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मुंबई पुलिस का दाऊद को पकड़ने का प्लान कैसे हुआ फेल!

इंद्रजीत गुप्ता

मुंबई, 04 अप्रैल 2024

देश के सबसे बड़े गिरोह सरगना दाऊद इब्राहिम के पीछे तमाम खुफिया और जांच एजंसियां लगी हैं लेकिन उसे पकड़ने या मार गिराने में हर बार नाकामयाब होती आई हैं। इसी तरह मुंबई पुलिस की सीबीसीआईडी टीम ने एक ऐसी चाल चली कि दाऊद इब्राहिम लगभग शिकंजे में आ ही गया था। इस गोपनीय योजना के बावजूद दाऊद बच निकला क्योंकि उसे वक्त पर इसका पता चल गया था कि उसके पीछे लगा आदमी मुंबई पुलिस का जासूस है।

मुंबई पुलिस की सीबीसीआईडी के एक अधिकारी ने दाऊद इब्राहिम के अहमद सेलार हाई स्कूल में पढ़ाने वाले एक टीचर को पकड़ा, जिनके साथ उसके गहरे ताल्लुकात थे। दाऊद को ये टीचर पढ़ाते थे, जिनका नाम था उस्मानी साहब। दाऊद उनकी बहुत इज्जत करता था। उस्मानी साहब मूल रूप से आजमगढ़ उत्तरप्रदेश के रहने वाले थे।

उस्मानी साहब के पास काफी दिनों से एक मौलाना आने लगे थे। वे धीरे-धीरे उस्मानी साहब से ताल्लुकात बढ़ाते रहे। वे जहां दिख जाते, उनसे दुआ-सलाम करते, मौका-बेमौका उनसे मिला करते। यह मौलाना असल में सीबीसीआईडी का एक अफसर था। वह चूंकि बाकायदा मुसलिम मौलाना का वेश धारण कर दाढ़ी-मूंछ बढ़ाए, टोपी लगा कर घूमता था, इसलिए उस्मानी साहब भी गच्चा खा गए।

मौलाना ने कुछ महीने बाद उस्मानी साहब से कहा कि मेरा एक मदरसा है, जिसकी हालत बहुत खस्ता हो गई है। उसकी मरम्मत की जरूरत है। लोग चंदा नहीं दे रहे हैं। कुछ रकम का बंदोबस्त हो जाए, तो मेरा मदरसा अच्छा हो जाता। ऐसी ही बातें सीबीसीआईडी का खुफिया अफसर लगातार उस्मानी साहब से करता रहा।

एक दिन मौलाना ने उस्मानी साहब से कहा कि मैं दुबई जा रहा हूं। आप अगर एक चिट्ठी लिख देते, तो मेरे मदरसे का कुछ काम हो जाता। उस्मानी साहब लेकिन चिट्ठी लिखना नहीं चाहते थे। मौलाना ने अब उस्मान साहब को कुछ दूसरे लोगों के जरिए भी दबाव बनाना शुरू कर दिया। इस दबाव के कारण उस्मानी साहब ने एक दिन तंग आकर मौलाना को एक चिट्ठी उर्दू में लिख थी।

वह चिट्ठी लेकर मौलाना दुबई चला गया। अब मौलाना दाऊद के ठिकाने पर पहुंचा। उसने उस्मान साहब की चिट्ठी दाऊद के कारिंदों को दिखाई। उसे किसी ने दफ्तर के अंदर आने नहीं दिया। उसे बाहर ही एक जगह बैठा दिया। एक कारिंदा चिट्ठी लेकर दाऊद के पास गया। दाऊद ने चिट्ठी पढ़ी, जिसमें लिखा था कि इनके मदरसे के लिए माली इमदाद की जरूरत है, हो सके तो इनकी मदद करें।

दाऊद को अपने टीचर की लिखावट याद थी, तो उसे भरोसा हो गया कि चिट्ठी उस्मान साहब ने ही लिखी है।

दाऊद ने चिट्ठी लाने वाले के बारे में तफ्तीश की। कारिंदे ने बताआ कि उसे बाहर बैठा रखा है।

अब दाऊद ने कहा कि उस आदमी को जितने पैसे चाहिए दे दो।

कारिंदे ने कहा कि उस आदमी को आपके पास अंदर भेज दूं क्या?

दाऊद ने कहा कि नहीं उसे बाहर ही रहने दो। बाहर से बाहर ही रवाना कर दो।

दाऊद का कारिंदा नकली मौलाना के पास गया। उसकी मांगी रकम सौंप दी।

नकली मौलाना का तो मंसूबा पूरा हुआ नहीं लिहाजा उसने कारिंदे से कहा कि मुझे दाऊद इब्राहिम से मिलना है। जिसने मेरी इतनी मदद की, उसका शुक्रिया अदा करना चाहता हूं।

कारिंदे ने कहा कि आपका काम हो गया है, तो उनसे मिलने की आपको जरूरत नहीं है। आप पैसे लीजिए और यहां से जाइए।

इस तरह दाऊद उस नकली मौलाना से नहीं मिला। यह बात बीते कुछ वक्फा हो गया।

एक दिन उस्मानी साहब स्कूल में पढ़ा कर बाहर निकल रहे थे। तभी एक शख्स उनके पास आया। उनसे दुआ-सलाम की। उस्मानी साहब को वह शख्स एक चिट्ठी पकड़ा कर चला गया।

जब उस्मानी साहब ने चिट्ठी खोल कर पढ़ी, तो दंग रह गए। उर्दू में लिखी यह चिट्ठी दाऊद इब्राहिम की थी। दाऊद ने लिखा था कि मास्टरजी आपने अपने शगिर्द को तो बहुत अच्छी तरह से पहचान रखा है। मैं आपकी बहुत इज्जत करता हूं। आपने जिस शख्स को भेजा था, उसे आप पहचान नहीं पाए। वह मुंबई पुलिस की सीबीसीआईडी का आदमी था।

यह चिट्ठी जब उस्मानी साहब ने पढ़ी, तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने खत लाने वाले आदमी को आसपास तलाशा लेकिन वह तो अब उन्हें क्या मिलना था।

उस्मानी साहब इंतकाल फरमा चुके हैं लेकिन उनका यह किस्सा आज भी डोंगरी के कुछ लोग कहते-सुनते हैं।

यह तो सही है कि दाऊद इब्राहिम को पकड़ने की मुंबई पुलिस जितनी कोशिश करती रही, वह दुबई में रह कर भी पुलिस से एक कदम आगे चलता रहा। यही कारण है कि भारतीय पुलिस आज तक दाऊद को भारत नहीं ला सकी है।

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