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भाजपा के शासन में देश तानाशाही ओर अग्रसर

चीन में कम्यूनिज्म के नाम पर तानाशाही चल रही है और भारत लोकतंत्र के भेष में संघ प्रेरित पार्टी भाजपा के शासन में तानाशाही की ओर अग्रसर हो रहा है। कोरोना वायरस के प्रकोप से निबटने के तौर-तरीके इसका साफ संकेत दे रहे हैं। पूरे देश को लॉकडाउन कर दिया गया है, जिसकी जरूरत नहीं थी। लॉकडाउन उन क्षेत्रों के लिए होना चाहिए था, जहां बीमारी फैलने की स्पष्ट आशंका दिख रही थी। खास तौर से महानगरों में, बड़े शहरों में और जिन क्षेत्रों में कोरोना संक्रमण फैलने की संभावना दिखती, वहां लॉकडाउन किया जा सकता था। दूर-दूर बसे गांवों में, रेगिस्तान में, जंगलों में, बाग-बगीचों में, नदियों में, झीलों में, खुले समुद्र तट पर और हाईवे पर लॉकडाउन का कोई मतलब नहीं है, फिर भी ये लॉकडाउन के दायरे में हैं।

हवाई यात्राएं रोकी गईं, सार्वजनिक सड़क परिवहन रोका गया, ट्रेनें बंद कर दी गईं, निजी वाहनों का सड़कों से गुजरना रोक दिया गया, यह उचित हो सकता है और इसका औचित्य समझा जा सकता है लेकिन बीमारों को अस्पताल ले जाने वाले वाहनों को रोकना, आवश्यक सामग्री का परिवहन करने वाले ट्रकों को रोकना कहां तक उचित है। ट्रक चालकों के लिए हाईवे के किनारे बने ढाबों को बंद करना हास्यास्पद और हाहाकारी कदम साबित हो रहा है। इसी तरह उद्योगों का, व्यावसायिक संस्थानों का, दुकानों का भी वर्गीकरण किया जा सकता था कि कहां लॉकडाउन बहुत जरूरी है और कहां इसे शिथिल किया जा सकता है। ऐसा नहीं किया गया। अचानक लॉकडाउन करने से हर तरह के काम-धंधों पर अचानक पूर्ण विराम लग गया। लाखों की संख्या में लोग एक झटके में अस्थायी तौर पर बेरोजगार हो गए। यह बेरोजगारी आगे चलकर स्थायी होने की आशंका बन रही है। 

बड़ी संख्या में लोग गांवों से शहरों में काम धंधा करने पहुंचते हैं और वहां अस्थायी तौर पर रहते हैं। शहरों में पैसे कमाकर अपने गांव-घर भेजते हैं, जिससे उनकी सामाजिक व्यवस्था चलती है। यह व्यवस्था अचानक ठप कर दी गई। शहरों में काम धंधे बंद हो जाने से जो लोग अपने गांव लौट सकते थे, उनके सामने जबरदस्ती की मुसीबत पैदा हो गई। उन्होंने किसका क्या बिगाड़ा था? जिनकी जिंदगी ही दिहाड़ी पर चल रही थी, वे अब भूखे मरने की कगार पर हैं और प्रधानमंत्री अपील कर रहे हैं कि देश में कोई भूखा नहीं रहना चाहिए। प्रधानमंत्री को ऐसी बात क्यों करनी चाहिए जो किसी भी तरह व्यावहारिक न हो।

यह लॉकडाउन तीन मई तक है। इसके बाद क्या होगा? कोरोना संक्रमण के मामले कम होने के कोई आसार नहीं है। लॉकडाउन के पहले दिन जितने मामले थे, उससे गई गुना ज्यादा मामले तीन मई के बाद दिखेंगे। क्या उसके बाद फिर लॉकडाउन जारी रहने की घोषणा होगी? ऐसा हो सकता है, क्योंकि आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अब विकट तानाशाह की भू्मिका में दिखाई देने लगे हैं। लॉकडाउन को सफल बनाने का काम पुलिस को सौंप दिया गया है और पुलिस के जवान हर किसी को डंडे की धौंस दिखाने लगे हैं। कई लोग बेवजह पिट रहे हैं। लोगों के वाहन जब्त किए जा रहे हैं और उनको छोड़ने के नाम पर वसूली हो रही है। पुलिस अधिकारियों को जनता से उगाही करने का यह नया धंधा मिल गया है।

एक मित्र को आशंका है कि आने वाले समय में लॉकडाउन को पुख्ता बनाए रखने के लिए सेना का इस्तेमाल किया जा सकता है और कुछ कथित संक्रमण ग्रस्त इलाकों में घर से बाहर निकलने वालों को सीधे गोली मारने के आदेश दिए जा सकते हैं। यह एक भयानक आशंका है। देश में स्वास्थ्य व्यवस्था एकदम लचर है। कई चिकित्सक समाजसेवा की जगह धनार्जन को प्राथमिकता देते हैं। पुलिस पूरी तरह आम जनता को धौंस पट्टी में रखने का एक कारगर उपकरण बन चुकी है। सरकार के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जैसे तैसे काम कर रहे हैं। इस स्थिति में आगे चलकर देश की क्या हालत होने वाली है, कोई कल्पना कर सकता है? क्या एक तानाशाह को पूरी तरह देश संभालने का ठेका दे दिया जाना उचित है? क्या भारतीय नागरिकों में कोई बुद्धि नहीं? क्या प्रधानमंत्री के अलावा मंत्रिमंडल के अन्य सदस्य बुद्धिहीन हैं? क्या न्यायपालिका को कंधे पर ढोने वाले न्यायाधीश देशवासियों के साथ न्याय कर पा रहे हैं? और जिन लोगों को भारतीय नागरिकों ने चुनाव में मतदान के माध्यम से संसद या विधानसभाओं में भेजा है, उन्हें अपने मतदाताओं के हित-अहित की कोई चिंता है?

इस समय देश विकट स्थिति में है और सिर्फ नरेन्द्र मोदी की बुद्धि के भरोसे चल रहा है। मोदी का गुणगान करने के लिए असंख्य उपाय किए जा रहे हैं। गीत रचे जा रहे हैं। भाजपा का आईटी सेल पूरी ताकत से सक्रिय है। मीडिया का हर कोना मोदी से प्रभावित है। क्या कोई देश के बारे में सोच रहा है? जिनके मन में देश का थोड़ा सा भी ख्याल है, उन्हें सोचना चाहिए कि इतनी देर न हो जाए कि आने वाली पीढि़यों को एक लंबी गुलामी भुगतनी पड़े। ऐसा न हो कि भविष्य में चीन और भारत में कोई अंतर ही न रह जाए।

ऋषिकेश राजोरिया

लेखक देश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। देश, समाज, नागरिकों, व्यवस्था के प्रति चिंतन और चिंता, उनकी लेखनी में सदा परिलक्षित होती है।

(लेख में प्रकट विचार लेखक के हैं। इससे इंडिया क्राईम के संपादक या प्रबंधन का सहमत होना आवश्यक नहीं है – संपादक)

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