Litreture

मक़बूल और रऊफ़ लाला

असलम दुखी सा न्यूज़ देख के बोला, “बंटा अपुन का बॉलीवुड को किसी का नजर लग गयेला ऐ भाय… कल मकबूल ऑफ हो गएला… आज रऊफ लाला चला गया… मेंई वाट्सअप पे मैसेज देख रेला ता रे बावा…”

मैं बोला, “बंटाय, जाने वाला गया रे… देख उसी का लोक… उसी पे लानत भेज रेला है… वो बिंदास बोलता था… वो बकरीद पे बोला तो गाली खाया, ये गाय पे बोला और सुना…”

असलम बोला, “बंटाय दोनो उपर मिला होएंगा, तो क्या बोलता होएंगा? तेरे कट्टरों ने तेरे को गलियाया… अपुन के कट्टरों ने अपुन को।”

मैं बोला, “बंटाय टेंशन नई लेने का… ऐसा भेजा फिरेला इदर बी है, उदर बी… पर अपुन का बॉलीवुड बड़ा बिंदास है रे… सलीम भाई अपना फिलिम का महूरत में नारियल फोड़ता… कपूर भाई फिलिम के रीलीज पे बाबा के मजार पे चादर चढ़ाता… शर्मा जी अपुन का सेट पे ईफ्तारी कराता… टेंशन लेने का नईं… अपुन का इंडस्ट्री, ना हिंदू है – न मुसलमान… अपुन का इंडस्ट्री तो मोब्बत पर चलता है यार…”

डॉ. एम. शहबाज

व्यंग्य लेखक एवं कार्टूनिस्ट

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