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महाकाल की नगरी में ये कैसी लूट?

निरुक्त भार्गव, वरिष्ठ पत्रकार, उज्जैन

सर्वमान्यता है कि उज्जैन में कोई सबसे बड़ा धंधा-व्यवसाय-उद्योग है तो महाकालेश्वर मंदिर है! मध्यप्रदेश में दो ही ज्योतिर्र्लिंग मंदिर हैं, उज्जैन के श्री महाकालेश्वर जी और ओम्कारेश्वर के ममलेश्वर जी! इन स्वयं-भू देवस्थानों के क्रमश: क्षिप्रा और नर्मदा नदी के तट पर अवस्थित होने के कारण वर्षभर कोई-ना-कोई गतिविधि चलती ही रहती है, जिसके कारण कम से कम उज्जैन, इंदौर और भोपाल संभाग में तो आए दिन हलचल मची ही रहती है. मगर क्या इसे ‘स्मार्ट वर्किंग’ कहा जाएगा कि आप “महाकालजी के नाम की लूट मची है, लूट सके तो लूट” को चरितार्थ करने में लग जाएं?

ये एक सर्वकालिक दुर्भाग्य उज्जैन के साथ जुड़ गया है कि आस्था के केंद्र महाकालेश्वर मंदिर को एक ‘वाणिज्यिक केंद्र’ के बतौर स्थापित कर दिया जाए! शासकों के प्रश्रय में लगातार ऐसे प्रकल्प खोजे जा रहे हैं कि भले-ही कोरोना-काल हो, मगर जो भी सज्जन महाकाल के दर्शन के लिए आना चाहता हो उसे किसी भी तरह अलग-अलग तरीके से बाकायदा लूट लिया जाए! छल – प्रपंच – धोखा – कपट – चोरी – सीनाजोरी – चीरहरण – अपमान – अवमानना के भीषण प्रकरण पब्लिक डोमेन में हैं ही! समय की ये कैसी बलिहारी है कि समस्त प्रकार के राज्याश्रित लोग, जिनकी दुकानदारी और प्रतिष्ठा मंदिर के सन्दर्भों से मतलब रखती है, वो तक “होने दो, चलने दो वाली” चालें चलते हैं!

अब बताइए इसमें क्या तुक है कि करीब 18 महीने बाद आप महाकालेश्वर मंदिर में प्रतिदिन होने वाली भस्मआरती में ‘साधारण’ इंसान को बहुत पीछे-से चलायमान दर्शन करने की अनुमति देने के नाम पर फूले नहीं समा रहे हैं? कोविड-19 गाइडलाइन्स के बहाने बमबारी करते हुए अचानक आप प्रकट हुए और कहने लगे, मंदिर के गर्भगृह के बाहर और खासकर नंदीगृह के पीछे लगे पाइप के बाद से आखिर तक जो भी स्पेस है, उसमें ही दर्शनार्थियों को भस्मारती की एक झलक देखने की इजाजत दी जाएगी!

जब वाहवाही लेना थी तो जोर-शोर से प्रचारित किया जाता था कि “उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर में भस्मारती के दौरान 5000 से ज्यादा भक्त प्रतिदिन बाबा महाकाल को निहारते हैं, स्पर्श करते हैं और ‘श्री हरिओम जल’ शिवलिंगम को चढाते हैं”.

वो ही लोग अब व्यवस्था दे रहे हैं कि 11 सितंबर 2021 (शनिवार) से 50 फीसदी स्पेस का जो मापदंड तय किया गया है उस हिसाब से कोई 850 लोगों को भस्मारती दर्शन की अनुमति दी जाएगी. इसके लिए ऑनलाइन आवेदन करना होगा और यदि आप उन भाग्यशाली लोगों में आ गए तो सीधे-सीधे 200 रुपए ऑनलाइन देने होंगे, क्यूंकि आपको सुविधा जो दी जा रही है!

घबराइए मत, आप यदि उक्त 850 ‘लकी’ दर्शनार्थियों में शामिल नहीं हो पाए, तो आपको एक ‘ऑफर’ रहेगा उन 150 लोगों के बीच ज़ोर-आजमाईश करने का जिन्हें साहब लोग ‘निःशुल्क’ दर्शन करवाएंगे, हर रोज तड़के 4 बजे!

एक और सूचना है कि प्रातः 5 से लेकर रात्रि 9 बजे के दौरान यदि आप पहले-से-ही ऑनलाइन बुकिंग कर मंदिर के अन्दर एकदम पीछे से छुई-मुई दर्शन करने की पात्रता हासिल नहीं कर पाए हों, तो बिल्कुल हतोत्साहित मत होइएगा! लीजिए पेश है आपके लिए दो-दो ‘अधिकृत’ स्कीम: आप 250 रुपए ले आओ और “शीघ्र दर्शन” पाओ और यदि धन की कड़की चल रही है तो 100 रुपए की रसीद भी कटवा लोगे तो प्रोटोकॉल से दर्शन सुलभ होंगे!

इस निष्कर्ष पर पहुंचना ठीक होगा कि महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति के तमाम कर्ता-धर्ता, उज्जैन के स्वनामधन्य जनप्रतिनिधि, उनके मार्गदर्शक वगैरह-वगैरह जो निरंतर और मनमाने निर्णय अपने दम पर ले रहे हैं, वो उसके लिए सक्षम नहीं हैं! अगर बीजेपी, आरएसएस, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, धर्मप्रचारक इस तरह के निर्णय के पीछे हैं, तो ये “राष्ट्रीय बहस” छिड़ना अपरिहार्य है कि आस्था और विश्वास के बहाने ये कौन-सी “बनियागिरी” की जा रही है!?

गजब तो ये है कि महाकालेश्वर मंदिर परिसर के विस्तार और सौन्दर्यीकरण के नाम पर उज्जैन से लेकर दिल्ली और फ्रांस सरकार तक से कोई 500-800 करोड़ रुपए की योजनाएं लागू करने के दावे किए जा रहे हैं…

लेखक उज्जैन के वरिष्ठ पत्रकार हैं। विगत तीन दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। संप्रति – ब्यूरो प्रमुख, फ्री प्रेस जर्नल, उज्जैन

(उक्त लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। संपादक मंडल का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।)

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