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मुसलमान क्या करें कि बहुजनों को उन पर भरोसा बने?

मुसलमानों की कुल आबादी से कितने प्रतिशत लोग सोशल मीडिया पर मुरादाबाद की पत्थरबाजी की घटना की निन्दा करें, तब यह माना जाएगा कि मुसलमान अपने वर्ग की गलत घटनाओं पर विरोध दर्ज कराते हैं।

इस समय मुसलमानों से सिर्फ यही सवाल किया जा रहा है कि वे मुरादाबाद की घटना का विरोध क्यों नहीं कर रहे हैं।

सच्चाई इसके उलट है।

दिल्ली के निज़ामुद्दीन की घटना के बाद कई दिन तक सोशल मीडिया पर इस सवाल के झंडे गाड़े जाते रहे कि मुस्लिम समुदाय इस घटना का विरोध नहीं जता रहा है।

निजामुद्दीन, इंदौर और मुरादाबाद ही नहीं इससे पहले भी मुस्लिम समाज ने मुसलमानों द्वारा किये गए मूढ़ता के कामो का विरोध किया है। आज भी कर रहा है और कड़ाई से कर रहा है।

इसके बावजूद जिन्हें सुनायी और दिखायी नहीं दे रहा है, उनको संतुष्ट करने के लिये क्या किया जाए।

मुस्लिम समाज को लेकर उठाए जा रहे सवालों के शोर में इस मुद्दे पर कितने हिंदू गंभीरता से यह चर्चा कर रहे हैं कि देश में करोना महामरी की आड़ में अभूतपूर्व हिंदु मुस्लिम विभाजन किया जा रहा है।

अपने अपने घरों में बैठ कर सवाल उछालने और वीडियो वायरल करने से दोनो वर्गों का कोई फायदा नहीं होना है।

इससे एक दूसरे के प्रति मन में पाली कुठाओं और नफरत का प्रदर्शन ही हो रहा है।

देश मे दूरागामी तबाही की छवियां उभर रही हैं।

यह एक दूसरे समुदाय के करीब होने का समय है।

उनके भय, असुरक्षा और ग़लत फहमियों पर संयमित हो कर बोलना और लिखना प्राथमिकता बननी चाहिये। समय बहुत ही भयावह है।

इकबाल रिजवी

पत्रकार, लेखक व फिल्म इतिहासकार

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लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। इससे इंडिया क्राईम के संपादक या प्रबंधन का सहमत होना आवश्यक नहीं है – संपादक

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