Vivek Agrawal Books

Books: बांबे बार: चिटके तो फटके

देश का इकलौता शहर… जहां सपने नाचते भी हैं।

देश का इकलौता शहर… जहां सपने खरीदे-बेचे जाते हैं।

देश का इकलौता शहर… जहां सपनों की नुमाईश होती है।

देश का इकलौता शहर… जहां सपनों की बेदर्द मौत भी होती है।

ये शहर है मायानगरी मुंबई, जिसमें देहजीवाओं का एक ऐसा तबका है, जो किसी न किसी कारण पांवों में घुंघरू बांध जिस्म की नुमाईश करते हुए, देह को खास तरह से झटके देते हुए, पुरुषों के खास अंग को उत्तेजित करने के हरसंभव प्रयास करते दिखता है। ये हैं मुंबई की बारबालाएं।

मुंबई के डांस बारों में पलती हुई इन देहजीवाओं के वो पहलू ही अब तक सामने आए हैं, जो बारबालाओं और होटल मालिकों के संगठनों ने अपने लाभ के लिए सामने आने दिए हैं। उनके उत्तेजक नाच, नितंब से वक्ष तक के उभारों, मादक अदाओं, कंटीली चितवन के पीछे छुपे दर्द, मजबूरियों से अलहदा भी कुछ होता है। वह है अपराध और अपराधी गिरोहों से संबंध।

मुंबई के डांस बारों में पलते रहे हैं अपराध और अपराधी। उनका साथ देती रही हैं मुंबई की ये बारबालाएं। इन डांस बारों के अंधियाले और इन बारबालाओं के जीवन के श्याम पक्ष में झांकने की कोशिश है – बांबे बार – चिटके तो फटके

हम पहुंच रहे हैं इन बारबालाओं के अनदेखे और अनसुने संसार के अंदर, विवेक अग्रवाल की कलम के जरिए। तिल-तिल मरती इच्छाओं और हर पल जीवन जीने की प्रबल आकांक्षा के चलते उनका संघर्ष किसी भी नारी से बड़ा हो जाता है।

विवेक अग्रवाल ने सन 1992 से आज तक बारबालाओं से मिल कर हजारों समाचार जुटाए हैं। उनके बीच पैठना आसान है, विश्वास जीतना बेहद मुश्किल। यह और बात है कि आप उन्हें धन – बाहुबल – संपर्क जाल का थोड़ा सा चमत्कार दिखाएं, वे आपके साथ हो लेंगी। वे लेकिन तब तक ही साथ रहेंगी, जब तक आपसे फायदा है। उनका भरोसा हासिल करना बड़ा जटिल है।

इन बारबालाओं के जीवन के अंधियाले हिस्से को कुरेद-कुरेद कर सामने लाने की बरसों की कोशिश का ही नतीजा है – बांबे बार – चिटके तो फटके

विवेक अग्रवालऐसे भारतीय पत्रकार हैं, जो बीयर बारों को सबसे करीब से जानते हैं। दर्जनों डांस बार में सैंकड़ों बारबालाओं से न केवल मिल चुके हैं, उनके अंतस में झांकते भी रहे हैं। इन बारबालाओं में काफी सारी ऐसी भी रही हैं, जो मुंबई अंडरवर्ल्ड के राज फाश करने के मिशन में उनके साथ कंधे से कंधा मिला कर काम कर चुकी हैं, उनके लिए बतौर मुखबिर काम कर चुकी हैं, बतौर जासूस साथ देती रही हैं। उनके जीवन की कुछ कठोर और मर्मभेदी सच्चाई हैं, जो कोई नहीं जानता। एक बारबाला के दीपा बार से निकल कर मशहूर अभिनेत्री तक पहुंचने की दास्तान विवेक अग्रवाल से बेहतर कोई नहीं जानता।

ये बारबालाएं क्या करती हैं? कितने दिन इस रुपहले संसार में अंधियाला जीवन जीती हैं? फिर वे कहां जाती हैं? किस तरह का इंसान उनके अंदर बसता है? कैसा पति, पिता, दोस्त, परिवार मिलता है इन बारबालाओं को? अब हर जानकारी आईने की तरह साफ दिखेगी।

बारबालाओं से उस दौर में मिलना, उनके करीबी होना, उन्हें करीब से जानना, सब कुछ बड़ा मुश्किल होता था। उनके संसार में रह कर भी उनसे दूरी बनाए रखना असंभव सा था। विवेक अग्रवाल ने घुंघुरूओं की रुदाली के कुछ ऐसे किस्स जुटाए हैं, जो सबको चौंका देंगे।

मुंबई के डांस बारों की बारबालाओं के हर रंग, हर रूप, हर खेल की पूरी पड़ताल है इस किताब में, जिसका नाम है – बांबे बार – चिटके तो फटके।

बांबे बार – चिटके तो फटके पुस्तक में कुल 12 जीवंत कथाए हैं। उनमें से एक, न तो देहजीवा है, न ही बारबाला। वह एक कलाकार है लेकिन उसे धोखे से दुबई ले जाकर जिस तरह घिनौने दलदल में धकेलने की साजिश हुई, जिस तरह उसने विद्रोह किया, जिस तरह उनके खिलाफ रणभेरी बजाई, उसकी कहानी इस पुस्तक में शामिल करना हमारी भी मजबूरी हो गई। यह है शर्वरी सोनावणे।

इस पुस्तक के जरिए मुंबई के डांस बारों की कालिख और उसके इर्द-गिर्द चल रही हर हरकत रेखांकित करने का प्रयास किया है। बांबे बार – चिटके तो फटके में तबस्सुम की कहानी भी है। जी हां, वही तबस्सुम जो क्रिकेट खिलाड़ियों के सामने चारा बना कर पेश की गई। जिसे सट्टेबाजी और मैच फिक्सिंग के चलते पुलिस ने गिरफ्तार किया था। वह अब सहाफियों से बच कर भागती है। इस लेखक की पहुंच से भी वह दूर ही रही। उसकी जिंदगी के हर राज फाश उन लोगों ने किए, जो उससे या तो जुड़े रहे हैं, या उसे निजी तौर पर किसी न किसी कारण से जानते रहे हैं।

  • पुस्तक में कुल 12 अध्याय हैं।
  • हर कहानी मुंबई की बारबालाओं और डांस बारों के अंदरूनी रहस्यों का पर्दाफाश करती चलती है।
  • बांबे बार के जरिए बारबालाओं के जीवन व कामकाज में झांकें। उनकी रोचक दास्तानें पढ़ें।
  • हर सच्चे किरदार की कहानी में किस्सागोई का तड़का लगा है ताकी पाठकों को आंतरिक सूचनाओं के साथ कहानी का मजा मिले।
  • पंजाबी में अनुदित।

अध्याय

अंधी सुरंग

रेशमा को पहली बार देखा, असामान्य लगी। जी नहीं, वह पागल नहीं थी, वह सनकी भी नहीं थी। बस, वह दूसरी बारबालाओं जैसी नहीं थी। वह बड़ी जहीन और शरीफ है। उसके चेहरे पर वह खास छाप भी नहीं थी, जो चीख-चीख कर बताती कि फलां लड़की बारबाला है। जब भी उसके सामने जाता, नजाकत से सलाम करती। नाचती और बल खाती लेकिन भद्दे इशारे कभी नहीं करती। उसकी यही नफासत और शराफत ही तो सबसे बड़ी पूंजी थी। जब बारबालाओं पर लिखने का मन हुआ तो सबसे पहले रेशमा से मिलने का मन हुआ। पहले से कुछ-कुछ जानता था, अब पता चला कि कुछ नहीं जानता था। रेशमा के मन में धधकता एक ज्वालामुखी था, जो उस दिन फूटा, जब उसे पुराने वक्त और रिश्तों के अहसास की तपन महसूस हुई। कानपुर में एक लड़के के प्रेमजाल में फंस कर मुंबई की तंग गलियों में जिस्मफरोशी के अड्डों से बेचे जाने और वहां से मदहोश करने वाले डांस बारों तक पहुंचने की कहानी में न जाने कितने पेंच हैं… न जाने कितने बल हैं… न जाने कितने ही खम हैं…

करोड़ी बाला

वह तरन्नुम खान उर्फ तनु है। देश की सबसे नामचीन बारबाला। कुख्यात भी कहूं तो ठीक ही होगा। उस पर करोड़ों की टैक्स चोरी के आरोप लगे। उस पर क्रिकेट सट्टा खेलने और खिलवाने के आरोप लगे। उस पर मैच फिक्सिंग के आरोप लगे। पुलिस ने उसे जेल की हवा भी खिलाई। वह करोड़ रुपए के बंगले में रहती है। आलीशान कार की मालकिन है। उसके दीवानों में हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री का बेटा भी है। इसी तनु के जीवन का हर हिस्सा आज सबके सामने नुमांया हो रहा है। उसने अपनी फिल्म भी बनाई है। कल तक जो अपना अतीत छुपा कर जिस्म और रूप के सहारे कमाती थी, उसका अतीत उधेड़ कर रख दिया है इस कहानी में।

भग्न देह

पिंकी-रिंकी पर कुछ कहना मुहाल है। गांव की लड़कियां, मायानगरी मुंबई में आकर भी नहीं बदलीं। चेहरे से जिस्म तक, हर कहीं यह पीड़ा बहती थी कि उन्होंने इस शहर में आकर गलती की। वे इज्जत की दो रोटी कमाना चाहती थीं लेकिन भेड़ियों से में आ फंसीं। कुछ दरिंदे उन्हें हर वक्त नोंचते-खसोटते थे। उनका जीना-मरना एक सरीखा हो गया। यह सच है कि जब दर्द अंतहीन हो जाता है तो एक दिन इंसान बागी हो जाता है। पिंकी-रिंकी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। वे भी बगावत पर उतर आईं। यह बात और है कि उनकी बगावत से हुआ कुछ नहीं। न बार मालिक का कुछ बिगाड़ सकीं, न उन पर जुल्म करने वाले पुलिसियों का। बस, वे बच कर घर वापस लौट गईं।

पिघला सीसा

यह बारबालाओं की जिंदगी का अहम हिस्सा है। ताहिरा बेगम सईद की जिंदगी में कुछ ऐसा ही हुआ। जिंदगी की कंटीली – पथरीली राह पर पैर जमा-जमा कर चल रही ताहिरा के जीवन में एक दिन ऐसा शख्श आया, जिसने वादा किया कि जहां उसके कदम पड़ेंगे, वह जिस्म बिछा देगा, एक कांटा नहीं चुभने देगा। न जाने क्या हुआ कि वह इंसान ही ताहिरा की जिंदगी का सबसे तीखा शूल बन गया। उसने एक दिन ऐसा किया कि ताहिरा का जिस्म और दिल छलनी होकर रह गए। उसके जिस्म में पैबस्त हुए पिघले सीसे ने तन – मन दोनों जमा दिए। उसकी उम्र 24 साल थी। हरे रंग की आंखों वाली यह युवती अपने प्रेमी की चलाई गोली का निशाना बन गई। बीयर बार में नाचने वाली यह लड़की के साथ हुआ हादसा, किसी हिंदी फिल्म के दहशत पैदा करने वाले दृश्य जैसा है। यह बात है 11 जून 2003 की रात सवा बजे की। ताहिरा को उसका भाई मुशीर और मुनीर शब्बीर शेख नायर अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती करते हैं। उसके पैर से गोली निकाली जाती है। बाद में उसे एक निजी अस्पताल में भर्ती करते हैं। इस घटना के पहले नौ सालों से ताहिरा बारों में नाच कर लोगों को ‘खुश’ कर रही थी। उत्तर प्रदेश के शहर आगरा की निवासी यह लड़की 10 साल पहले मुंबई आई थी। दोनों भाइयों के साथ रह कर उनकी परवरिश करने लगी थी।

मदहोश

काजल मेघानी उसका असली नाम नहीं है। कारनामे जो वह करती रही है, वे जरूर असली हैं। गिरोहों और गिरोहबाजों के संसार की सबसे मोहक, दिलकश, सुंदर अपराधिन है। वह एक गिरोहबाज के इश्क की शराब पीकर ऐसी मदहोश हुई कि जब तक होश में आती, रक्त के दलदल में गले तक जा धंसी थी। उसकी हरकतों से न केवल ठाणे जिले बल्कि मुंबई की पुलिस भी हैरान हो चुकी थी। उसने हत्याओं से हफ्तावसूली तक क्या नहीं किया और करवाया था। वह देश के सबसे दुर्दांत गिरोहबाजों में से एक सुरेश मंचेकर के सुपारी हत्यारे दीपक की माशूका थी। उसके बारबाला अवतार से गिरोहबाज होने तक की पूरी दास्तां बड़ी हैरअंगेज है।

बगावत

दुश्मन हो, और मां हो, यह कैसे हो सकता है भला? लेकिन यह सच था। मेरे सामने राखी सिंह थी, जो अपनी बेटी सोनम की बरामदगी के लिए हंगामा मचाए थी। बाजार में बेटी के जिस्म की तिजारत करने वाली यह मां बर्दाश्त नही कर पा रही थी कि उसकी तिजोरी कोई और लूट ले गया है। एक लड़के से शादी करने के लिए सोनम भाग गई थी। पूरा खानदान और समाज के लोग सोनम और उसके आशिक को खोज रहे थे क्योंकि मां ने उन्हें पकड़ कर लाने वाले को मोटी रकम ईनाम देने की सुपारी उठाई थी। पुलिस वालों को भी रिश्वत में मोटी रकम देने का वादा किया था। इंडिया टीवी में उसकी दास्तां मैं दिखा चुका था। अब राखी अपने रिश्तेदारों के साथ मिल कर सोनम के लिए मुझ पर दबाव डाल रही थी। यक्ष प्रश्न था, क्या उन्हें सोनम मिली?

दोजख

मां का दर्जा भगवान से भी ऊपर रखा जाता है। यह बात आप सुजाता से कहें तो मुंह नोच लेगी। उसे तो मां शब्द से ही नफरत है। लेकिन बाबूजी शब्द, उसके चेहरे पर मीठे सपनों में खोए छोटे से बच्चे सरीखी मुसकान ले आता है। सुजाता का बचपन का चंचल मन नाच सीखना चाहता था, कर्कशा मां के कारण वह सीख नहीं पाती थी। बाबूजी ने उसे सिखाना चाहा लेकिन जल्द ही यह ख्वाब अधूरा रह गया। एक अधेड़ शराबी-कबाबी के हाथों उसकी जिंदगी की बागडोर सौंप दी। वह जल्द ही दुनिया में उसे अकेला छोड़ कर चला गया। मुंबई में अकेली औरत ने बच्चों का पेट पालने के लिए डांस बार की राह पकड़ी तो नाच ने ही उसे नया जीवन दिया।

बिजली

बिल्लौरी आंखें, भरा हुआ गदराया जिस्म, उन्नत उरोज, लंबा कद, रंगत ऐसी गोरी कि कलाई थाम लें तो नील पड़ जाए। इस पंजाबन का रूप-यौवन ऐसा हाहाकारी कि ऐसा कौन न था, जो उसे हासिल करने के लिए न मचल जाता। जैसा कि बारबालाओं के संसार का चलन है, कोई लड़की असली नाम नहीं बताती, उसने भी नहीं बताया। कभी नहीं। कभी वह रज्जो होती, कभी सिमरन, कभी बिल्लो, कभी सरजीत कौर। वह जिससे मिलती, नया नाम थमाती। कुछ लोग उसे बिल्लो कहते, कुछ छमिया, कुछ ने कंटीली नाम दिया था, किसी के लिए वह ‘कट्टर माल’ थी। मैं जरूर उसे ‘बिजली’ नाम से पुकारता था। पंजाब के किस शहर – पिंड से थी, यह किसी को पक्का पता नहीं। वो बस कह देती जलंधर से हूं। मान लेना होता था कि वह जलंधर से है। अमृतसर या लोगोंवाल भी कहती तो कोई क्या करता? वह जिस्म से जितनी हाहाकारी थी, उतनी ही जबान से भी। उसकी एक निगाह पड़ने भर से लोग निहाल हो जाते, कुछ तो हलाल हो जाते। आगे से चलते दिखे तो कयामत, पीछे से चलते दिखे तो कत्ल का औजार होती। उसके इतने नाम थे कि पक्का पता न था कि असली कौन सा है। मैं उसे बिजली कहता था। वह नाचती तो ऐसा ही करंट मारती, जैसा करीब जाने पर झटका देती थी। न जाने क्यों उसने कभी लेखक से ग्राहकों सा सलूक नहीं किया। जबान की कितनी तीखी हो, लेखक ने पाया कि उसने जिस्म को नापाक नहीं होने दिया। क्या!? ऐसा भी हो सकता है कि कोई बारबाला किसी से जिस्मानी ताल्लुकात न रखे? मेरे सामने जो था, वह तो कुछ ऐसा ही था।

बेनिशां

पैसों का मोह उसे ले गया दुबई तक नाचने के लिए… घर को पालने की मजबूरी उसे ले गई मुंबई के बीयर बारों में नाचने के लिए… लेकिन उसे क्या पता था कि यहां उसके लिए खूबसूरत जिंदगी नहीं… बल्कि मौत बसती है… मीरा रोड का का वह छोटा सा घर अजब मनहूसियत से भरा हुआ था। वहां एक अदद बूढ़ी प्रेतात्मा तमन्ना मिर्जा बसती थी। घर की हर दीवार पर अपना सिर पटकती हुई। दरअसल कुछ अर्सा पहले अपनी जवान बेटी निशा की लाश घर लाई थी वो। अब उसकी दो अंतिम निशानियां याने निशा की दोनो अबोध बेटियों को उसका बाप घर से अगवा करके ले गया। नातिनों की वापसी की भीख हर आए-गए के सामने रो-रोकर झोली फैला कर मांगती है। पुलिस में शिकायत दर्ज की लेकिन इस बूढ़ी औरत की फरियाद किसी ने नहीं सुनी। अब वह बस अपनी मौत की दुआ मांगती है। निशा तो बेनिशां हो गई, ढेरों निशान दिल पर छोड़ गई।

टूटा ख्वाब

शर्वरी सोनावणे देखने में भले ही साधारण लड़की लगे, वह पल भर में शेरनी की तरह हमला करती है, क्षण भर में पंख कटे पंछी सी फरफरा कर जमीन पर आ गिरती है। शर्वरी अचानक तीखे शब्द बाणों और नेत्रों से निकलती आग से आपको राख कर देगी, क्षोभ एवं बेचारगी का भाव उभरते ही अचानक आंसुओं के सैलाब में आपको बहा भी देगी। यह सांवली सलोनी कन्या मजबूत जज्बे और इरादे वाली है, और कोई उसे ठगे, यह उसे बरदाश्त भी नहीं। विदेश ले जाकर वेश्यावृत्ति में धकेलने वालों के खिलाफ थाने जाकर न केवल एफआईआर करवाने की हिम्मत दिखाती है, दलालों और बार मालिकों के खिलाफ जिहाद छेड़ चुकी है। जो उसकी बात नहीं मानना, ऐसे हर व्यक्ति को शर्वरी बिके होने का ठप्पा लगाने में पल भर की देर नहीं लगाती। उससे बात करने में भी भय सा लगता है लेकिन तसल्ली होती है कि वह एक उद्देश्य के लिए लड़ रही है। और हां, वह बारबाला नहीं है।

लिंक: शर्वरी सोनावणे साक्षात्कार

दमित देह

सोफिया हिदायतुल्लाह खान उर्फ जूली नास्कोन से मुझे मालवणी स्थित घर में इलाके की समाजसेविका शबाना शकील मेमन ने मिलाया था। वे खुद भी साथ बैठी थीं। सोफिया को देख कर नहीं लगता है कि वह किसी डांस बार में नाचने वाली बारबाला होगी। एक मुसलिम युवक हिदायतुल्लाह खान से मुहब्बत हुई। दो सालों तक उसे परखने के बाद सोफिया ने कुरान का हलफ उठाने वाले हिदायतुल्लाह खान से निकाह के लिए हामी भर दी। शादी करने के लिए उसने धर्म परिवर्तन किया। पहले की जूली अब सोफिया बन चुकी थी। पूरा साल नहीं बीता होगा कि दगाबाज हिदायतुल्लाह खान की पोल खुल गई। सोफिया ने उससे जवाब तलब किया कि पहली शादी के बारे में क्यों नहीं बताया तो उसने सीधे तलाक की मांग कर दी। यह बारबालाओं के जीवन का एक कटु सत्य है कि लोग उन्हें हवस का शिकार बनाने के लिए प्रेमजाल में फांसते हैं, शादी करते है, जब मन भर जाता है तो उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंकते हैं। सोफिया की कहानी ऐसी लाखों बारबालाओं की दर्दभरी दास्तां का प्रतिनिधित्व करती है।

तीसरी देह

किन्नर भी बड़ी संख्या में डांस बारों में नाचते हैं। उन्हें देखने काफी तादाद में लोग आते हैं। जो किन्नर अच्छा नाचते हैं, दिखने में सुंदर हैं, काम बखूबी जानते हैं, मेहनत से जी नही चुराते, उनके लिए डांस बार में असीम संभावनाएं हैं। बार मालिक मानते हैं कि किन्नर उनके बार में नाचेंगे तो भाग्य की देवी मेहरबान होंगी। ऐसे ही एक बार डांसर किन्नर सना शेख को घाटकोपर के कामराज नगर की झोपड़पट्टी में खोजा। कामराज नगर कभी अंडरवर्ल्ड का ठिकाना रहा है। आज भी इस इलाके में पांव धरने के पहले सौ बार सोचना पड़ता है। हमें इस विशाल झोपड़पट्टी के अंदर कहीं जाना था। पंकज ने कहा कि चंद कदमों पर एक जगह झोपड़पट्टी सुधार योजना (एसआरए) चल रही है, वहां से होकर रास्ता है, जिससे सना के घर तक पहुंचे। उसकी जिंदगी पुर्जा-पुर्जा करने चला लेकिन उसने मेरा ही दिल तार-तार कर दिया। एक तृतीयपंथी के दर्द का दरिया बह निकला। उन्होंने बताया कि जन्म तो एक लड़के के रूप में उन्होंने लिया लेकिन न जाने कब वे तृतीयपंथियों के साथ चले आए। उनके परिवार ने बहिष्कार कर दिया। तबसे वे इस दुनिया का अंग बन गए। अब वे रायगढ़ के बड़े डांस बार में नाचने जाते हैं और उनके प्रशंसकों की कोई कमी हैं। जिस बिना पलस्तर के घर में वे रहते हैं, उसे देख कर किसी का भी मन दुख जाए कि इनकी हालत कितनी गंभीर है।

लिंक: सना शेख का साक्षात्कार

BOOK LINK: Bombay Bar

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