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क्या मोदी को गरीबों से घिन आती है?

आदरणीय नरेन्द्र मोदी देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं, जिन्हें देश की गरीब जनता से घिन आती है। वह अपने ही देश के नागरिकों को नीचा दिखाते रहते हैं। लगता है गरीबों की तकलीफें देखकर उन्हें अच्छा लगता है। शौचालय क्रांति से शुरू करते हुए नोटबंदी, जीएसटी और लॉकडाउन तक, उनके सारे काम गरीबों की कमर तोड़ने वाले रहे। इस देश की अस्सी फीसदी से ज्यादा जनसंख्या साधनहीन है और निम्न मध्यम वर्ग या निम्न वर्ग में शामिल है। ये लोग सिर्फ जीने के लिए मेहनत करते हैं और परिवार का पेट भरता रहे, यही उनके जीवन की सबसे बड़ी तमन्ना रहती है। पिछले सत्तर बरसों में इन्हीं गरीबों, किसानों और मजदूरों की मेहनत से आगे बढ़ते हुए देश इस स्थिति तक आ पहुंचा है, जहां मोदी नया संसद भवन बनाने की, अपने लिए हजारों करोड़ रुपए का विमान खरीदने की और प्रधानमंत्री बनने में मदद करने वाले चहेतों को अति संपन्न बना देने की हिम्मत कर पा रहे हैं।

2014 में जनता का भरोसा जीतकर मोदी प्रधानमंत्री बने थे। अब वह देश के सर्वेसर्वा हैं। पूरा देश उनकी उंगली के इशारे पर चल रहा है और बाकी सभी इतर गतिविधियां स्थगित हैं, जहां से नागरिक कुछ मनोरंजन प्राप्त कर सकते थे। मोदी ने अपने इवेंट मैनेजमेंट से देश की तमाम रचनात्मक गतिविधियों को तहस-नहस कर दिया है। अर्थव्यवस्था को वह अपने हिसाब से चला रहे हैं और जनता की कमाई से बनीं सैकड़ों कंपनियों और बैंकों को बेचने की तैयारी कर रहे हैं। कोरोना के कारण बनी परिस्थितियों का उपयोग उन्होंने अपनी राजनीति मजबूत करने में किया। महंगाई और बेरोजगारी की उन्हें कोई चिंता नहीं है। भाजपा में कोई भी नेता ऐसा नहीं है, जो देश के बारे में विचार कर रहा हो। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी हिंदुत्व आधारित राष्ट्र बनाने के अपने संकल्प को भुला दिया है और अब उसकी पूरी ताकत मोदी सरकार को टिकाए रखने और भाजपा की प्रतिष्ठा बचाने में लग रही है।

कोरोना महामारी से सिर्फ भारत ही नहीं, पूरी दुनिया प्रभावित हुई है और अमेरिका में भारत से दो गुना लोगों की मौत इसके कारण हुई है, लेकिन जितनी अफरा-तफरी भारत में देखी गई, वैसी किसी अन्य देश में नहीं देखी गई। शहरों का स्वास्थ्य का ढांचा बिगड़ गया। सामाजिक समीकरण बदल गए। नागरिकों में ऊंच-नीच का भेदभाव बढ़ा। विपक्ष के संगठित नहीं होने का पूरा फायदा मोदी सरकार ने उठाया और जनभावनाओं को दरकिनार करते हुए अपनी मनमानी की। धारा 370 हटाने की घोषणा कर कश्मीर में मनमानी की। राम मंदिर का शिलान्यास कर दिया। संघ ने उसके लिए 2500 करोड़ रुपए का चंदा इकट्ठा कर दिया।

मोदी सरकार ने नई दिल्ली का नक्शा बदलने की तैयारी कर ली। नया संसद भवन, नया प्रधानमंत्री निवास, नया उपराष्ट्रपति निवास, नए मंत्रालय भवन बनाने का प्रस्ताव पारित कर लिया। किसानों के खिलाफ 3 कानून बना दिए। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव जीतने के लिए केंद्र सरकार ने और भाजपा ने रिकॉर्डतोड़ ताकत लगाई, लेकिन सफलता नहीं मिली। इसके बाद मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ। उसमें 42 फीसदी मंत्रियों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं। इनमें बंगाल के निशीथ प्रामाणिक गृह राज्यमंत्री बनाए गए हैं, जो बांग्ला देश में जन्मे बताए जाते हैं और जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले हैं। जो मंत्री पत्रकारों से बात करते रहते थे, उन्हें हटा दिया, जिनमें रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावडेकर और डॉ. हर्ष वर्धन प्रमुख हैं। बाकी सभी मंत्रियों को पाबंद कर दिया कि वे मीडिया दूरी बनाकर रखें।

इस पूरे घटनाक्रम के बीच देश की बहुसंख्यक जनता का जीवन बुरी तरह हिचकोले खा रहा है। नोटबंदी और जीएसटी के कारण हुए नुकसान के बाद जो बची-खुची इम्युनिटी थी, वह मार्च 2020 में बगैर सोचे समझे लगाए गए लॉकडाउन ने खत्म कर दी। उसके बाद लोगों पर डिजिटल होने का भारी दबाव है और हकीकत है कि जो लोग संपन्न हैं, वे ही डिजिटल हो सकते हैं। साधारण गरीबों को तो पेट भरने की ही चिंता रहती है। गरीबों के जो बच्चे किसी तरह पढ़-लिखकर आगे बढ़ने के रास्ते बनाते हैं, उनका भविष्य अंधकार में धकेल दिया गया है, क्योंकि दो साल से सरकारी शिक्षा व्यवस्था करीब-करीब ठप है और मोदी सरकार देश के सभी बच्चों को मुफ्त में शिक्षा उपलब्ध करवाने के पक्ष में नहीं है।

बाजार की ताकतों से लोगों को संदेश मिल रहा है कि वे अपने बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाएं। लोगों को कई तरह के एप में उलझा दिया गया है और इससे एक पूरी पीढ़ी बर्बाद हो रही है। मोदी दावा करते हैं कि वह देश के करोड़ों गरीब लोगों को मुफ्त अनाज बांट रहे हैं, इसलिए किसी को शिकायत नहीं होनी चाहिए। किसानों के खाते में कुछ रुपए पहुंच रहे हैं, जिसे किसानों की भलाई के रूप में देखा जाना चाहिए। और यह अनाज और रुपए बांटने के लिए पता नहीं क्या-क्या बेचा जा रहा है? क्या मोदी देश की जनता को भिखारी समझते हैं?

अब उत्तर प्रदेश का चुनाव जीतने के लिए जनसंख्या नियंत्रण की बात उठ रही है। इसमें भी राजनीति है और स्पष्ट संकेत है कि देश में गरीबों की जो जनसंख्या है, वह मोदी सरकार को और भाजपा को अच्छी नहीं लगती है। मोदी सरकार ने पहले चरण में देश की अधिकांश मुद्रा भाजपा की अंटी में पहुंचा दी। बहुत ही किफायत से काम करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े संगठनों की अट्टालिकाएं बनने लगीं। जगह-जगह भाजपा के बहुमंजिला पांच सितारा, सात सितारा होटल जैसे कार्यालय बनने लगे।

अब मोदी और उनकी टीम देश को सुधारने के दूसरे चरण में जनसंख्या पर निशाना साध रही है। ऐसे लोगों की तलाश की जाएगी, जो देश की जनसंख्या बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं और उनसे सख्ती से निबटा जाएगा। साफ समझ में आता है कि मोदी सरकार के लिए सिर्फ 30-35 करोड़ लोगों को ही इस देश में ठीक से रहने का हक है, बाकी देश पर बोझ हैं। उन्हें भेड़ों की तरह हांका जा सकता है। उन्हें जानवर समझा जा सकता है। जो भाजपा को वोट नहीं देता है, उसे ठोक-पीटकर बराबर किया जा सकता है। अभी उत्तर प्रदेश में हुए पंचायत चुनावों के तहत ब्लॉक प्रमुख और जिला प्रमुख चुनावों में इसकी बानगी देखी जा चुकी है। मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी निभाना बंद कर दिया है। मोदी हित की बजाय देश हित की बात करने वाले लोग मोदी सरकार को पसंद नहीं।

मोदी ने पता नहीं ऐसा क्या टोना-टोटका किया है, ऐसी कौन सिद्धि हासिल कर ली है कि देखते ही देखते पूरे देश की एकछत्र कमान उनके हाथ में आ गई है और उनकी टीम में कोई भी प्रभावशाली मंत्री दिखाई नहीं देता। वह मंत्रि मंडल विस्तार के समय एक बड़े हाल में मंत्रियों को सामने छोटी सी फोल्डिंग चेयर पर बैठाकर उन्हें निर्देश देते हुए फोटो सेशन करते हैं और पूरा देश समझ जाता है कि गुरु ज्ञान दे रहा है और चेले आज्ञाकारी भाव से सुन रहे हैं। इनमें आगे की कतार में ज्योतिरादित्य सिंधिया भी थे, जो महाराजा कहलाते हैं। ये सभी मंत्री देश के लिए ऐसा क्या काम करेंगे, जिनसे गरीबों, मजदूरों और किसानों का भला हो? 

शिक्षा, व्यवसाय, मैन्युफैक्चरिंग, रिटेल, होटल, रेस्तरां, मेडिकल, ऐसा कौनसा सेक्टर है, जिसने मोदी सरकार की नीतियों के कारण बरबादी नहीं देखी?

गरीबों के लिए चलने वाले स्कूल कॉलेज 2 साल से बंद हैं। करोड़ों युवाओं के भविष्य पर पूर्ण विराम लगा दिया गया है। आर्थिक गतिविधियों में लोगों को थोड़ा-बहुत सहारा सहकारिता क्षेत्र से था, जो कि राज्य सरकारों के तहत देश की अर्थ व्यवस्था को बचाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा था, उसके लिए भी एक अलग मंत्रालय बना दिया गया है और उसका अतिरिक्त प्रभार गृहमंत्री अमित शाह ने संभाल लिया है। समझा जा सकता है कि मोदी सरकार के तहत देश के पुनर्निर्माण और भारतीय लोकतंत्र के पुनर्गठन में देश के 80 करोड़ साधनहीन नागरिकों की क्या हैसियत रहने वाली है?

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