मटका माफिया के बुरे दिन #10: मटका जुए से बड़ा नशा नहीं
- मटका जुए में बरबाद हो गई कई पीढ़ियां
- सबसे सरल है मटका खेलना
- गांव-देहातों में लोकप्रिय है मटका
- आधुनिक स्वरूप ले चुका है मटका
विवेक अग्रवाल
मुंबई, 27 जुलाई 2019
मटका भी जुआ है लेकिन आंकड़ों की बाजीगरी के चलते वह कुछ अलग है। ताश के पत्तों से नंबर निकाल कर खेला जाने वाला यह जुआ न केवल भारत आसपास के कई देशों में भी गरीबों के बीच लोकप्रिय रहा है। पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, तिब्बत, दुबई में भी इस जुए के शौकीनों की कमी नहीं रही है।
कहा से आया मटका
मटके में ताश के इक्के से दहले तक पत्ते डाल कर आंकड़े निकालने की बाजीगरी जुए के खेल में रतन खत्री ने शुरु की थी। इसके पहले कल्याणजी का जुआ वरली बाजार सट्टा कहलाता था।
रतन खत्री मटके में से तीन पत्ते सबके सामने निकालता। खेली या पंटर पहले ही अपने पसंदीदा नंबर पर रकम लगा चुके होते हैं।
कैसे लगते हैं नंबर
किसी पंटर ने यदि दो, चार और छह अंकल लगाए हैं। ये ही तीन अंक तीन पत्तों में खुले तो बुकी उसे दुक्का, चौका और छक्का बताएंगे। इसका जोड़ 12 होगा।
नियम के मुताबिक जो भी जोड़ आएगा, उसमें से 10 अंक घटा देते हैं। 12 में से 10 घटाते हैं। बचा रह गया 2 का आंकड़ा। किसी पंटर का 2 आंकड़े पर रकम लगी है तो वह जीत जाता है। ये आंकड़ा न लगा तो उसकी लगाई रकम डूब गई।
आंकड़ा लगने पर पंटर को नौ गुना अधिक रकम मिलती है। किसी ने 100 रुपए लगाए, तो उसे 900 रुपए मिलेंगे।
कितनी बार होता है मटका ड्रॉ
दिन में दो बार मटका निकलता है। एक बार दिन में, दूसरी बार रात में। इसे क्लोज और ओपन कहा जाता है।
मटके में यह भी होता है कि ओपन और क्लोज के लिए 5 का आंकड़ा लगाया, यही आंकड़ा दोनों वक्त खुला तो खेली को 20 गुना रकम मिलती है। इसे जैकपॉट कहते हैं। इसका मतलब यह है कि 100 रुपए लगाने पर 2000 रुपए मिलेंगे। दोनों वक्त समान आंकड़ा न निकला तो रकम डूब गई।
मटके का बदला रूप
मटके यह खेल आज भी जस का तस जारी है। अब मटकों में ताश नहीं डालते हैं। कुछ मटका संचालक आंकड़ों की पर्चियां या टोकन डालते हैं।
कई मटका ऑपरेटर तो अपनी मर्जी से ही ऐसे नंबर खोलने लगे हैं, जिस पर सबसे कम वलण याने देनदारी होती है।
अधिकांश मटका बाजार मुंबई से ही चलते रहे हैं। मुंबई से यह काला कारोबार शुरी हुआ था लेकिन अब सस्ते टेलीफोन और इंटरनेट की बदौलत देश के किसी भी कोने से इसका संचालन संभव हो गया है।
मटका ऑपरेटर के सहयोगी लैपटॉप और मोबाइल के जरिए गुजरात, गोवा, मध्यप्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान जैसे राज्यों के दूरस्थ शहरों में बैठ कर कामकाज चलाते हैं।
ऑनलाईन हो गया है मटका
अब ऑनलाईन मटका भी जोरों पर है। ढेरों वेबसाईट और एप बन चुके हैं। इनके जरिए पंटरों को सबसे अधिक नुकसान होता है।
इस वेबसाईट और एप के सॉफ्टवेयर में अंदर ही ऐसी व्यवस्था होती है कि जिन आंकड़ों पर सबसे कम सट्टा लगा है, वही दिखाते हैं। यही आंकड़ा सट्टा माफिया जाहिर करता है।
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मटके की यह पूरी सिरीज ही धमाकेदार है। और भी जानकारियां दीजिए। आपने अब तक जो भी लिखा है, वह तो बड़ा ही चौंकाने वाला है। मैं तो अपेक्षा कर रहा हूं कि इंडिया क्राईम और भी जोरदार जानकारियां लेकर सामने आएगा। इंतजार रहेगा।