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मोदी के कुटिल पराक्रम से बुरी तरह घायल लोकतंत्र

जयपुर. रविवार 26 अप्रैल 2020. वैशाख शुक्ल तृतीया विक्रम संवत 2077. धर्म प्रेमी हिन्दुओं के बड़े त्यौहार अक्षय तृतीया पर पूरा देश एक आयातित वायरस कोरोना के कारण लॉकडाउन है. समस्त धार्मिक कार्य स्थगित हैं. कोरोना  को अत्यंत जानलेवा बताकर जो भयानक प्रचार कर दिया गया है, उसके पीछे भारतीय जनता के खिलाफ बहुत बड़ी साजिश के संकेत मिलने लगे हैं. यह साजिश भारतीय लोकतंत्र को ख़तरनाक किस्म की तानाशाही में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है, जो सफल होती दिख रही है. आज संविधान एक दर्शनीय पुस्तक बन गया है. कानून का अर्थ एक व्यक्ति की सनक है. लोकतंत्र को जीवित रखने वाले उसके चार स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया खोखले कर दिए गए हैं, जिनमें से तीन बुरी तरह भरभरा कर ढह जाने वाले हैं. सिर्फ कार्यपालिका बचेगी जिसका स्वरूप पुलिस के डंडे के रूप में लोग देखते रहेंगे. आदरणीय नरेन्द्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को बहुमत मिलने के बाद प्रधानमंत्री बनकर यह पराक्रम कर दिखाया है.

मार्च के पहले हफ्ते तक मोदी को कोरोना की कोई चिंता नहीं थी.सबकुछ सामान्य था. हालांकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी फरवरी में चेतावनी दे चुके थे. लेकिन मोदी भक्तों के बीच पप्पू घोषित होने से उनकी बात को गंभीरता से नहीं लिया गया. मार्च में चीन और यूरोप से कोरोना के कारण लोगों के मरने की खबरें आने लगी थी. मार्च के दूसरे हफ्ते में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल खतरे को भांप गए थे. इसके साथ ही केरल, छत्तीसगढ़, राजस्थान और गोवा की सरकारों ने भी कोरोना से बचने के एहतियाती उपाय शुरू कर दिए थे. यह देखकर मोदी के दिमाग़ की ट्यूबलाइट जली और उन्होंने एक तीर से एकसाथ तीन-चार निशाने लगाने का कार्यक्रम बना लिया. सबसे पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की सहायता से दिल्ली में तब्लीगी मरकज खाली करवाकर जमात के लोगों को विभिन्न राज्यों में भेज दिया गया. फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा में शामिल कर मध्य प्रदेश में उनके समर्थक विधायकों को भी भाजपा सदस्य बना लिया गया और वहां कमलनाथ की कांग्रेस सरकार गिरा दी. इसके बाद 22 मार्च को जनता कर्फ्यू की घोषणा कर ताली-थाली बजवा ली गई. फिर 24 मार्च की रात आठ बजे  21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा कर दी जो उसी रात 12 बजे से लागू हो गया. वह अवधि समाप्त होने के बाद तत्काल प्रभाव से 19 दिन तक और लॉकडाउन. इस तरह मोदी के खतरनाक एजेंडे के तहत पूरा देश 40 दिन के सलंग लॉकडाउन में चला गया. घोषित कारण यह कि लोगों को एक बीमारी से मरने से बचाना है. अघोषित कारण यह कि संघ के ख़तरनाक सांप्रदायिक एजेंडे को लागू करते हुए ऐसी तानाशाही स्थापित करना है, जिसमें भारत का प्रत्येक नागरिक प्रधानमंत्री का गुलाम बनकर रहे और विदेशों में भारत के लोकप्रिय नेता के रूप में मोदी का डंका बजता रहे.  कोरोना के सहारे मोदी ने अपनी तमाम नाकामियों को छिपा लिया है और अर्थव्यवस्था में गिरावट का ठीकरा भी कोरोना पर फोड़ दिया है. अब एक बार फिर मोदी सीना तान कर खड़े होने की स्थिति में आ गए हैं. इतने लंबे तालाबंदी से कोरोना का तो कुछ नहीं बिगड़ा, लेकिन देश का भयानक नुकसान अवश्य हो चुका है.

26 अप्रैल के अख़बार में पूरे देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या 26,076 है और कुल 823 लोग मर चुके हैं. इन आंकड़ों के आधार पर यह नहीं माना जा सकता कि 139 करोड़ की जनसंख्या वाले भारत के लिए कोरोना इतनी बड़ी महामारी है, जिसकी वजह से पूरे देश को इस कदर तालाबंदी करना पड़े, जिससे गरीबों के सामने भुखमरी की स्थिति पैदा हो जाए. यह अमेरिका और यूरोप के देशों के लिए महामारी हो सकती है, भारत के लिए नहीं, क्योंकि भारतीयों की जीवन शैली यूरोप अमेरिका वासियों से अलग है. यहां स्वास्थ्य सुविधाओं पर सरकार पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत कम खर्च करती है, फिर भी लोग हंसते खेलते अपना जीवन गुज़ार लेते हैं. भारत के 35 फीसदी से ज्यादा लोग स्वास्थ्य की चिंता में डॉक्टरों और अस्पतालों के चक्कर नहीं लगाते हैं. यह बात अंतर्राष्ट्रीय मेडिकल माफिया को बहुत अखरती है.

मोदी ने पूरे देश में 40 दिन का लॉकडाउन कर कोरोना की प्रतिष्ठा को स्थापित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय मेडिकल माफिया का दिल जीत लिया है. लॉकडाउन में यह प्रचार भी जमकर हो चुका है कि इस बीमारी को फैलाने में मुसलमानों की मुख्य भूमिका है. बीमारी का प्रचार बहुत है लेकिन इलाज की व्यवस्था सरकार के पास नहीं है और मोदी सरकार इसको लेकर ज्यादा गंभीर भी नहीं है. जनता के लिए सिर्फ यह संदेश है कि कुछ मत करो, घर में बंद रहो, पूरी तरह निकम्मे हो जाओ, जो कुछ करना हो, वह मोबाइल से या लेपटॉप से करो, चेहरे पर मास्क लगाओ, एक दूसरे से दो गज दूर रहो. और मोदी भक्तों ने जमकर हवा भी बना रखी है कि मोदी जो कर रहे हैं बहुत अच्छा कर रहे हैं. उन्होंने लाखों लोगों को मरने से बचा लिया. अमेरिका में ट्रम्प अपने देशवासियों को नहीं बचा सके. मोदी ने बचा लिया.

यह वही देश है, जहां एक बार एक अफवाह पर लाखों लोग गणेश प्रतिमाओं को दूध पिलाने के लिए उमड़ पड़े थे. तो बीमारी की अफवाह फैलाना कौनसी बड़ी बात है? खास तौर पर तब, जब पश्चिमी देशों में इससे बड़ी संख्या में लोग मर चुके हों. हैरानी की बात यह है कि देश का बुद्धिजीवी वर्ग मौन है, सारे मंत्री, सांसद, विधायक आदि चुप्पी साधे हुए हैं, न्यायाधीश अपने वातानुकूलित कक्षों में आराम फरमा रहें हैं और मोदी की जय जयकार करने वाले भाड़े के टट्टू मीडिया की भूमिका निभा रहे हैं. देश चलाने का ठेका पूरी तरह मोदी को दे दिया गया है, जो लेशमात्र भी देशभक्त नहीं है. उनके मंत्रिमंडल के सदस्य कठपुतली की भूमिका निभा रहे हैं, जिनमें राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी जैसे समझदार नेता भी शामिल हैं. मोदी के लोकतंत्र विरोधी कुटिल पराक्रम के सामने भारत के सभी नेता नपुंसकों के झुंड में तब्दील होते हुए दिखाई दें रहे हैं. क्या उनमें घायल लोकतंत्र को फिर से खड़ा कर देने की क्षमता है?

ऋषिकेश राजोरिया

लेखक देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। देश, समाज, नागरिकों, व्यवस्था के प्रति चिंतन और चिंता, उनकी लेखनी में सदा परिलक्षित होती है।

(लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। इससे इंडिया क्राईम के संपादक या प्रबंधन का सहमत होना आवश्यक नहीं है – संपादक)

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