Books: दत्तात्रय लॉज: मुंबई के फिल्मी स्ट्रगलरों की अंतस कथा
इस किताब के तमाम किस्से अलग-अलग भी पढ़े जा सकते हैं, और एक उपन्यास की शक्ल में भी उनके अंदर
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Read Moreवीरान हवेली की दो महीने में शूटिंग पूरी हो गई। अगले छह महीनों में एडिटिंग भी पूरी हो गई। फिल्म
Read Moreहाईवे पर पहुंचने के बाद संजय ने मुस्कुरा कर आगे बैठे टोनी पर नजर डाली, “क्या हाल है रौनक भाई…
Read Moreरज्जू भैया से आज फिर राजा भाई की बातें चल रही है। मुद्दा है वही कि कौन चुनाव जीतेगा –
Read Moreदेव कुमार अब डायरेक्टर हो गया। रहा वही मीठा और चीठा। सारे जहान को सेट पर बुला-बुला कर दिखाने लगा
Read More“मंझा सूंतने से क्या मतलब…” “मंझा किस काम का… निठल्लों का काम है पतंग उड़ाना… जब-तब मंझा उनके ही हाथ
Read More“हो रे बाबा, ये पटकन।” बाबू भाई ने शांत भाव से दांत कुरेदते हुए फोन रखा। कुर्सी से उठ कर
Read More“कोई काम हो तो दीजिए…” बाबू भाई ने मरी आवाज में कहा। “क्या कर सकते हैं…” गुप्ताजी सीधे मुद्दे पर
Read Moreअगले दिन भवानी लौटा। आज दत्तात्रय लॉज में रात बिताने नहीं आया है। उसने चुपचाप तानसेन उठाया। बाबू भाई के
Read Moreअफसोस कि इतने जबरदस्त शायर को फिल्म इंडस्ट्री स्वीकार करने के लिए कतई तैयार नहीं। मुंबईया हिंदी फिल्म उद्योग के
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