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प्रधानमंत्री ने मांगे सात वचन या मुंगेरीलाल के हसीन सपने?

आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लॉकडाउन का समय उन्नीस दिन और बढ़ाने से पहले टीवी पर अपने एकालाप में यह सोच कर लोगों से सात वचन लिए कि देश का हर नागरिक उनके बंधुआ की तरह है, और उनकी बात मान लेगा।

पहला वचन: अपने घरों, आसपास के बुजुर्गों का ख्याल रखें। इसका अर्थ यह है कि बुजुर्ग लोग अपना ख्याल खुद नहीं रख सकते हैं। उनका ध्यान परिवार के अन्य लोगों को रखना पड़ेगा। उन्हें घर से बाहर नहीं निकलने देना है, कैद करके रखना है। शरीर का कोई इस्तेमाल नहीं करने देना है, जिससे कि वे जल्दी मर जाएं। इस कष्टदायक सांसारिक जीवन से उनका जल्दी छुटकारा हो।

दूसरा वचन: लॉकडाउन के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का कड़ाई से अनुशासन के साथ पालन करें, साथ ही लोगों से भी कराएं। इसका मतलब यह है कि पति-पत्नी अलग कमरों में सोएं। बच्चों को गले लगाना बंद कर दें। हर व्यक्ति अलग-अलग कमरे में रहे। बच्चे को मां पालने में रख कर अकेला छोड़ दे। हकीकत यह है कि देश की आधी से ज्यादा जनसंख्या ऐसे घरों में रहती है, जहां परिवार में पांच से दस तक या इससे भी ज्यादा सदस्य एक, दो या तीन कमरों में रहते हैं। मोदी के इस दूसरे वचन का पालन करने से तो पूरा जीवन ही अस्त-व्यस्त हो जाएगा। स्पष्ट है, उन्होंने यह दूसरा वचन लेने में अपनी बुद्धि का इस्तेमाल नहीं किया है।

तीसरा वचन: रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ाने के लिए आयुष मंत्रालय के दिशानिर्देश मानें, काढ़ा, गरम पानी आदि पीते रहें। उन्होंने चाय नहीं कहा, लेकिन लोग समझ सकते हैं कि वह बार-बार चाय पीने के लिए कह रहे हैं। मोदी मानते हैं कि देश का प्रत्येक नागरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को अपने हिसाब से बढ़ा या घटा सकता है, और काढ़ा या गरम पानी आदि पीने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इस वचन का अर्थ यह है कि देश के नागरिक अपने स्वास्थ्य को लेकर सावधान नहीं रहते हैं, मूर्ख हैं और उन्हें जरा-जरा सी बातें भी प्रधानमंत्री बताएंगे। गौरतलब है कि आयुष मंत्रालय इस देश में प्रचलित विभिन्न परंपरागत चिकित्सा विधियों के आधार पर बनाया गया है, जो स्वास्थ्य मंत्रालय से अलग है। ये हैं, आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी। इनमें से किस पद्धति के बारे में मोदी कह रहे हैं, समझ से परे है।

चौथा वचन: आरोग्य सेतु एप को डाउनलोड करें। इसका अर्थ यह है कि हरेक को एक ऐसा मोबाइल अपने पास रखना आवश्यक है, जिसमें एप डाउनलोड किए जा सकें। उसके बाद आरोग्य सेतु एप के जरिए जारी होने वाले संदेशों को देखते रहें, जिससे वे स्वस्थ बने रहेंगे। इससे लोगों के दिमाग को उलझाने के अलावा और कोई लक्ष्य हासिल होता दिखाई नहीं देता।

पांचवां वचन: गरीब परिवारों को भोजन कराएं, उनकी सहायता के लिए तत्पर रहें। यह वचन कैसे माना जा सकता है? इस देश में आधी से ज्यादा जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे या उसके आसपास गुजर-बसर कर रही है। इतने लोगों को भोजन कौन करवाएगा? लोग अपना पेट भरेंगे या दूसरों के भोजन की चिंता करेंगे? यह वचन भी सामान्य समझ के दायरे से बाहर है।

छठा वचन: किसी को नौकरी से न निकालें। यह वचन भी अत्यंत हास्यास्पद है। क्या मोदी यह मानते हैं कि देश का प्रत्येक नागरिक किसी न किसी को नौकरी पर रखता है? छोटे-छोटे काम धंधे बंद हो गए। स्वयं सहायता समूह के माध्यम से चलने वाले उपक्रम बंद हो गए। सरकार में ही कर्मचारियों के लाखों पद खाली हैं। कंपनियां कर्मचारियों की छंटनी करने में लगी हैं। क्या मोदी को ऐसा गजब का आत्मविश्वास है कि लोग उनकी बात मान लेंगे? जिन लोगों का खुद का ठिकाना नहीं रहा, वे अपने अधीन काम करने वाले अन्य लोगों को किस तरह वेतन दे पाएंगे?

सातवां वचन: डॉक्टर, नर्स, मेडिकल स्टाफ, सफाई कर्मी और पुलिसकर्मियों का आदर-सम्मान करें। इसका अर्थ यह कि मोदी मानते हैं, इस देश के नागरिक एक-दूसरे का सम्मान नहीं करते हैं। हकीकत यह है कि डॉक्टर, नर्स, मेडिकल स्टाफ पहले से ही समाज के सम्मानित लोग हैं। इसके लिए प्रधानमंत्री के निर्देश की आवश्यकता नहीं है। सफाईकर्मियों का सम्मान कई लोग नहीं करते हैं। हो सकता है मोदी के कहने से वे सफाईकर्मियों का सम्मान करने लगें। और पुलिस का सम्मान? उसकी तो पहले से धौंसपट्टी चल रही है। पुलिस का सम्मान तो लोगों को जबर्दस्ती करना पड़ता है। मोदी का तात्पर्य यह हो सकता है कि अगर लॉकडाउन के दौरान कोई किसी जरूरी काम से घर से बाहर निकल जाए और पुलिसकर्मी उसे डंडे मारे तो बुरा न माने, क्योंकि वह लोगों की जान बचाने के लिए डंडे का इस्तेमाल कर रहा है। हर नागरिक को पुलिसकर्मी के डंडे खाने के बाद उसके सम्मुख करबद्ध होकर कहना चाहिए कि दो डंडे और मारिए, आप हमारी रक्षा कर रहे हैं। हम मूर्ख अपना भला कुछ नहीं समझते। डंडे मारकर हमें समझाने के लिए आपका आभार। धन्यवाद।

ये प्रधानमंत्री के सात वचन हैं। इनमें से एक भी वचन का पालन कोई नहीं करने वाला है। खुद प्रधानमंत्री भी नहीं।

कोरोना के खिलाफ लड़ाई के नाम पर देशवासियों को इस तरह बरगलाने की क्या जरूरत है? इस देश में मुंगेरीलाल के हसीन सपने कब तक चलेंगे?

इस समय देश में अपार बहुमत के साथ भाजपा की सरकार है और आदरणीय नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री हैं। वे लच्छेदार भाषण देकर पार्टी को चुनाव जिताने की क्षमता रखते हैं, लेकिन विविधताओं से भरे इस देश का शासन ठीक से चलाने की क्षमता उनमें नहीं है, यह पिछले छह वर्षों से अधिक के उनके शासन से स्पष्ट हो चुका है।

वे न देश की अर्थव्यवस्था ठीक से संभाल सकते हैं, न ही शांति एवं सद्भाव के आधार पर देश में सामाजिक एकजुटता कायम रख सकते हैं। अभी हाल ही कोरोना वायरस के प्रकोप से देशवासियों को मरने से बचाने के नाम पर उन्होंने जो हैरतअंगेज कदम उठाए हैं, उससे उनके विवेक पर भी प्रश्न चिन्ह लगा है।

हम यह नहीं कहते कि हमारे देश का प्रधानमंत्री मूर्ख हो सकता है, लेकिन यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उनके कुछ फैसले मूर्खतापूर्ण, हास्यास्पद और हानिकारक साबित हुए हैं। नोटबंदी और चालीस दिनों का लॉकडाऊन इनमें शामिल है।

इतना होने के बाद भी मोदीजी के चेहरे पर कोई शिकन दिखाई नहीं देना आश्चर्यजनक है। क्या वे इस देश के लोगों को भेड़-बकरियों का झुण्ड मानते हुए चरवाहे की भूमिका निभा रहे हैं?

भाजपा के अन्य नेताओं को इस पर विचार करना चाहिए कि मोदीजी को संसदीय दल का नेता चुनने में उनसे कोई गलती तो नहीं हो गई?

अभी भी समय है। गलती सुधारी जा सकती है। मोदीजी को हटा कर किसी समझदार नेता को प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है। तत्काल प्रभाव से ऐसा नहीं किया तो देश के लिए आने वाला समय विकट होगा। बुरी तरह अराजकता फैलेगी और अगली पीढ़ियों के लोग भाजपा को कभी माफ नहीं कर पाएंगे।

श्रषिकेश राजोरिया

18 अप्रैल 2020

लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। इससे इंडिया क्राईम के संपादक या प्रबंधन का सहमत होना आवश्यक नहीं है – संपादक

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