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क्या मोदी को अपनी बदनामी की बिलकुल चिंता नहीं?

कोरोना बुरी तरह फैल रहा है। श्मशानों और कब्रिस्तानों में लाशों का अंबार दिल दहलाने वाली हकीकत है। यत्र तत्र सर्वत्र कोविड-19 की दूसरी लहर के समाचार हैं। किसी भी देश की सरकार किस हद तक नाकाम हो सकती है, भारत का मौजूदा वातावरण इसका उदाहरण है।

अक्टूबर-नवंबर 2019 में कैसे कोविड वायरस का जन्म हुआ। चीन से उसके करियर दुनिया भर में फैले। कैसे पश्चिमी देशों के लोग इस अजनबी वायरस की चपेट में आए और उसके आधार पर पूरी दुनिया में आम जनता को कसने और मेडिकल कारोबार का विस्तार करने की पटकथा तैयार की गई। यह दो ढाई साल पुराना इतिहास है। कोरोना आ भी गया, लॉकडाउन हो गया, सोशल डिस्टेंसिंग के नियम लागू हो गए, हर नागरिक के लिए मास्क अनिवार्य हो गया। अर्थव्यवस्था पटरी से उतर गई। छोटे काम धंधे तबाह हुए। विदेशी कंपनियों के लिए रास्ता बना। देश के संसाधनों और सेवाओं पर कॉर्पोरेट घरानों की पकड़ मजबूत हुई। लोग स्वतंत्रता और गुलामी में फर्क करना भूल गए। देश की एक बड़ी आबादी को एक झटके में निरीह और असहाय मनुष्य में तब्दील कर दिया गया।

सर्दी, जुकाम, बुखार आदि पहली बार नहीं हो रहे हैं। सर्दियां खत्म होने के बाद जब गर्मियों का मौसम आता है तो कई लोगों को सर्दी जुकाम की समस्या होती है। कोरोना वायरस की घोषणा के बाद पिछले दो साल से सर्दी, जुकाम, बुखार आदि के मरीजों को कोरोना संक्रमित माना जा रहा है। सामान्य अस्पतालों में कोविड का इलाज नहीं होता है। आरटी-पीसीआर टेस्ट के जरिए तय होता है कि व्यक्ति पॉजिटिव है या निगेटिव। कोविड मरीजों को अलग रखा जाता है। उन्हें रखने के लिए अस्थायी जगहें तय की जा रही हैं, जहां सिर्फ कोविड मरीज ही रह सकते हैं। कोविड का इलाज मेडिकल साइंस पढ़े डॉक्टर अभी तक नहीं जानते, इसलिए वे पिछले दो साल से कई दवाओं का परीक्षण कर रहे हैं। इस बार रेमडेसिविर की धूम है। डॉक्टरों के इलाज से काफी लोग बच जाते हैं, कुछ लोग मर जाते हैं। मरने वालों की संख्या का प्रचार समाज में बीमारी का आतंक पैदा करता है।

पिछले साल मार्च-अप्रैल में भी यही सब हुआ था। संक्रमण आज की तुलना में कई गुना कम था, फिर भी ऐसा माहौल बना, जैसे कोरोना का स्वागत किया जा रहा है। कोरोना का स्वागत करने के लिए लोगों ने ताली-थाली बजाई, दीपक जलाए। घरों में बंद रह लिए। लेकिन मोदी सरकार ने देश के हैल्थ सिस्टम पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया। मोदी को राम मंदिर का शिलान्यास करना था। नया संसद भवन बनाने के लिए कागजी कार्रवाई पूरी करनी थी। मजदूर विरोधी और किसान विरोधी कानून लागू करने थे। बिहार का चुनाव जीतना था, फिर बंगाल की तैयारी करनी थी। इतने महत्वपूर्ण काम सामने थे तो अस्पतालों की चिंता कौन करता?

देश को कोरोना से बचाने के उपाय करने की बजाय मोदी विश्व में वाहवाही लूटने के प्रपंच करते रहे। विभिन्न देशों को वैक्सीन भिजवा दी, दवाएं भिजवा दी, ऑक्सीजन भिजवा दी। देश के भीतर आसन्न बीमारी से निबटने के लिए हैल्थ सिस्टम में सुधार करने का कोई प्रयास नहीं किया। मोदी के पास अपना खुद का प्रचार करने के अलावा और कोई काम नहीं है। महामारी के भयानक दौर में वे आईपीएल जैसे फिजूल आयोजन बंद नहीं करवा सकते हैं। हर जगह हर तरीके से भाजपा को चुनाव जिताने के अलावा उनके जीवन का कोई अन्य उद्देश्य भी प्रतीत नहीं होता है। वह अपनी पार्टी का नेतृत्व भले ही कर लें, देश का नेतृत्व करना उनके बस की बात नहीं है। यह कोरोना महामारी ने साबित कर दिया है।

भारत में इस समय कोरोना संक्रमितों की संख्या 1.80 करोड़ बताई जाती है। करीब 3 करोड़ एक्टिव केस हैं। करीब 15 करोड़ लोग ठीक हो चुके हैं। मरने वालों की संख्या 2 लाख तक पहुंच रही है। हैल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर पूरी तरह ध्वस्त है। डॉक्टरों और नर्सों की भारी कमी है। अच्छे अस्पताल सिर्फ बड़े शहरों में हैं। उनमें भी ज्यादातर प्राइवेट हैं। कोविड पॉजिटिव मरीज अस्पताल में भर्ती होने के बाद या तो बच जाता है, या मर जाता है। पूरे देश में किसी भी मोहल्ले के घरों में लोगों के मरने की खबर नहीं है। जो भी मर रहे हैं, अस्पतालों में ही मर रहे हैं। श्मशानों और कब्रिस्तानों में जो शव पहुंच रहे हैं, वे अस्पतालों से पहुंच रहे हैं।

क्या यह लोगों का भरोसा टूटने वाली बात है? अच्छे स्कूल, अच्छे डॉक्टर, अच्छे प्रोफेसर किसी भी देश को अच्छा बनाने की क्षमता रखते हैं। आज देश जिस हैसियत में खड़ा है, उसके पीछे असंख्य लोगों का त्याग है। भारत की नींव मजबूत करने के लिए कई महामानवों ने तपस्या की है। भारत का एक लंबा इतिहास है, जो बहुत उतार-चढ़ाव से भरा हुआ है। इसे एक अखंड राष्ट्र बनने में सदियां लगी हैं। दुर्योग से पाकिस्तान बन गया। लेकिन दो ही देश बने। उसके पहले कई राज्य थे, रियासतें थीं। कई राजा राज्य करते थे, नवाबों का शासन था। उनका सबका विलय होने के बाद दो देश बने हैं, जो बाद में तीन हो गए। लेकिन अब कोरोना के बहाने भारत की नींव पर जबर्दस्त प्रहार किया जा रहा है।

सात साल पहले भारत विश्व की पांचवें नंबर की बड़ी अर्थ व्यवस्था माना जाता था और देश के लोग आर्थिक रूप से प्रगति कर रहे थे। नोटबंदी के बाद से जो घटनाक्रम देखा जा रहा है, इसमें अब अर्थ व्यवस्था का आकलन कोई नहीं करता। महंगाई और भ्रष्टाचार का हौवा खड़ा करके भाजपा ने चुनाव जीता। अब महंगाई कई गुना बढ़ गई है और भ्रष्टाचार कोरोना काल में स्पष्ट है। सभी देख रहे हैं कि हो रहा है या नहीं हो रहा है। दवाएं ब्लैक में बिक रही हैं। प्राइवेट अस्पताल एक-एक मरीज के लाखों रुपए के बिल बना रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान कई जरूरी वस्तुएं ब्लैक में बिक रही हैं। रेमडेसिविर जैसी दवाओं की कालाबाजारी चल रही है। ऑक्सीजन का संकट पैदा हो गया है। सभी सरकारें सारे काम छोड़कर सिर्फ जनता को कोरोना से बचाने की रणनीति बनाने में व्यस्त हैं।

इस माहौल में भाजपा का आईटी सेल सकारात्मकता के उपदेशों का प्रचार करने लगा है। मोदी की प्रतिष्ठा को बचाने में वे तमाम बड़ी-बड़ी ताकतें व्यस्त हो गई हैं, जिन्हें देश में लूट-खसोट, मनमानी मचाने की सुविधा मिली हुई है। आधा दर्जन से ज्यादा हाईकोर्ट कोविड के मामले में फैसले, निर्देश दे चुके हैं। उन सभी मामलों को सुप्रीम कोर्ट ने अपने पास रख लिया है। कुल मिलाकर हर स्तर पर अफरा-तफरी का माहौल है और राजनीतिक दावपेच चल रहे हैं। कोरोना से भयभीत और मोदी की अंधभक्ति में डूबे देश के करोड़ों नागरिकों ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल बंद कर दिया है। जैसे कोई मदारी अपने करतबों से दर्शकों को वशीभूत कर लेता है, वैसा ही भारत के नागरिकों के साथ भी हो रहा है।

मद्रास हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को कोरोना फैलाने का जिम्मेदार बताते हुए कहा कि उसके खिलाफ हत्या का मामला दर्ज होना चाहिए। इस फैसले का अर्थ यह भी है कि कोरोना महामारी फैलने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की कोई भूमिका नहीं है। क्या चुनाव आयोग ने अपनी मर्जी से पश्चिम बंगाल में आठ चरणों में चुनाव करवाए? मोदी और शाह सहित भाजपा नेताओं ने जो धुंआधार प्रचार किया, क्या उससे कोरोना नहीं फैला?

बहरहाल स्थिति बहुत बिगड़ी हुई है। विश्व शक्ति बनने चला भारत आज विश्व के सामने भिखारी बनकर खड़ा है। दुनिया भर का मीडिया भारत की जो तस्वीर पेश कर रहा है, वह हाहाकारी है। जलती हुई चिताओं की तस्वीरें दुनिया भर के अखबारों में छप रही हैं। इसके बावजूद मोदी सरकार अपना रवैया नहीं बदलेगी। देश के भीतर मीडिया मैनेजमेंट के सहारे मोदी अपनी सरकार को टिकाए रखेंगे। मरने वालों की संख्या बढ़ेगी। आज 2 लाख है। कुछ ही महीनों के बाद 10 लाख हो सकती है और संक्रमितों की संख्या 10 करोड़ तक पहुंच सकती है। क्या मोदी सरकार के पास कोई रोडमैप है? या जुमलेबाजी ही चलेगी? मोदी को यह समझना चाहिए कि छल-प्रपंच से चुनाव जीत लेना एक बात है और देश को चलाना, उसे बीमारियों से बचाना दूसरी बात। मोदी की मीडिया मशीन कोविड महामारी के कारण दुनियाभर में हो रही उनकी बदनामी को बिलकुल नहीं रोक सकती। क्या मोदी को अपनी बदनामी की बिलकुल चिंता नहीं है?

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