Crime

और इवेंट से लोगों को गुमराह करने की जरूरत पूर्व भाजपा विधायक नरेन्द्र मेहता को है?

श्रवण शर्मा, पत्रकार, भायंदर, मुंबई

बात बहुत पुरानी है! मीरा-भायंदर शहर के प्रथम विधायक गिल्बर्ट जॉन मेंडोसा के सामने विधायक का चुनाव लडने के लिए नरेन्द्र मेहता अखाड़े में खडे हुए थे। जीत भी गए! कैसे???

उस वक्त मेरी नजरें सदैव बनी हुई थी और मैं अपना नैतिक धर्म निभा रहा था, आज भी निभा रहा हूँ और अपनी आखिरी सांस तक निभाता रहूँगा।

मैं उनके बंगले में गया। वहां कई मीरा-भायंदर शहर के अधिकारियों को देखकर मेरा माथा सनका और मैंने सारी निचोड निकालने का फैसला किया। एक फोर व्लीहर, शायद स्कार्पियो थी, उसके पीछे कोई सीट वगैरह नहीं थी। हां, डब्बे थे और उनमें नोट भरे थे! मैंने अपने जीवनकाल में इतनी बडी मात्रा में इतने नोट एक साथ, पहली बार देखे थे। लोग आ रहे थे… नरेन्द्र मेहता के कहेनुसार उनके कर्मचारी लोगों को दे रहे थे, नोट लेकर वे जा रहे थे!

तब अचानक अंदर से आवाज आई कि, यह कौन है…

किसी ने बाहर आकर पूछा कि, तुम कौन…

मैंने बताया, मैं पत्रकार श्रवण शर्मा!

उस व्यक्ति ने अंदर जाकर बताया कि, पत्रकार है…

और अंदर से नरेन्द्र मेहता की आवाज आई कि, सभी हरामखोर पत्रकारों को तो पैसे बांट दिये हैं, यह कौन है?

मैं तत्काल अंदर गया, मैंनें उनकी और वहां मौजूद लोगों की शक्ल देखी और सभी को नमस्कार करते हुए निकल गया।

उपरोक्त बातों का तात्पर्य यह है कि, जो व्यक्ति अब जन सेवा करने बात कह रहा है, क्या उसकी बातों पर भरोसा करना चाहिए?

एक अहम सवाल यह भी है कि, जो व्यक्ति पत्रकारों को हरामखोर के नाम से पुकारता है, उसकी मानसिकता क्या समाजहित की हो सकती है?

मेरी नजर में तो कत्तई नहीं! अब सोचना आपको है, क्योंकि आपके अनुजों और शहर का भविष्य आपको देखना है!

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विगत तीन दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।

(लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। संपादक मंडल का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।)

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