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कोरोना से खतरनाक महामारी है नफरत

कुछ न्यूज़ चैनलों, वाट्सएप यूनिवर्सिटी की ऑनलाइन ज्ञान कक्षा और कुछ कथित बीमार बुद्धिजीवियों की वजह से कोरोना से भी ख़तरनाक बीमारी देश की धड़कन में समा गई है। वो बीमारी है हिंदू-मुसलमान के नाम पर दिलो-दिमाग में भरी नफ़रत की।

खबर आ रही है गरीब मुसलमानों को टार्गेट किया जा रहा है, तबलीगी जमात के कुकर्म के लिए। मीडिया जोर-शोर से फैलाने में लगा है कि देश में कोरोना फैलाने में सबसे बड़ी भूमिका तब्लिगी जमातियों की है। वे भी चूंकि मुस्लिम समुदाय से हैं, इसलिए सारे मुसलमान निशाने पर हैं। कमजोर मुसलमान शिकार हो रहे हैं, जो मजदूरी करते हैं या छोटे-मोटे रोज़गार कर गुज़र-बसर करते हैं। खबरें आ रही हैं कि कई जगह उन्हें पीट कर भगाया जा रहा है। उनका सामाजिक बहिष्कार किया जा रहा है।

इससे पहले गौमांस और गौहत्या के नाम पर मुसलमानों की मॉब लिंचिंग को हवा दी गई। विडंबना ये है कि सरकार की इस पर मौन सहमति है। कई विधायक-सांसद और मंत्री भी मुसलमानों के खिलाफ नफ़रत भरे बयान देने से नहीं चूकते। मॉब लिंचिंग में नामजद अपराधियों की जमानत के बाद उन्हें फूलमालाएं पहनाई गईं, उनका सत्कार किया।

अभी तबलीगी जमात के नाम पर हंगामा बरपा है। उसकी ही बात करें, तो सबसे पहले यह जानना ज़रूरी है कि तबलीगी जमात क्या है?

यह धर्म का प्रचार करने वालों की एक टोली है, जो इस्लाम के प्रति आस्था जगाने का कार्य करती है। यानी इस्लाम का प्रचार-प्रसार करती है। इस जमात के लोग छोटी-छोटी टोलियां बना कर मस्जिदों में रुकते हैं। उस इलाके के मुसलमानों को इस्लाम के बारे में बतलाते हैं। धार्मिक ज्ञान देते हैं। इस्लाम का महत्व और उसकी महत्ता समझाते हैं। धार्मिक रीति-रिवाज, इबादत पद्धति सिखाते हैं।

इनकी पैठ लेकिन पूरे मुस्लिम समाज में नहीं है। शिया, सूफी मुसलमानों और मजार पर जाने वाले सुन्नी मुसलमानों से इनका मतभेद है। ये खुदा के अलावा मजार, पीर, इमाम आदि में विश्वास नहीं रखते हैं। इनके प्रति भक्ति को इस्लाम के ख़िलाफ़ मानते हैं।

इसकी शुरुआत मेवात से मानी जाती है। वहीं के रहने वाले मौलाना मोहम्मद इलियास ने 1927 में यह जमात शुरु की थी। आज मेवात हरियाणा का एक जिला है। मेवात जिले से सटे राजस्थान और उत्तरप्रदेश का कुछ इलाका मेवात कहलाता है। इस इलाके के ज़्यादातर मुसलमान हिंदू परंपराएं भी मानते हैं। वे गौ-पालन में भी संलग्न हैं।

तबलीगी जमात का पहला सम्मेलन 1941 में हुआ था। इसमें तकरीबन 25,000 लोग शामिल हुए थे। देश के बंटवारे के बाद 1947 में इसकी मुख्य साखा लाहौर, पाकिस्तान में खोली गई। आज दुनिया के 100 से अधिक देशों में जमात धर्म प्रचार-प्रसार करती है।

धर्म का प्रचार और प्रसार सारे धर्मों के लोग करते हैं, क्या मुसलमान, क्या क्रिश्चियन और क्या हिंदू। सारे धर्मों में ऐसी जमातें या संगठन हैं, जो अपने-अपने धर्म का माहात्म्य बखानते हैं, लोगों में अपने धर्म का बड़प्पन और कट्टरता भरते हैं। इस खिड़की के देखें, तो चाहे तबलीगी जमात हो, या कोई मिशनरी, या कोई हिंदू संगठन, सब एक से हैं।

तबलीगी जमात आज चर्चा में है तो इसलिए कि कोरोना महामारी के विश्व स्तर पर पैर पसारने के संकट के बावजूद दुनिया के विभिन्न देशों से धर्म प्रचारकों को बुलाया और सम्मलेन किया।

तबलीगी जमात को निश्चित तौर पर अक्लमंदी का परिचय देना चाहिए था। खुद से यह सम्मलेन रद्द करके विदेशों से आए लोगों को विदा कर देना था।

खबर है कि इस जमात के भारतीय नेता मौलाना शाद ने तकरीर की थी कि अगर मौत आनी है, तो सबसे अच्छी मौत मस्जिद में होगी। उन्होंने सम्मलेन जारी रखा। नतीजतन विदेशी संक्रमित मेहमान जहाँ-जहाँ गए, उसके संपर्क में आए लोग संक्रमित हुए।

निज़ामुद्दीन मरकज़ में आए सारे लोग उन संक्रमित लोगों के संपर्क में आए और हज़ार से ऊपर लोग संक्रमित हो गए।

भारत में कोरोना संक्रमण फैलाने के लिए यही लोग ज़िम्मेदार हैं, यह कहना भी अतिशयोक्ति है। दुनिया में कोरोना फ़ैलने के बाद विदेशों में रहने वाले या घूमने-पढ़ने गए लाखों भारतीय नागरिक विमानों से भारत लौटे। उन्हें उसी वक्त कोरेंटाइन नहीं किया। नतीजा यह हुआ कि वे जहाँ-जहाँ गए, कोरोना संक्रमण फैला दिया।

इसके अलावा सरकार की ज़िम्मेदारी थी कि भारत में जहाँ भी विदेशी नागरिक थे, उन्हें वापस अपने देश जाने के लिए कहा जाता। उन्हें जबरन भेजा जाता। या उन्हें भी कोरेंटाइन किया जाता, जो नहीं हुआ।

खुद प्रधानमंत्री मोदी तो अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के लिए जलसा सजाते रहे। जलसे में लाखों लोगों की भीड़ इकट्ठा की। उन पर लेकिन न्यूज चैनल बात नहीं करते।

इसके अलावा मध्यप्रदेश में सरकार बनाने की राजनीति के चक्कर में लॉकडाउन करने में देरी की और बीमारी देश के अलग-अलग राज्यों में पहुँची।

चैनल और वाट्सएप यूनिवर्सिटी की कक्षाओं में सिर्फ तबलीगी जमात को विलेन बनाया। यह मुसलमानों के प्रति एक सुनियोजित मुहिम है, जिसके कारण देश का सामाजिक वातावरण खराब हुआ है, और हो रहा है।

अब जहाँ तक तबलीगी जमातों पर बैन लगाने की बात की जा रही है, तो अच्छा है, बिल्कुल लगाना चाहिए। सिर्फ इस्लाम के प्रचार-प्रसार पर ही नहीं, क्रिश्चनिटी और हिंदू धर्म का गुणगान करने वालों पर भी प्रतिबंध लगाना चाहिए।

कोरोना महामारी में जनता ने देख लिया कि सारे धर्म और उनके आराध्य बेमानी हैं। उनके आराध्यों के घर बंद हैं। मरीजों को अस्पतालों की शरण में जाना पड़ रहा है।

सरकार और जनता दोनों के सामने साफ हो चुका है कि धर्म के नाम पर जो मंदिर-मस्जिद और चर्च चलाए जा रहे हैं, वे सिर्फ दुकानें हैं। ऐसी दूकान कि मेडिकल और राशन की दुकानें इमरजेंसी और ज़रूरी सेवा के नाम पर खुली हैं लेकिन मंदिर-मस्जिद-चर्च बंद हैं।

धनंजय कुमार की फेसबुक वॉल से साभार

10 अप्रैल 2020

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लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। इससे इंडिया क्राईम के संपादक या प्रबंधन का सहमत होना आवश्यक नहीं है – संपादक

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