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हथियारों का कुटीर उद्योग – भाग 1

देशभक्तों का समाज है सिकलीगर

मध्यप्रदेश के कुछ जिलों में सिकलीगर नामक एक समुदाय है, जो अपने घरों में रिवाल्वरें और पिस्तौलें बड़ी खूबी से बनाता है। आलम तो यह है कि इनके बनाए हथियार उत्तरप्रदेश और बिहार के माफिया भी खरीदने के लिए चले आते हैं क्योंकि ये हथियार फैक्ट्री मेड के मुकाबले सस्ते होते हैं, लेकिन उतने ही भरोसेमंद माने जाते हैं। भले ही कानून बन गए हों, पुलिस की छापामारी जारी है, लेकिन सिकलीगर अपना पुश्तैनी कारोबार छोड़ नहीं पाते। इंडिया क्राईम के लिए देश के ख्यातनाम खोजी पत्रकार विवेक अग्रवाल ने इस इलाके के अंदर तक जाकर पूरी पड़ताल की। इंडिया क्राईम की यह बेहद खास और एक्सक्लूसिव रपट –

 

यह जानकारी मिलती है कि सिखों की एक धारा मध्यप्रदेश के खरगोन, खंडवा और बुरहानपुर जिलों में पाई जाती है, जिसे सिकलीगरों के नाम से पहचाना जाता है। सिखों के पहले गुरू ने मुस्लिम हमलावरों से देश को बचाने के लिए जो सेना बनाई थी, उसे हथियारों की आपूर्ति के लिए कुछ बंजारों को अमृत छका कर सिख बना लिया। ये सिख सेना के लिए हथियार बनाने लगे। उनके बनाए हथियार इतने शानदार और उपयोगी होते थे कि उनके बल पर सिख सेना दुश्मनों के दांत खट्टे कर देती थी।

कालांतर में जब सिख सेना खत्म हो गई तो ये हथियार बनाने वाले बंजारे सिख भी बेरोजगार हो गए। उन्होंने हथियार बनाने का पेशा जारी रखा, जो अब अवैध हो गया है। और यही उनके लिए बड़ी परेशानी बन चला है। बुरहानपुर के इतिहासकार, डॉ. मोहम्मद शफी का कहना है कि इस समाज की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि इतना पुराना और शानदार इतिहास होने के बावजूद वे उपेक्षित और अभिशप्त जीवन जीने के लिए मजबूर हैं। सिकलीगर समाज के नेता और ढाबे के मालिक दीवान सिंह का कहना है कि उनका समाज तो सिक्ख गुरूओं के आदेश पर सेना के साथ कदम से कदम मिला कर चला था। तभी से हथियार बनाना उनका पेशा बन गया। हम तो उसके पहले तक खेती-बाड़ी के उपकरण और घरेलू काम में आने वाले साजो-सामान ही बनाते थे।

 

अब इन जिलों में सिकलीगरों के हर गांव और घर में बनते हैं हथियार। वे बनाते हैं देसी कट्टे, पांच, छह या सात राऊंड के रिवाल्वर और छह से 30 गोलियों की मैगजीनों वाली स्वचालित पिस्तौलें। एक देसी कट्टा बनाने में इन्हें लगते हैं दो दिन, तो बेहतरीन किस्म की पिस्तौल बनाने में मात्र पांच से दस दिन। और ये हथियार बिक जाते हैं दो सौ से लेकर बीस हजार रुपए तक की कीमत पर।

 

इंडिया क्राईम ने धार और बुरहानपुर के सिंघाना और पाचौरी गांवों में जब सिकलीगरों के कामकाज का जायजा लिया तो पाया कि बीस-तीस रुपए के कबाड़ को घर में ही पिघला कर बनाए लोहे को ठोंक-पीट कर हथियार बनाए जाते हैं। पांच साल के बच्चे से साठ साल के बुजुर्ग तक सब इसी काम में लगे हैं। ऐसा लगता है, मानो पूरे इलाके में हथियारों का कुटीर उद्योग चल रहा है।

 

आगामी अंक में पढ़ें व देखें – कबाड़ से चमत्कार

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