के पास चुनाव जीतने के लिए नोटों के अलावा और कोई ताकत नहीं है। वह जो भी कुछ धूम धाम कर रही है, वह सिर्फ पैसे के दम पर है। इतनी गाडि़यां, महंगे आयोजन, हेलीकॉप्टर वगैरह-वगैरह सबकुछ फोकट में बिलकुल नहीं होता है।

उप्र में पंचायत चुनाव के बाद जिला प्रमुखों के चुनाव में इन्हीं करेंसी नोटों का उपयोग हुआ, जो प्रचलित हैं। तेलंगाना के हुजूराबाद विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में भाजपा और तेलंगाना राष्ट्र समिति के बीच मतदाताओं में नोट बांटने की होड़ लगी हुई थी। वे नोट भी प्रचलित भारतीय मुद्रा में ही शामिल हैं। प्रधानमंत्री मोदी भी बताते रहते हैं कि किसानों के खाते में 2-2 हजार रुपए जमा हो गए हैं। अब आने वाले समय में रुपए का ही खेल चलने वाला है।

मोदी सरकार बहुत कर्ज ले रही है और सरकारी संपत्तियां बेच रही है। उसके पास सरकार बनाने, चलाने और राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने के अलावा और कोई काम नहीं है। मोदी के पास सिर्फ बोलवचन हैं। देश की भलाई की कोई योजना उनके पास नहीं है। उन्होंने पुराने नोट बंद करवा दिए। जितने नोट बंद हुए, उससे डेढ़ गुना ज्यादा चलन में आ गए, लेकिन देश की आर्थिक व्यवस्था कहां से कहां पहुंच गई?

आगे चलकर समस्त कारोबार पर लालची कॉर्पोरेट ताकतों का कब्जा होगा। लोगों के हाथ से नोट निकलकर कॉर्पोरेट कंपनियों के पास जाएंगे। मोदी सरकार और नोट छापेगी। महंगाई बढ़ेगी। सिलसिला जारी रहेगा। फिर नोट छपेंगे। फिर महंगाई बढ़ेगी…… तब भारत की अर्थ व्यवस्था किस स्थिति में होगी, जहां गरीबों की संख्या सौ करोड़ है, और कोई रोजगार नहीं है… सोचकर ही कंपकंपी आती है।

ऋषिकेश राजोरिया

लेखक देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। देश, समाज, नागरिकों, व्यवस्था के प्रति चिंतन और चिंता, उनकी लेखनी में सदा परिलक्षित होती है।

(लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। इससे इंडिया क्राईम के संपादक या प्रबंधन का सहमत होना आवश्यक नहीं है – संपादक)

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