Cyber Crime

CYBER SLAVES 002: कंबोडियाई साईबर गुलाम केंद्रों में 12 घंटे काम, बिजली के झटके, खाने में कीड़े-मकोड़े

विवेक अग्रवाल

मुंबई, 08 अप्रैल 2024

कंबोडियाई साईबर गुलाम केंद्रों में आईटी पेशेवरों पर प्रताड़नाओं को जुल्म की इंतेहा होती है। उनके 12 घंटे काम लिया जाता। टारगेट पूरा न करने वालों को बिजली के झटके दिआ जाते हैं। जरा सी गलती पर बेतरह पिटाई होती है। वियतनामी खाने में जो कीड़े-मकोंड़ों की सब्जियां बनती हैं, वे भारतीय आईटी पेशेवरों को भी खाने में दी जाती हैं।

एक कमरे में 15 लोग

नोएडा समेत पूरे भारत से कंबोडिया भेजे आईटी पेशेवरों को अमानवीय हालात में कैद करके रखा जाता है।

एक कमरे में 15 या अधिक आईटी पेशेवरों को भेड़-बकरियों की तरह ठूंस दिया जाता है। इसी जगह पर सबको आपस में तालमेल बैठा कर रहना पड़ता है। सभी को बिना गद्दों के ही, फर्श पर सोना पड़ता है। कमरों में एसी नहीं लगे हैं, तो गर्मी और ऊमस से घुटन होने लगती है।

इन कमरों के बाहर पूरे परिसर में सीसीटीवी की निगरानी चौबीसों घंटे होती है।

भयावह हालात

साइबर ठग गिरोह के पंजे से छूट कर आए दादरी के चिटहेड़ा गांव के मूल निवासी फैजल सैफी ने कंबोडिया में फंसे भारतीय आईटी पेशेवरों की दयनीय हालत का खाका खींचा।

फैजल के मुताबिक गौतमबुद्ध नगर के  लगभग एक दर्जन युवा आईटी पेशेवर कंबोडिया की राजधानी नोमपेह में बंदी हैं। इन सबको दादरी निवासी विनोद भाटी ने आईटी कंपनी में नौकरी के बहाने से कंबोडिया भेजा था। वहां पहुंचने परसभी को साइबर ठगी में गिरोहों ने धकेल दिया।

दिल्ली में काम कर रहे फैजल के मुताबिक भारत से गए लोगों को सबसे पहली मुश्किल तो स्थानीय खान-पान को लेकर होती है। पहली बात तो भारतीय युवकों को साईबर ठग गिरोह पूरी मात्रा में खाना भी नहीं देते हैं। इसके अलावा कंबोडियाई भोजन में कीड़े-मकोड़ों के बने पकवान आम हैं, जिन्हें कम से कम भारतीय तो नहीं ही खा सकते हैं। रोटी का तो दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं रहता है।

जब यह कंबोडियाई भोजन भारतीय आईटी पेशेवरों को परोसा जाता है, तो सबको ऊबकाई आती है। वे यह खाना मुंह में भी नहीं डाल पाते हैं।

पैजल के मुताबिक कुछ आईटी पेशेवरों ने तो कई दिनों तक केवल सलाद खाकर ही गुजारा किया। जो नॉनवेज खा सकते हैं, उनके लिए हालात फिर भी कुछ आसान रहते हैं।

विक्षिप्त साईबर गुलाम

फैजल के मुताबिक नोमपेह में 21 मंजिला इमारत की 16 वीं मंजिल पर उस फर्जी कंपनी का दफ्तर था, जिसमें उन्हें कथित तौर पर भर्ती किया था।

इस मंजिल पर भी अपने कमरे के अलावा इधर-उधर कही भी जाने की इजाजत नहीं थी।

वे बताते हैं कि भारतीय आईटी पेशेवरों को कड़ी निगरानी में रखा जाता है। ऑफिस के समय किसी को मोबाइल इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं होती है। ऑफिस के बाद भी उनकी मोबाइल हिस्ट्री पर निगरानी रखी जाती है। उनके मोबाईल हर दिन चेक किए जाते हैं। उनके सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर गतिविधियों पर नजर रखी जाती है।

इस लगातार निगरानी के कारण तमाम युवकों में मानसिक अवसाद और विकार की हालत पैदा हो जाती है। वे विक्षिप्तों जैसा बरताव करने लगते हैं।

दूतावास की चीनी गिरोहों से मिलीभगत

यह बयान उन खबरों के बीच आया है, जिनमें कंबोडिया में कई भारतीय नागरिकों के फंसे होने की जानकारी दी गई है। मुश्किल यह है कि भारत सरकार अपने तौर पर इन मामलों में न तो कार्रवाई कर रही है, ना ही भारतीय दूतावास इन फंसे हुए आईटी पेशेवरों की मदद के लिए आगे आता है।

कुछ अर्सा पहले कंबोडिया के शहर लाओस की एक गुलाम साईबर केंद्र से बच कर आए एक आईटी पेशेवर ने तो यहां तक आरोप लगा दिया था कि जब उन्होंने भारतीय दुतावास से उन्हें बचाने के लिए संपर्क किया, तो इसकी जानकारी किसी ने चीनी गिरोह को लीक कर दी। उसके बातद कई दिनों तक इन आईटी पेशेवरों के साथ भयावह यातनाओं और जुल्म का दौर चला। उन्हें पानी से भरे टैंकों में खड़े रहने लायक पिंजरों में 28 घंटों तक बिना खाना-पानी दिए रखा गया। कुछ आईटी पेशेवरों को कमरों में बंद करके बेतहाशा पीटा गया। कुछ को कई दो से तीन दिनों तक भूखा रखा गया। उन्हें करंट के झटके दिए।

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