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देश के संघीय ढांचे में दरारें पड़ने के आसार

कोरोना के कारण चालीस दिन का लॉकडाउन समाप्त होने के बाद अब सरकार को ख्याल आया है कि विभिन्न राज्यों में फंसे अन्य राज्यों के प्रवासियों मजदूरों को उनके घर भेजा जाए। इससे पहले तक मोदी सरकार कोरोना की चेन तोड़ने की बात कर रही थी। चालीस दिन के जोरदार लॉकडाउन के बाद कोरोना की चेन तो नहीं टूटी, लेकिन जनता का भरोसा मोदी सरकार से अवश्य टूटने लगा है। आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विकसित पश्चिमी देशों में अपने पराक्रम की ध्वजा फहराने के चक्कर में यह भूल गए कि भारत किसानों, मजदूरों और गरीबों का देश है।

यहां के बहुत से लोग रोजी-रोटी के लिए अपने घर गांव छोड़कर अन्य राज्यों में रोजगार करने के लिए जाते हैं। भारत यूरोपीय देशों जैसा नहीं है। यह 28 राज्यों और नौ केंद्र शासित प्रदेशों में फैला हुआ है, जहां 139 करोड़ की आबादी गुजर-बसर करती है। यूरोप के कई देशों को मिला दिया जाए तो भी वे क्षेत्रफल और जनसंख्या के हिसाब से भारत की तुलना में छोटे ही होंगे। भारत एक गणराज्य है, जहां हर प्रदेश की अलग राज्य सरकार है और वह केंद्र सरकार से तालमेल बनाकर प्रदेश को चलाती है।

मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद यह समझ लिया है कि पूरा देश उनके अकेले के दम पर चल रहा है और हर राज्य को केंद्र के आदेश का पालन करना चाहिए। वह पूरे देश को झकझोर देने वाले फैसले करते समय किसी से सलाह मशविरा नहीं करते हैं। वह अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों से भी सलाह-मशविरा करते होंगे, इसमें संदेह है। कम से कम नोटबंदी और लॉकडाउन जैसे फैसले उन्होंने अपनी मर्जी से ही लिए। इसके बाद देश को जो नुकसान हुआ, उसका ठीकरा उन्होंने राज्य सरकारों पर फोड़ा। कोरोना संकट से निबटने के मामले में भी ऐसा ही हो रहा है।

मान लेते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी अब तक के सबसे बुद्धिमान, सबसे समझदार, सबसे ज्ञानी और अकेले देशभक्त नेता हैं। लेकिन देश में जो स्थिति बन रही है, उससे यही लगता है वह अब तक के सबसे असफल प्रधानमंत्री हैं, जो देश को ठीक से नहीं संभाल सकते। उनके पास गुजरात में शासन करने का अनुभव है, जहां उन्होंने सांप्रदायिक उन्माद के आधार पर हिंदुओं के बीच लोकप्रियता अर्जित करने का प्रयास किया और सफल रहे। गुजरात के विकास (?) का उन्होंने इतना प्रचार किया कि उसके आधार पर वह देश के प्रधानमंत्री बन गए।

प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने क्या किया? आपसी सहमति से शासन करने की परंपरा समाप्त कर दी। अंग्रेज सरकार के बनाए कानूनों का उन्होंने अपने देशवासियों को दबाकर रखने में इस्तेमाल किया। देश की अर्थ व्यवस्था, शिक्षा व्यवस्था, न्याय व्यवस्था, कानून-व्यवस्था, गणतांत्रिक व्यवस्था, ऐसा कोई कोना नहीं छोड़ा, जहां उन्होंने अपनी मनमानी नहीं की हो। उन्होंने छोटे अखबारों का छपना बंद करवा दिया। बड़े अखबारों को आर्थिक कानूनों के चाबुक से इस तरह दबाया कि वे मोदी के खिलाफ कुछ नहीं छाप सकते। इलेक्ट्रानिक मीडिया को इस तरह नियंत्रण में लिया कि आज हर समाचार चैनल पर मोदी का गुणगान करने वाले बैठे हैं। 

मोदी ने दो-चार करोड़ अंधभक्तों के सहारे ऐसा वातावरण बना दिया कि अब पूरा देश मोदी-मोदी के नारों से गुंजायमान है। इस समय जो भी मोदी के कार्यों पर सवाल उठाता है, उसे देशद्रोही कहने वालों की कमी नहीं है। विपक्ष की आवाज पूरी तरह कुचल दी गई है। जिन राज्यों में गैर भाजपा पार्टियों की सरकारें हैं, वहां के मुख्यमंत्री जैसे-तैसे अपनी सरकार संभाल रहे हैं। इस तरह पूरे देश में जनहित की पूरी तरह उपेक्षा हो रही है। लोकतंत्र मोदी की जेब में रखा हुआ है।

देश की जनता देशभक्त है और संकट के समय में सरकार का साथ देती है। चालीस दिन का लॉकडाउन भी लोगों ने सहन कर लिया। अब 17 मई तक और लॉकडाउन आगे बढ़ाने के बाद विभिन्न प्रदेशों में फंसे लोगों को जिस तरह उनके राज्यों में भेजने की कार्रवाई शुरू हो रही है, उससे देश के संघीय ढांचे में दरार पड़ने के आसार साफ दिखाई देने लगे हैं। राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल आदि प्रदेशों के लाखों प्रवासी इस समय दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात और अन्य दक्षिणी राज्यों में फंसे हुए हैं। उन्हें उनके घर भेजने का कार्यक्रम बन रहा है। खबरें आ रही हैं कि विशेष ट्रेनें चलेंगी। बसें चलेंगी। गुजरात से तो कई प्रवासी बस से ओडिशा रवाना कर दिए गए हैं। उनसे किराया भी वसूला जा रहा है।  

समझा जा सकता है कि पूरे देश में अफरा-तफरी का विकट वातावरण बनने वाला है। इस अफरा-तफरी से देश का जो सामाजिक ढांचा तहस-नहस होने वाला है, उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? इसकी जिम्मेदारी मोदी अपने कंधों पर बिलकुल नहीं लेंगे, क्योंकि वे महापुरुष हैं और कोई गलत कार्य कर ही नहीं सकते। भाजपा के सभी नेता, मोदी सरकार के सभी मंत्री इस तथ्य को स्वीकार कर चुके हैं। अब जो कुछ भी गड़बड़ी होगी उसके लिए राज्यों के मुख्यमंत्री जिम्मेदार ठहराए जाएंगे। खास तौर से उन राज्यों के मुख्यमंत्री, जहां भाजपा की सरकारें नहीं हैं, जैसे दिल्ली, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, बिहार, केरल, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु आदि।

कोरोना संक्रमण के लिए अब तब्लीगी जमात निशाने पर नहीं है। कोरोना फैलाने के लिए मुसलमानों को जिम्मेदार ठहराने का जितना प्रचार किया जा सकता था, वह किया जा चुका है। अब सीधे गैर भाजपाई लोग निशाने पर होंगे, क्योंकि मोदी का लक्ष्य इस देश का एकछत्र सम्राट बनना है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में उनके प्रमुख सहयोगी अमित शाह हैं, जो अब गृहमंत्री के पद पर विराजमान है। चालीस दिन के लॉकडाउन की घोषणा मोदी ने स्वयं की थी। उसके बाद दो हफ्ते के विस्तारित लॉकडाउन के आदेश अमित शाह ने जारी किए हैं।

पूरे देश को हरा, नारंगी, लाल जोन में बांट दिया गया है। जनता पर सख्ती बढ़ा दी गई है। मास्क नहीं लगाने वालों की कुटाई, गिरफ्तारी जारी है। कोरोना संक्रमण की जांच-पड़ताल सरकारी तरीके से हो रही है। जहां भी जांच हो रही है, वहां रिपोर्ट का कोई ठिकाना नहीं है। कई जगह लोगों को क्वारंटाइन किया जा रहा है। क्वारंटाइन करने के स्थान स्कूल, धर्मशाला, सराय, सस्ते होटल आदि हैं, जहां ढंग की व्यवस्था नहीं है और पूरा इंतजाम है कि जो स्वस्थ है, वह भी वहां जाकर बीमार हो जाए। कई क्वारंटाइन अव्यवस्था से परेशान होकर विद्रोह कर रहे हैं। पुलिस और स्वास्थ्य कर्मियों से भिड़ रहे हैं और अपराधी घोषित हो रहे हैं। कौन किस आधार पर कोराना पाजिटिव है और कौन निगेटिव, इसकी पुष्टि करने का प्रबंध नहीं है।

मोदी ने अपने फैसले की पुष्टि जनता से करवाने के लिए ताली-थाली बजवा ली, दीये जलवा लिए, लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं होने वाला है। पूरी तरह रायता फैल चुका है। इसके बावजूद मोदी यह साबित करना चाहते हैं कि वह जो कुछ कर रहे हैं, सही कर रहे हैं। इसके लिए वह अब सेना का उपयोग कर रहे हैं। सेना कोरोना से लड़ रहे योद्धाओं पर फूल बरसाएगी। यह कोरोना के खिलाफ युद्ध है। और जहां युद्ध होता है, वहां सेना की भूमिका होनी ही चाहिए। मोदी ने इसमें सेना की भूमिका तलाश ली है। आगे-आगे देखिए होता है क्या।

ऋषिकेश राजोरिया

लेखक देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। देश, समाज, नागरिकों, व्यवस्था के प्रति चिंतन और चिंता, उनकी लेखनी में सदा परिलक्षित होती है।

(लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। इससे इंडिया क्राईम के संपादक या प्रबंधन का सहमत होना आवश्यक नहीं है – संपादक)

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