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2024 में तय हो जाएगा भारतीय लोकतंत्र का भविष्य

समय बड़ा बलवान। यह कभी कैसा होता है तो कभी कैसा। मनुष्य समय पर या तो सवारी करता है, या समय के साथ बहता है। मनुष्यों से देश बनता है और सभी देशों की हालत ऐसी ही है। वे परंपरा के साथ समय के प्रवाह में बह रहे हैं। भारत भी उनमें से एक है, जहां बहुत से लोगों को बुनियादी अधिकारों से वंचित करते हुए लोकतंत्र के ट्रेडमार्क के साथ जीवित रहने के लिए बाध्य किया जा रहा है। अंग्रेजों से स्वतंत्रता मिलने के बाद यह देश अपनी तासीर के साथ अंतरविरोधों से जूझता हुआ लोकतांत्रिक तरीके से आगे बढ़ रहा है। लेकिन अब लोकतांत्रिक तरीके खत्म करते हुए हर जिम्मेदार जगह पर कठपुतलियां तैनात की जा रही हैं।

खास तौर से मीडिया अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति में पहुंच गया है, जिसका सिर्फ एक स्वर चालू है, बाकी सभी स्वर बंद है। देश की जनता को एकजुट करने की बजाय नागरिकों को उनके नाम के आधार परिभाषित करते हुए भेदभाव पैदा किया जा रहा है। धर्म के आधार पर पहले ही भयंकर खाई खोदी जा चुकी है। अब जाति के आधार पर गड्ढे खोदे जाएंगे। जहां पूरी दुनिया अन्य बड़े मुद्दों में उलझी होगी, तब भारत के लोकतंत्र को महान बनाने वाले नेता जाति आधारित राजनीति करते हुए दिखेंगे। अलग-अलग लेबल के साथ कठपुतलियां तैनात कर उनका सार्वजनिक प्रदर्शन करते हुए हम बड़े या वे, इस पर लड़ाई शुरू कर दी गई है और महंगाई, बेरोजगारी, नागरिकों की व्यक्तिगत आर्थिक स्थिति जैसे मुद्दे बहुत पीछे छोड़े जा रहे हैं।

ईंधन महंगा, गैस महंगी, सभी अनिवार्य वस्तुएं महंगी और सरकार की नीतियां महंगाई बढ़ाने वाली। हम ये कर देंगे, वो कर देंगे। इतने करोड़ का पैकेज, इतने करोड़ की राहत, इतनी सारी योजनाएं। टीवी देखने बैठें तो यही लगता है कि सरकार बहुत शानदार काम कर रही है, लेकिन चौराहे पर खड़ा नागरिक हैरान परेशान है। दस साल पहले वह खाने पर जितना खर्च करता था, वह अब दो गुना हो चुका है।

लोकतंत्र में सरकार की परिभाषा होती है, जनता की जनता द्वारा चुनी गई सरकार। सरकार के लिए जनहित को सर्वोपरि मानते हुए ही देश में रेल, बस की सार्वजनिक परिवहन सेवाएं शुरू की गई थी। बिजली, पेट्रोल, डीजल, गैस आदि की सप्लाई और कीमतों पर सरकार की नजर बनी रहती थी।

उस समय भाजपा विपक्ष में थी और महंगाई के मुद्दे पर भीषण आंदोलन किया करती थी। टीवी पर भाजपा नेता गला फाड़कर चिल्लाते हुए दिखते थे। अब भाजपा सरकार में है। विपक्ष नदारद है और महंगाई पर कोई लगाम नहीं है। डिजिटाइजेशन अलग हो रहा है, जिससे गरीबों का तो पूरा मरण ही समझिए। उनका जीना-मरना एक बराबर है। वे सिर्फ वोटर हैं, जिनसे सरकार कभी भी कहीं भी लाइन लगवाकर सरकार वोट डलवा सकती है।

अब वोट डालने के लिए भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन आ गई है। मशीन मशीन होती है। हर मशीन को चतुर चालाक लोग अपने हिसाब से मैनेज कर सकते हैं। इस क्रम में 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को भारी बहुमत मिला और प्रचार हुआ कि यह कांग्रेस का विरोध, संघ की ताकत और भाजपा के माइक्रो मैनेजमेंट, बूथ प्रबंधन का कमाल है।

अब कांग्रेस का विरोध मुसलमानों के विरोध में परिवर्तित करने की कोशिश हो रही है। कांग्रेस को मुसलिमों की सबसे बड़ी हिमायती पार्टी के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। लोगों को सैकड़ों साल पुरानी घटनाएं याद दिलाई जा रही हैं और उन्हें राजनीतिक रूप से बदला लेने के लिए तैयार किया जा रहा है। यह सिलसिला कभी खत्म नहीं होने वाला है। महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, भीमराव अंबेडकर सहित तमाम महान नेता इस बात को भलीभांति समझते थे, इसलिए उन्होंने मिलजुलकर देश के विकास की नींव रखी थी। धर्म निरपेक्षता को साधते हुए एक भवन खड़ा किया था, जिसकी समयानुसार रिपेयरिंग नहीं होने का खामियाजा अब देश को भुगतना पड़ रहा है।

अब देश की तस्वीर तेजी से बदल रही है। नोटबंदी, जीएसटी के बाद कोरोना महामारी के दौरान भाजपा के राजनीतिक प्रबंधन ने अब भारतीय लोकतंत्र को इस कदर कस दिया है कि कोई भी सरकार का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। सरकार के पास पूरी ताकत है। वह जो भी कर रही है बहुमत के बहाने कर रही है और जनता की कमाई से बनी विशाल कंपनियों को बेचने की तैयारी कर रही है। दिल्ली का भूगोल बदला जा रहा है और लोकतंत्र के ढांचे को इस तरह भाजपा के अनुकूल बनाने का प्रयास किया जा रहा है कि भविष्य में कभी भी कोई भी विपक्षी पार्टी का नेता सिर उठाने लायक न रहे।

यह बहुत ही नाजुक समय है। अगर इस समय लोकतंत्र को संभाल लिया गया तो ठीक है, वरना आगे चलकर हम भारत को चीन और रूस की कतार में ही खड़ा पाएंगे, जहां नागरिकों को सार्वजनिक रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। वे सरकार के खिलाफ कुछ नहीं कह सकते।

2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को ट्रेलर समझिए। पूरी फिल्म 2024 में सामने आएगी, जिसके बाद तय हो जाएगा कि देश में लोकतंत्र जीवित रहेगा या नहीं।

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