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e-Revolution: ई-बाइक और ई-कार की क्रांति का स्वागत है पर घटते ऊर्जा स्रोतों के बीच इतनी बिजली कहाँ से आएगी?

एयरकंडीशनर, कार, बस घरों में जैसे करोड़ों लग गए और तापमान वृद्धि हो गयी, हम फिर कुचक्र में फंस गए कि अब इनके बिन काम नही चलता, ठीक वैसे ही अदूरदर्शिता के ई-क्रांति, पेस्टीसाइड ग्रीन क्रांति की तरह अविवेकपूर्ण साबित न हो जाए!

भारत ने अपना “आज” बहुत बार सुधारा है! कल की नहीं, आज की जीने-मरने की स्थिति को जीता है।

नतीजा! आज हम बीते कल को याद कर दुखी हैं कि प्रकृति पहले, जीवन पहले  बेहतर था, क्वालिटी के हिसाब से अधिक नैसर्गिक था।

सस्ता और सबसे सस्ता मासिक खर्च! हर जगह यह सोच आज चीनी उत्पादों को गले लगा ही चुकी है। पुनः वही विचार कि कल की भी सोचें!

बस आज जिंदा रहना ही सबसे बड़ा प्रश्न सदियों से बना रहा! क्यों ?

क्या इसे ही योजना निर्माण कहते है ?

प्रतीत तो होता है सब कुछ अनियोजित हो जैसे ।

प्रतीत तो होता है हम रोज बस योजनाएं बनाते रहते है पर पहुंचते नही मंजिल तक।

यूरोप छोड़िए, भूटान, मॉरीशस की जिंदगी को बेहतर महसूस करने लगे राजधानी दिल्ली के बाशिंदे! तो ऐसी प्रगति का समयबद्ध आकलन तो जरूरी ही हुआ ना!

जो हुआ सो हुआ। अब आगे भी वही दोहराव उचित नही।

तो आशा है ई-क्रांति के साथ न्याय होगा।

मनोज शर्मा गांधी

लेखक देश के प्रतिष्ठित लेखक-संपादक, मीडिया कंसलटेंट, निर्वाचन मीडिया प्रभारी, वृत्तचित्र निर्माता, अभिनेता, एवं यूनिवर्सिटी मीडिया फेकल्टी हैं। देश, समाज, नागरिकों, व्यवस्था के प्रति चिंतन और चिंता, उनकी लेखनी में सदा परिलक्षित होती है।

(लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। इससे इंडिया क्राईम के संपादक या प्रबंधन का सहमत होना आवश्यक नहीं है – संपादक)

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