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आरोप पत्र अदालत में दाखिल करने की कोई समय सीमा है?

एडवोकेट विकास पाण्डेय

सतना, मप्र

  • आरोप पत्र (चालान) दाखिल करने की कोई समय सीमा भी होती है, या नहीं?
  • अगर होती है, तो कितनी होती है?
  • क्या कोई विशेष धारा भी है, जिसमें आरोप पत्र दाखिल करने की समय सीमा का कोई मापदंड नहीं है?
  • धारा 498-ए व 406 में कितने दिनों की समय सीमा निर्धारित है?

कानून का यह महत्वपूर्ण सवाल कुछ वकीलों ने उठाया, जिस पर कानूनी तौर पर सभी अपराधों में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धाराओं के अनुसार होता है।

सीआरपीसी में पुलिस द्वारा आरोप पत्र प्रस्तुत करने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है। इसमें न्यायालय द्वारा किसी अभियुक्त के विरुद्ध प्रसंज्ञान लिए जाने के लिए समय सीमा निर्धारित है।

सीआरपीसी का अध्याय 36 इसी मामले में है।

 

धारा 468 में सीमा निर्धारित की है। इसके अनुसार:

  1. यदि कोई मामला केवल जुर्माने से दंडनीय है तो उस की समय सीमा छह माह है;
  2. यदि कोई मामला एक वर्ष से अनधिक अवधि के कारावास से दंडनीय है तो समय सीमा एक वर्ष है;
  3. यदि कोई मामला तीन वर्ष से अनधिक अवधि के कारावास से दंडनीय है तो समय सीमा तीन वर्ष है: तथा
  4. यदि कोई मामला तीन वर्ष से अधिक अवधि के कारावास से दंडनीय है तो उस के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है।

यह समय सीमा अपराध की तिथि से आरंभ होती है।

 

अपराध की सूचना मिलने पर

जब अपराध की जानकारी व्यथित व्यक्ति को या पुलिस अधिकारी को नहीं है, ऐसे में समय सीमा उस दिन से आरंभ होती है, जिस दिन अपराध की सूचना इनमें से किसी को मिलती है।

 

अपराधी की जानकारी हो तो

जब यह पता न हो कि अपराध किसने किया है, ऐसे में समय सीमा तब आरंभ होगी, जब व्यथित व्यक्ति अथवा पुलिस अधिकारी को पता लगता है कि अपराध किसने किया है। ऐसे में अवधि की गणना के लिए वह दिन छोड़ा जाता है, जिस दिन इसकी गणना होनी है।

 

अपराध की जारी रहने पर

कुछ अपराध हैं, जो लगातार चालू रहते हैं, ऐसे मामलों में समय सीमा उस क्षण से लागू होगी, जिसके दौरान अपराध चालू रहता है।

इन बातों के होते हुए भी यदि न्यायालय का समाधान हो जाए कि देरी का उचित स्पष्टीकरण है तो न्याय हित में न्यायालय अपराध का संज्ञान ले सकता है।

 

धारा 498-ए तथा धारा 406 सीआरपीसी में मामला हो तो

धारा 498-ए तथा धारा 406 सीआरपीसी में अधिकतम दंड तीन वर्ष कारावास है। इस मामले में अपराध की तारीख से तीन साल की मुद्दत में न्यायालय मामले का प्रसंज्ञान ले सकता है।

इन मामलों में कभी-कभी अपराध लगातार चालू रहने वाला होता है। ऐसे हालात में जिस तारीख तक अपराध चालू रहता है, उससे तीन साल की अवधि के भीतर न्यायालय इन अपराधों का प्रसंज्ञान से सकता है।

 

अभियुक्त गिरफ्तार हो जाए तब

एक बात और है जो इस संदर्भ में एक और जानकारी देना ठीक होगा।

कुछ मामलों में अभियुक्त गिरफ्तार हो जाता है, लेकिन पुलिस आरोप पत्र दाखिल नहीं करती है।

सामान्यतः ऐसे मामलों में आरोप पत्र प्रस्तुत करने की समय सीमा गिरफ्तारी के दिन से 60 या 90 दिन की अपराध हेतु दिए जा सकने वाली सजा के मुताबिक होती है।

यदि इस अवधि में पुलिस आरोप पत्र दाखिल नहीं करती है, तो अभियुक्त को जमानत पाने का अधिकार मिलता है।

 

विशिष्ट मामलों में आरोप पत्र पेश करने की छूट

कुछ विशिष्ट मामलों में पुलिस को आरोप पत्र पेश करने के लिए 180 दिनों की छूट मिलती है।

यदि इन विशिष्ट मामलों में पुलिस 180 दिन के अंदर आरोप पत्र पेश करने में नाकायाब रहे तो आरोपी को जमानत पाने अधिकार मिलता है। इससे लेकिन मुकदमा खत्म नहीं होता है।

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