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विक्रम विश्वविद्यालय: क्या जीवन्तता लौटेगी?

निरुक्त भार्गव, वरिष्ठ पत्रकार, उज्जैन

उज्जैन में रहने वाले इस बात पर फ़ख्र कर सकते हैं कि उनके पास एक विश्वविद्यालय है, सन 1956 से! पक्की जानकारी है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का लक्ष्य हासिल करने के बाद विक्रम विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए अनेकानेक बुद्धिजीवियों और समाजसेवियों ने आम नागरिक और ऊर्जावान छात्रों को लेकर बाकायदा सड़कों पर आन्दोलन किए. उस दौर में सैंकड़ों और हजारों किलोमीटर तक विश्वविद्यालय तो छोड़िए, स्कूल और कॉलेज तक नहीं हुआ करते थे! फिर भी उज्जैन को विश्वविद्यालय मिला और उसे बनाने और बसाने में ‘महाराजा विक्रमादित्य’ जैसे अद्वितीय शासक के नाम को जोड़ा गया!

चौराहों की बहुतेरी किंवदंतियों के बावजूद आज विक्रम विश्वविद्यालय 65 बरस का हो चला है! इस संस्थान की बात को अलग भी रख दें तो ये एक विस्मयकारी तथ्य है कि मध्य प्रदेश का कोई भी विश्वविद्यालय देश के ‘टॉप-100’ विश्वविद्यालयों में शुमार नहीं है, इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय जैसे ‘हैवीवेट’ विश्वविद्यालयों की तमाम कवायदों के बावजूद! जमाना कहता है कि देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में बहुत चमक-दमक है, वहां का कैंपस अत्यधिक मुफीद है और उत्तीर्ण विद्यार्थियों को तो सब-जगह हाथों-हाथ लिया जाता है! नैक वगैरह संस्थाएं तो इंदौर में बिछी पड़ी रहती हैं!

विक्रम विश्वविद्यालय से सम्बद्ध माधव विज्ञान महाविद्यालय, उज्जैन और फिर राजनीति शास्त्र अध्ययनशाला में एक नियमित विद्यार्थी के रूप में क्रमश: बीएससी, एमए और एमफिल करने के व्यतीत काल यानी 1987-1993 को याद कर मैं खुद को गौरवान्वित महसूस करता हूं! कॉलेज में प्रवेश करते समय तमाम प्रोटोकॉल (रैगिंग नहीं) के बीच प्राचार्य प्रो छजलानी जी की सूक्ष्म निगाहें…क्लासरूम और लैबोरेट्रीज में निरंतर मोनिटरिंग…स्पोर्ट्स की गतिविधियां…एनसीसी और एनएसएस में भागीदारी करने के गुरुजनों के प्रोत्साहन…बब्बू चायवाले के यहां अवसर विशेष पर बैशिंग…शायद वो बैचलरी का मुकम्मल जहां था!

कॉलेज से निकले तो यूटीडीस में बिना सिफारिश एडमिशन मिलने की बात ही कुछ अलग थी, मानों करियर निर्धारित होने की कोई स्वर्ग सीढ़ी मिल गई! एकदम स्पंदित वातावरण: मनमाफिक कैंटीन और सेंट्रल लाइब्रेरी में पढ़ने के लिए एक रूम! गुरूजन तो प्राय: वैसा ही व्यवहार करते थे, जैसे संभवत: गुरूकुलों में हुआ करता था! देखते ही देखते कब कई सारे लोग पीएचडी हो गए, हालांकि उन्हें एमफिल करने में पसीने छूट जाते थे…

आज इसी विक्रम विश्वविद्यालय के क्या हाल हैं, किसी से छिपा नहीं! यूटीडीस में क्या हो रहा है, सब जानते हैं! मेरी आंखें और कान बोथराने लगे हैं, प्रो अब्दुल कलाम जैसी शख्सियतों के दीक्षांत वक्तव्य सुनने… मैं थक गया ये जानने में कि यहां हो रहे रिसर्च और एनालिसिस की रिपोर्ट दुनिया को बता सकूं! कोई बताएगा कि कैंपस में कैंटीन क्यों नहीं है? सेंट्रल लाइब्रेरी में क्यों बसांध आती है? प्लेग्राउंड के क्या हाल हैं?

मैं भी एक पॉजिटिव व्यक्ति हूं: पहली बार देख रहा हूं कि महज एक साल में आप अपने-ही लोगों द्वारा सम्मान और अभिनन्दन करवा रहे हैं! जो जनप्रतिनिधि 12वीं भी उत्तीर्ण नहीं हैं, वो कुलाधिपति के समक्ष सार्वजनिक समारोह में खुद को विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन का संगी-साथी बता रहे हैं!

क्षमा करेंगे, यदि ये ही सब उपक्रम करने से हमारे विश्वविद्यालय का मान और सम्मान बढ़ेगा और कैंपस में जीवन्तता आएगी, तो एक बुके मेरी तरफ से भी स्वीकारें! अगर आपका चार साल का यशस्वी कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी हम ठगे जाते हैं तो फिर क्या? 132 नए कोर्सेस! मेडिकल कॉलेज…

लेखक उज्जैन के वरिष्ठ पत्रकार हैं। विगत तीन दशकों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। संप्रति – ब्यूरो प्रमुख, फ्री प्रेस जर्नल, उज्जैन

(उक्त लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। संपादक मंडल का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है।)

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