Vivek Agrawal Books

Books: आंसू: वासना का नरक भोगता बचपन

आंसू दरअसल बाल यौन अत्याचार से छलनी जिस्म में बसी बेबस रूह का रुदन है। वासना के भूखे भेड़ियों का झुंड लगातार लपलपाती जीभें और आंखों में हवस भरे चारों तरफ घूमते हैं, उनके बीच लड़का हो या लड़की, जो फंस गया, उसका जिस्म और रूह, दोनों छलनी होना तय हैं।

आंसू का मुख्य किरदार रामू वही अभागी आत्मा है, जो वासना भूखे भेड़ियों के बीच फंस गई है, अब उसका क्रंदन सुनने वाला कोई नहीं। उसका बचपन हर पल एक नरक जीता है, जहां कभी प्रेम की शीतल बयार आई तो वह भी लाल लपट में तब्दील हो जाती है।

रामू पर बचपन में यौन हमला होता है, जिसके कारण वह धीरे-धीरे समलिंगी में बदल जाता है। रामू के इर्दगिर्द तेजी से बदलते घटनाक्रम में गांव की ओछी राजनीति, बदला हुआ भारतीय मानस, धर्म की नजर से सब कुछ देखने का नजरिया सामने आते हैं।

आंसू की कहानी वर्तमान समाज के कुछ सबसे घिनौने पृष्ठ खोलते चलती है, कुछ रहस्यों का उद्घाटन करती है, कुछ बैचैन करने वाले सत्य परोसने चलती है।

छोटी बच्चियों से बुजुर्गों महिलाओं तक बलात्कार की शिकार आधी आबादी पर बहुत शोर – बहुत हंगामा – बहुत तूफान खड़ा होता हैं। छोटी उम्र के लड़कों पर लेकिन जब बलात्कार होते हैं, उनके बारे में जिक्र करना भी कोई पसंद नहीं करता। परिवार भी इस मामले में रहस्यमई चुप्पी साध लेते हैं। क्यों?

जवाब जानिए। गलती से अगर बालक पर यौन अत्याचार की शिकायत थाने तक पहुंच जाए तो कोई विश्वास नहीं करता… गलती से विश्वास कर लिया तो यौन अत्याचार के शिकार बालक और उसके परिवार का जीवन दूभर हो जाता है… अदालतों से न्याय मिलना तो दूर, यौन अत्याचार के शिकार बालक के जीवन में नए संघर्ष और संकट खड़े हो जाते हैं। यह हमारे समाज का अर्धसत्य नहीं, पूर्ण सत्य है।

आंसू की कहानी सिर्फ रामू की नहीं है। इसका हर पात्र आपको आसपास ही घूमता या भटकता मिल जाएगा। हर पात्र आपको सहज लगेगा और कभी किसी पर आपको क्रोध आएगा, कभी किसी से सहानुभूति होगी।

आंसू देवर पर आश्रित भाभी पर यौन अत्याचारों से मुंबई फिल्मोद्योग में गीत-संगीत की चोरी, भिखारियों के ठीए बिकने से तृतीयपंथियों के देह व्यापार तक तमाम राज खोलते चलती है।

आंसू भारतीय मीडिया का असली चेहरा दिखाते और कई नकाब नोंच कर फेंकते आगे बढ़ती है। जीवन के सत्य से साक्षात्कार कराती है।

आंसू एक खोजी पत्रकार की नजर से समाज को भेदक निगाहों से खुरेचते-कुरेदते चलती है। झूठ को झूठ और सच को सच बताने का साहस करती जाती है।

मौकापरस्त कहाँ नहीं। हम हैं कि उन्हें या अपना मानते हैं, या वे अपना हितैषी मानने के लिए मजबूर कर देते है। हमारे समय की सबसे भयानक सच्चाइयों का घटित होना अलग बात है, समाज के सम्मुख आना अलग। आंसू में यही सत्य समाज के सामने परोसने की कोशिश है।

एक कहानी में ‘सच के साए’ नहीं, ‘पूरा सच प्रतिबिंबित’ होना चाहिए। किरदार इतने विश्वसनीय हों कि अपने-आप ही उन पर भरोसा हो जाए।

देश-काल-परिस्थिति के मुताबिक कोई भी जी लेता है। हर इंसान में एक नायक भी है, ये भी समझने की समझ रामू का किरदार पेश करता है। औरत भले पतुरिया हो, बेटी का मामला आते हो चौकन्नी हो उठती है। नाचने वाली बाई और उसकी बेटी का रामू के छोटे से जीवन में बड़ा परिवर्तन करने वाला समय लाने वाला किरदार बड़ा चौंकाता है।

एक मिथक है कि हिंजडे हमारे समाज की सबसे पवित्र आत्माएं हैं। वे जो कह दें, वो अटल है। पूरी होकर रहती हैं। नवजात रामू को दिया ‘वरदान’ कैसे ‘अभिशाप’ में बदल जाता है, एक अर्धसत्य का उद्घाटन करते हुए आंसू आगे बढ़ती है।

गांव से महानगर तक जीवन कैसे-कैसे संघर्ष झेलता है, ये भी रामू के साथ चलते आंसू में जानेंगे।

खून बेचने वाले गिरोह भेड़ियों की मानिंद झपटने, खून का सौदा करने, चारों तरफ घूम रहे हैं। यह भी ऐसा घिनौना सच है जो आंसू के जरिए आपके सामने आता है।

आंसू समाज, जीवन, इंसान, रिश्तों को उस आतिशी शीशे से देखती है, जिसके लिए खुर्दबीनी निगाहों की जरुरत है।

असली-नकली, सच-झूठ, न्याय-अन्याय, जीवन-मृत्यु, लाभ-हानि के बीच झूलता मानव ही आंसू के कथानक केंद्र में है।

हमारा समाज कितना संकुचित हो चला है, खुद में कितना सिमट गया है, उसकी मिसाल है स्कूल के प्रिंसीपल की हत्या वाली घटना। आसान कमाई का सबसे अच्छा स्रोत है मटका-सट्टा। उसके चक्कर में दिमागी तौर पर अस्थिर जटिल बिहारी के पीछे जुआरियों-सटोरियों का पड़े रहना, जहां एक तरफ गांव छोटे शहरों के पाठकों को ऐसा ही किरदार आसपास घूमता नजर आ जाएगा, तो महानगरीय पाठकों के लिए ये चौंकाने वाला किरदार बन कर उभरेगा।

एक इसाई पादरी और स्कूल प्रिंसीपल को अपने हाथों सजा देने के घटनाक्रम पर लोग आपत्ती ले सकते हैं। पाठक किसी घटना विशेष पर असहमति तो दर्ज कर पाएंगे, लेकिन सिरे से नकार नहीं पाएंगे। हमारा वक्त मृत्यु का सोग नहीं मनाता, कभी-कभी उत्सव मनाता भी दिखता है। यहीं आकर वो मानव से दानव में तब्दील हो जाता है।

पाठकगण विवेक अग्रवाल को खोजी और अपराध सत्य घटनाक्रम का लेखक मानते हैं। पाठकों की नजर में विवेक अग्रवाल का लेखन एक ही दिशा में जाता है। आंसू ये मिथक तोड़ती है।

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