Poetry

Litreture

दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है, हम भी पागल हो जाएंगे ऐसा लगता है – क़ैसर उल जाफ़री

रस्ते भर रो–रोकर पूछा हमसे पांव के छालों ने बस्ती कितनी दूर बसा ली दिल में बसने वालों ने यह

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Litreture

मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया – मजरूह सुल्तानपुरी

बे तेशा-ए-नज़र न चलो राह-ए-रफ़्तगां हर नक्श़-ए-पा बुलंद है दीवार की तरह ‘तेशा’ यानी पत्थर काटने का हथियार। ‘राह-ए-रफ़्तगां’ यानी

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हमने क्या पा लिया हिंदू या मुसलमां होकर, क्यों न इंसां से मुहब्बत करें इंसां होकर – नक़्श लायलपुरी

पलट कर देख लेना जब सदा दिल की सुनाई दे मेरी आवाज़ में शायद मेरा चेहरा दिखाई दे हिंदुस्तानी सिनेमा

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ज़िंदगी अपनी जब इस हाल में गुज़री ग़ालिब, हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे – मिर्ज़ा ग़ालिब

ग़मे-हस्ती का असद किससे हो जुज़ मर्ग़ इलाज शम्अ हर रंग में जलती है सहर होने तक असद यानी मिर्ज़ा

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Articles

हमको मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं, हमसे ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं – जिगर मुरादाबादबादी

उनका जो काम है वो अहले सियासत जानें, अपना पैग़ाम मुहब्बत है जहां तक पहुंचे जिगर मुरादाबादी का यह शेर

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