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क्या आखिरी सांसें ले रहा है भारतीय लोकतंत्र?

आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन में क्या भारतीय लोकतंत्र अपनी आखिरी सांसें ले रहा है? कोरोना वायरस के संक्रमण की जो समस्या चीन में पैदा हुई और जिसने यूरोप और अमेरिका में कहर बरपाया, उसी को हथियार बनाते हुए भारत में मोदी ने अपनी तानाशाही कायम करने का मार्ग प्रशस्त किया। कोरोना संक्रमण की समस्या भारत में महामारी नहीं थी। मोदी ने इसे महामारी का स्वरूप देने में कोई कसर नहीं छोड़ी और देशवासियों को भयभीत करते हुए लोकतंत्र को अपंग बनाने का कार्य किया। उन्होंने इस तथ्य को पूरी तरह भुला दिया कि भारत किसानों, मजदूरों और गरीबों का देश है। यहां के लोग स्वतंत्रता के बाद से ही देशभक्त रहे हैं और गणतांत्रिक व्यवस्था के तहत लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकारों में अपनी अटूट आस्था रखते आए हैं। अब लोगों का यह भरोसा टूटने की कगार पर है।

कोरोना वायरस से संक्रमण का पहला मामला जनवरी में केरल में देखा गया। उससे पहले पश्चिमी देशों में इसके कारण बड़ी जनहानि के संकेत दिखने लगे थे। यूरोप में इसके कारण बड़े पैमाने पर मौतें होने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे वैश्विक महामारी घोषित कर दिया था। उस समय मोदी सरकार को भारत के हित में ऐसे कदम उठाने चाहिए थे, जिससे इस महामारी से बचते हुए देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर होने से बचाया जा सके। अगर उस समय मोदी आपसी भेदभाव की राजनीति छोड़कर एक लोकप्रिय प्रधानमंत्री की तरह काम करते तो देश की ऐसी हालत नहीं होती, जैसी आज हो रही है।

मोदी सरकार ने देशहित में कदम उठाने की बजाय फरवरी में अहमदाबाद में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से दोस्ती मजबूत करने के लिए नमस्ते ट्रंप का आयोजन किया। विदेशियों को बुलाया। दिल्ली में उनका स्वागत सत्कार किया। दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की सरकार को सत्ता से हटाने के लिए केंद्र सरकार की पूरी ताकत झोंकी। दिल्ली में भाजपा की पराजय के बाद तीन-चार दिन भयानक दंगे हुए। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराकर भाजपा की सरकार बनाने का कार्य किया। निजामुद्दीन के तब्लीगी मरकज में तब्लीगी जमात के सम्मेलन की अनुमति दी। इसके बाद वहां जुटे देश-विदेश के जमातियों को अन्य प्रदेशों में जाने दिया। पूरे देश में कोरोना संक्रमण फैलने के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण किया। यह सब हो जाने के बाद उन्होंने 24 मार्च की रात आठ बजे अचानक इक्कीस दिन का लॉकडाउन कर दिया। इक्कीस दिन खत्म होने के बाद लॉकडाउन को उन्नीस दिन और बढ़ा दिया। अब देशवासी चिंता कर रहे हैं कि क्या इसके बाद भी लॉकडाउन जारी रहेगा? 

लॉकडाउन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने एक अलग कोष का गठन कर कोरोना से निबटने के नाम पर धन एकत्रित किया। कितना धन एकत्रित हुआ और उसे महामारी से निबटने में किस तरह खर्च किया जा रहा है, इसकी कोई जानकारी नहीं है। राज्य सरकारों को भी केंद्र से राशि नहीं मिली। इस बीच देश के गरीबों, मजदूरों और किसानों पर कहर टूट पड़ा। चालीस दिन के लॉकडाउन में देश की अर्थव्यस्था पटरी से उतर गई। खेती-किसानी के और वनौपज संग्रहण के जरूरी कार्य रुक गए जो कि हर साल बसंत ऋतु में ही होते हैं। छोटे-मझोले-बड़े लाखों कारखाने बंद हो गए। रोज कमाकर खाने वाले दिहाड़ी मजदूरों का जीवन संकट में पड़ गया। अब जितने लोग कोरोना वायरस से नहीं मरेंगे, उससे ज्यादा इस अव्यवस्था के कारण मरेंगे। क्या मोदी इसकी जिम्मेदारी लेंगे?

देश का इतना नुकसान होने के बाद भी मोदी को कोई चिंता नहीं है। लोकतंत्र के चार प्रमुख स्तंभ हैं। विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया। विधायिका पूरी तरह मोदी के अधीन है। भाजपा का बहुमत है। विपक्ष बेहद कमजोर है। कोई भी सांसद मोदी के कार्यों पर सवाल उठाने की स्थिति में नहीं है। न्यायपालिका देश के साथ न्याय नहीं कर पा रही है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के तमाम फैसले मोदी सरकार के अनुकूल रहे हैं। कार्यपालिका पर मोदी सरकार का पूरा नियंत्रण है। मीडिया भी जनता के कष्ट सामने लाने की बजाय मोदी सरकार की प्रशंसा करने में लगा है। देश में प्रधानमंत्री के ऊपर एक राष्ट्रपति भी हैं, जो देश की कितनी चिंता कर रहे हैं, पता नहीं।

ताजा उदाहरण महाराष्ट्र का है। महाराष्ट्र में भाजपा की सरकार नहीं बन सकी। शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस की मिली-जुली सरकार बन गई। उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद संभाला। वह किसी भी सदन से निर्वाचित नहीं हैं। छह माह के भीतर विधानसभा या विधान परिषद सदस्य बनने की बाध्यता है। इस समय लॉकडाउन के कारण कोई चुनाव नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में राज्यपाल कोटे की विधान परिषद सीट पर उन्हें विधान परिषद सदस्य मनोनीत किया जा सकता है। राज्य सरकार की तरफ से दो आवेदन पत्र राज्यपाल के पास पहुंच चुके हैं। उन्होंने कोई फैसला नहीं किया है। इस संबंध में उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री मोदी को भी पत्र लिखा है।

ऐसा लगता है कि भाजपा महाराष्ट्र में भी येन-केन-प्रकारण राज्य सरकार को अपने कब्जे में लेना चाहती है। हालांकि ऐसा होना नहीं चाहिए, राज्यपाल को राज्य सरकार की सिफारिश मान लेनी चाहिए। लेकिन जिस तरह केंद्र की मोदी सरकार पूरे देश में लोकतंत्र का गला घोटने में लगी हुई है, उसको देखते हुए कुछ भी हो सकता है। सभी प्रदेशों में भाजपा की विचारधारा वाले राज्यपाल पदासीन हैं और वे मोदी सरकार की सहमति से ही फैसले लेते हैं। क्या महाराष्ट्र में भी लोकतंत्र को ताक पर रखने का विचार किया जा रहा है? अगर ऐसा हुआ तो इसका यही मतलब होगा कि आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के लोकतंत्र को रसातल में ले जाने की पूरी तैयारी कर चुके हैं।

ऋषिकेश राजोरिया

लेखक देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। देश, समाज, नागरिकों, व्यवस्था के प्रति चिंतन और चिंता, उनकी लेखनी में सदा परिलक्षित होती है।

(लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। इससे इंडिया क्राईम के संपादक या प्रबंधन का सहमत होना आवश्यक नहीं है – संपादक)

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