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पूरे देश में एक साथ लॉकडाउन से कितना नुकसान?

24 मार्च से अब तक लॉकडाउन से इस वर्ष कृषि उत्पादन पर गंभीर असर पड़ने वाला है।

अप्रैल-मई में किसान गेहूं की फसल की कटाई करते हैं। उसके बाद मूंग या चारे की फसल की तैयारी शुरू होती है।

फसलों की कटाई के बाद गन्ने की फसल की सिंचाई, निंदाई-गुड़ाई होती है। उनमें खाद दिया जाता है। मक्का, बरबटी आदि काट कर जानवरों को खिलाया जाता है। अरहर, जौ, सरसों, अलसी की कटाई की जाती है।

इसके साथ ही अगली फसल के लिए खेतों की जुताई होती है। आम के बगीचों में पानी दिया जाता है। केले के पौधों की निंदाई गुड़ाई होती है। लॉकडाउन के कारण ये कार्य ठप हो गए।

वनोपज संग्रहण का कार्य भी ठप हो गया, जो हर साल इसी दौरान होता है। खासतौर से छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के निमाड़, बुंदेलखंड आदि क्षेत्रों में वनोपज संग्रहण आदिवासियों की आजीविका का आधार है।

महुआ, अचार, तेंदूपत्ता, आंवला, हर्रा, बेहड़ा, शहद, धवईफुल, रंगील, लाख, कुसमी लाख, जामुन बीजा, इमली, गोंद आदि प्रमुख वनोपज है। तेंदूपत्ता संग्रहण का कार्य नहीं होने से बीड़ी उत्पादन को झटका लगेगा। लॉकडाउन के कारण इस वर्ष कृषि और वनोपज संग्रहण से जुड़े कार्यों पर विपरीत असर पड़ा है। इससे अर्थव्यवस्था का भारी नुकसान होगा।

इसी तरह पूर्वी और पूर्वोत्तर भारत में चाय बागानों में चाय पत्ती संग्रहण भी इसी सीजन में होता है। चाय बागानों की गतिविधियां ठप होने से चाय का उत्पादन भी कम हो जाएगा।

समझा जा सकता है कि आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नासमझी से बेवजह कितना नुकसान हो गया है।

यह लॉकडाउन कोरोना वायरस के प्रकोप से बचने के लिए किया है। इस वायरस के प्रकोप की आशंका उन इलाकों में रहती है, जहां मनुष्यों की सघन बस्तियां हैं। जहां लोग दूर-दूर बसे हैं, जंगली इलाके हैं, वहां कोरोना वायरस प्रकोप की आशंका न के बराबर है।

छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के वन क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण बिल्कुल नहीं है। चाय बागानों में भी कोरोना वायरस का प्रकोप नहीं हो सकता। ऐसे में पूरे देश को एकसाथ लॉकडाउन करना निहायत मूर्खतापूर्ण कदम साबित हो रहा है।

मोदी सरकार यह बात समझने के लिए तैयार ही नहीं, बड़े दुख की बात है।

ऋषिकेश राजोरिया

लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। इससे इंडिया क्राईम के संपादक या प्रबंधन का सहमत होना आवश्यक नहीं है – संपादक

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