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नोटबंदी से अवैध जुआ बाजार में सन्नाटा – हजारों करोड़ का नुकसान

  • क्रिकेट मैच का सट्टा बंद
  • रेस का धंधा मंदा
  • मटका पर लगा ताला
  • सोशल क्लबों में सांय-सांय
  • डिब्बा ट्रेडिंग का डिब्बा गुल
  • हवाला-आंगड़िया की निकली हवा

विवेक अग्रवाल

मुंबई, 16 नवंबर 2016

मुंबई समेत पूरे देश के जुआखानों, सट्टाबाजार और रेसकोर्स के सट्टे के कारोबार की हवा निकल गई है। नोटबंदी के कारण अवैध रुप से हर दिन होने वाले लगभग 10 हजार करोड़ रुपए के इस काले कारोबार के तमाम संचालकों की हालत पतली है। नोटबंदी के चलते रेसकोर्स क्लबों को भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। अमरीकी राष्ट्रपति चुनावों पर हुए सट्टे के तुरंत अगले ही दिन से नोटबंदी लागू होने के कारण भी सटोरियों और बुकियों की हालत खस्ता है। उनका वलण अभी तक नहीं हो पाया है।

 

रेसकोर्स में रट्टा

मुंबई रेसकोर्स का सट्टा सबसे बड़ा होता। वह भी अब सहमा हुआ दिख रहा है। मुंबई का रेस सीजन 20 नवंबर से चालू हो रहा है, जो अप्रैल में खत्म होने वाला है। इस दौरान 21 रेस नाईट में होनी हैं, बाकी दिन में होंगी। नोटबंदी के चलते इस बार रिंग में कोई बुकी नहीं बैठ रहा है। बुकियों को लग रहा है कि उनका रोज का खर्चा भी नहीं निकलेगा, इस डर से कोई भी रेस का सट्टा खेलने में रुची नहीं दिखा रहा है। पुरानी करंसी में जो पंटर दांव लगाने और जीतने पर पुरानी करंसी में ही रकम वापस लेने के लिए तैयार हैं, उनसे ही धंधा करने की बात चल रही है। बता दें कि मुंबई, पुणे और बंगलुरु रेस पर ही सबसे अधिक सट्टा लगता है।

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एक सूत्र के मुताबिक रेसकोर्स में एक केबिन लेने पर किराया 60 हजार प्रति दिन होता है। चूंकी बुकियों के पास ही नहीं बल्कि पंटरों के पास भी नई नकदी नहीं है, इसके चलते बुकियों ने सट्टे पर बैठने से ही दूर रहने की बात की है। इस सूत्र के मुताबिक वैध रुप से मुंबई में जहां लगभग 25 बुकी हर दिन रेसकोर्स में बैठते हैं, वहीं लगभग 500 से अधिक बुकी बाहर बैठ कर पंटरों से फोन या अन्य तरीकों से सट्टेबाजी करते हैं। इस सूत्र का कहना है कि जो लोग अपने सेलफोन लेकर मुंबई रेसकोर्स में जाते हैं, उन्हें 7 हजार रुपए प्रति दिन लगते हैं। अब वे पंटर और छोटे बुकी भी यह रकम तक खर्च करने के लिए तैयार नहीं हैं।

 

इस सूत्र के मुताबिक रेसकोर्स का सारा जुआ भी नकद में ही होता है। इसमें अमूमन सारे पंटर काला धन ही लगाते हैं। इसके चलते हार-जीत का लेन-देन भी रोकड़े में ही होता है।

 

चेन्नई, मैसूर, बंगलूरू, पुणे, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता और ऊटी के सभी क्लब सेंटरों के बुकी धंधे से तौबा कर गए हैं। बता दें कि अभी हैदराबाद, मैसूर, चेन्नई, दिल्ली, कोलकाता में रेस चालू है लेकिन उसके लेवाल ही नहीं मिल रहे हैं। इसी के कारण मुंबई की रेस को लेकर बुकियों में खासी चिंता छा गई है।

 

यह भी बता दें कि मुंबई रेसकोर्स के अधिकृत बेटिंग सेंटर इस महानगर के उपनगर बोरीवली की जया टॉकीज का सब-सेंटर ही नहीं नालासोपारा, काला घोड़ा और चेंबूर के भी सब-सेंटर्स की हालत पतली हो चली है। वहां भी कोई बुकी इसलिए नहीं बैठ रहा है क्योंकि सभी पंटर पुराने नोट लेकर ही आ रहे हैं।

 

सूत्रों का कहना है कि हर दिन पूरे देश में वैध रूप से अगर 50 लाख रुपए का कारोबार रेसकोर्स में होता है तो अवैध रुप से रेस का सट्टा लगभग 10 करोड़ रुपए का होता है। पुकियों और पंटरों का कहना है कि रेसकोर्स में वैध रुप से सट्टा लगाने पर जो भी हार-जीत होती है, उस रकम पर उन्हें 26 फीसदी टैक्स लग जाता है, जिसे बचाने के लिए ही पंटर और बुकी अवैध सट्टा करवाते हैं।

 

यह भी पता चला है कि रेस के सट्टे में भाव की लाईन चलाने वाले भी बेकार बैठे हैं। रेसकोर्स में तो इन दिनों मक्खियां उड़ रही हैं। वहां बने रेस्तोंरा और शराब बेचने वालों से लेकर सभी तरह के कारोबार ठप्प पड़े हैं। उन्हें भी हर दिन लाखों रुपए का नुकसान हो रहा है क्योंकि कुछ पंटर अगर आ भी रहे हैं तो उनके पास नकद रकम ही नहीं है कि वे खाने या शराब पर खर्च कर सकें।

 

इतना ही नहीं तमाम रेसकोर्स क्लबों को एक और तरह से नुकसान हो रहा है। लगभग सभी रेसकोर्स क्लब अपनी तमाम घुड़दौड़ की लाईव वेब स्ट्रीमिंग करते हैं। मुंबई की रेस मोबाईल या लैपटॉप पर लाईव देखने के लिए पंटरों या बुकियों को 10 हजार रुपए प्रति वर्ष फीस चुकानी होती है। कोलकाता और बंगलुरू के क्लब इसके लिए 4.5 हजार रुपए सालाना लेते हैं। हैदराबाद, ऊटी, चेन्नई और मैसूर मुफ्त में अपना लाईव रेस देखने की सुविधा मुहैय्या करवाते हैं। कोलकाता रेसकोर्स ने ही सबसे पहले रेस लाईव देखने के लिए पंटरों और बुकियों से वैध रुप से फीस वसूलनी शुरू की थी।

 

हवाला और आंगड़िया बंद होने के कारण सटोरियों की हालत पतली हो गई है। नकद में होने वाला सारा कामकाज ठप्प हो गया है। एक पंटर के मुताबिक मुंबई रेसकोर्स में तो एक रेस पर 100 से रुपए से 1 करोड़ रुपए तक का दांव लगाने वाले आते हैं। अब सबके मुंह उतरे हुए हैं क्योंकि बुकियों ने पुरानी करंसी के कारण दांव लेने से ही मना करना शुरू कर दिया है।

 

क्रिकेट सट्टे में खिंचा सनाका

खबर लिखे जाने तक भारत-इंग्लैंड सिरीज, ऑस्ट्रेलिया-दक्षिण अफ्रिका सिरीज, श्रीलंका-वेस्टइंडीज सिरीज और बांग्लादेश प्रीमियर लीग खेले जा रहे हैं। इन मैचों पर भी बुकियों ने सट्टेबाजी बंद रखी है।

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क्रिकेट का सट्टा भारत में बुकियों और पंटरों के बीच सबसे लोकप्रिय है। कोई टेस्ट मैच हो तो उस पर भी बड़े आराम से एक मैच पर लगभग 1000 करोड़ रुपए का सट्टा तो लग ही जाता है। वन डे या 20-20 के एक-एक मैच पर 500 करोड़, सेमीफानल पर 1000 करोड़ और फाईनल पर 5000 करोड़ रुपए तक का सट्टा लग जाता है।

 

इस तरह से देखा जाए तो फिलहाल क्रिकेट सट्टाबाजार को हर दिन लगभग 1,500 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है।

 

बुकियों ने जब तक नई नकदी बाजार में पूरी तरह नही उतर जाती है, तब तक धंधे पर न बैठने का निर्णय लिया है। कुछ छोटे-मोटे बुकी भले ही कारोबार कर रहे हैं लेकिन वे पच्चीस-पचास लाख से अधिक कारोबार करने की स्थिति में नहीं हैं।

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मटका का बैठा भट्टा

मटका कारोबार पूरी तरह छोटी करंसी पर चलता है। इन दिनों बड़े नोटबंदी के कारण मटका कारोबार भी पूरी तरह ठप्प हो गया है। मटका शौकीन आमतौर पर एक रुपए या अधिक से पसंदीदा आंकड़ों पर जुआ खेलते हैं। मटका के पुराने और अमीर शौकीन एक बार में कई लाख रुपए तक लगाते हैं। इसके चलते हर दिन मटके में ही हजारों करोड़ रुपए का कारोबार होता है। यह देश भर में फैला हुआ गरीबों का सबसे पसंदीदा जुआ है।

 

देश के सभी बड़े मटका कारोबारियों और बुकियों की हालत नोटबंदी के निर्णय से खस्ता हो गई है। उनके पास छोटे दांव लगाने के लिए पंटर आ तो रहे है लेकिन जीत की रकम चुकाने के लिए नई करंसी न होने के नई बड़ी करंसी नोट न होने के कारण बड़ी परेशानी हो रखी है।

 

वरली, जनता, कल्याण से स्टार मटका तक, सभी इन दिनों अहमदाबाद से चल रहे हैं। कभी मुंबई का झोपड़पट्टी दादा रहा एक नेता आज गुजरात का मंत्री बन चुका है, उसी के संरक्षण में अहमदाबाद से ये तमाम मटके चल रहे हैं। एक सूत्र के मुताबिक इस मंत्री को हर मटका संचालक दो करोड़ रुपए प्रति माह बतौर संरक्षण राशि चुकाते हैं।

 

इस कारोबार की रीढ़ भी हवाला और आंगड़िया ही हैं, उनके पास भी नई करंसी न होने के कारण कारोबार बंद रखा होने से मटका कारोबार को भी खासा झटका लगा है।

 

सोशल क्लबों में सन्नाटा

मुंबई के सोशल क्लबों में जहां दिन-रात शराब की नदियां बहती थीं, हर वक्त सिक्कों की खन-खन गूंजती थी, हार-जीत पर किलकारियां सुनाई देती थीं, वहीं आज सन्नाटा पसरा हुआ है। हर दिन सैंकड़ों करोड़ का जुआ इन अवैध सोशल क्लबों में चलने वाले तीन पत्ती, रोलेट, अंदर-बाहर, नंबर वाले पासों, रमी के खेल में होता था, वहां अब कोई जुआरी जाने के लिए तैयार नहीं है।

 

क्लब मालिक या संचालक पुरानी करंसी लेने के लिए तैयार नहीं हैं, जुआरियों के पास देने के लिए नई करंसी नहीं है, लिहाजा खेल है खल्लास। एक पुराने जुआरी का कहना है कि मुंबई में एक तरफ जहां सोशल क्लबों में कमी आई है, वहीं दूसरी तरफ ठाणे, नवी मुंबई, पालघर जिलों में ये अवैध जुआखाने धड़ल्ले से चल रहे हैं।

 

अवैध जुआखानों के संचालक अपने पास आने वाले जुआरियों को एक सेवा जरूर दे रहे हैं कि पुरानी करंसी अगर कोई बदलवाना चाहे तो 35 से 50 फीसदी कमीशन काट कर बाकी रकम नकदी में दे रहे हैं। यदि कोई जुआरी यह रकम लेने को तैयार हो जाता है तो उतनी रकम के टोकन दिए जाते हैं। यदि कोई जुआरी 10 लाख रुपए देता है तो उसे साढ़े तीन या पांच लाख के टोकन मिल जाते हैं। वह जुआ खेलने पर जो कमाई करता है, उसकी नकद रकम नई करंसी में दी जा रही है।

 

डिब्बा ट्रेडिंग का डिब्बा गुल

नोटबंदी के कारण शेयर बाजार के डिब्बा ट्रेडिंग के काले कारोबार को हर दिन लगभग 8 से 10 हजार करोड़ रुपए का नुकसान झेलना पड़ रहा है। सूत्रों का कहना है कि इस कारोबार में फिलहाल काफी हालत खराब चल रही है।

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शेयर बाजार में अवैध कारोबार याने डिब्बा शेयर ट्रेडिंग लगभग 8 से 10 हजार करोड़ की होती है। वायदा कारोबार या एफ अंड ओ में खूब सट्टेबाजी बोल्ट के बाहर भी चलती है। चूंकी शेयर बाजार के टर्मिनल पर शेयरों की खरीद-फरोख्त करने पर न केवल वैध धन में काम करना होता है बल्कि उसमें हर सौदे पर कुछ रकम बतौर टैक्स भी चुकानी होती है। जो भाव वैध रुपए से शेयर बाजार की वेबसाइट पर दिखते हैं, उसी भाव पर सट्टा भी चलता है। डिब्बा ट्रेडिंग में सारा कामकाज अवैध रुपए से होता है। उस पर कोई टैक्स नहीं लगता है। सारा लेन-देन हवाला और आंगड़िया के जरिए होता है।

 

एक पंटर के मुताबिक अगर वैध रुपए से पांच करोड़ का कारोबार वायदा में होता है तो समझ लें कि अवैध रुपए से यह एक हजार गुना होता है। इस कारोबार हर शनिवार को वलण होता है। नकद रकम न होने के कारण भी डिब्बा ट्रेडिंग की हालत खस्ता हो चली है।

 

ट्रंप के चक्कर में चूं बोले पंटर

अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में ऐसा भारी फेरबदल हुआ कि हिंदुस्तानी सटोरियों की हालत खस्ता हो गई। बुकियों की इस बार जहां पौ-बारह हो गई वहीं सारे पंटर सिर पर हाथ धरे रो रहे हैं। जिस दिन यह सट्टा बंद हुआ था, उसी दिन से नोटबंदी लागू हो गई। चुनाव के परिणाम आने के अगले दिन ही वलण होना था, सो यह भी रुक गया है। कुछ ही बुकियों ने वलण किया है। बाकी अभी भी राह देख रहे हैं कि नई करंसी आ जाए तो वे अपने पंटरों से कहेंगे कि उनकी हारी हुई रकम हवाला संचालकों या आंगड़ियों तक पहुंचाएं।

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बता दें कि इन चुनावो में हिलेरी क्लिंटन जुआरियों की हॉट फेवरेट थीं। उनका भाव तो मतदान खत्म होने तक 20 पैसे पर बंद हुआ था, उनके मुकाबले डोनाल्ड ट्रंप काफी कमजोर स्थिति में दिख रहे थे। उनका भाव मतदान बंद होने तक पांच रुपए चल रहा था। एक तरह से उनका भाव 25 गुना अधिक था याने जीतने की संभावना 215 गुना कम थी।

 

इस बार पंटरों में अमरीकी चुनावों को लेकर खासा उत्साह भी था। यही कारण था कि सट्टाबाजार में लगभग 800 करोड़ रुपए का सट्टा लग गया था। अब यह रकम फंस गई है।

 

नोटबंदी के कारण मुंबई का सट्टाबाजार सकपकाया हुआ है। अब तो बुकि अच्छे दिनों की आस में बैठे हैं कि कब नई करंसी पूरी तरह बाजार में आती है, कब वे फिर अपना काला कारोबार शुरू कर पाते हैं।

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