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क्या मोदी सरकार की नीति से देश खोखला नहीं हो रहा है?

सात वर्ष पूर्व विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था के रूप में विराजमान भारत किस तरह खोखला हो रहा है, क्या कोई समझ पा रहा है? हिंदी मीडिया इस खतरनाक खेल को या तो समझ नहीं पा रहा है या फिर वह सरकार के अनुकूल बने रहने के लिए अपने कर्तव्य का पालन नहीं कर रहा है। इनमें हिंदी के अखबार भी शामिल हैं, जिनसे थोड़ी-बहुत उम्मीद जनता करती रहती है। वे भी ध्यान नहीं दे रहे हैं। हाल ही सरकार ने विज्ञप्ति जारी की है कि भारत का ऑर्गनिकि फूड प्रोडक्ट्स का एक्सपोर्ट एक वर्ष में 51 फीसदी बढ़कर एक बिलियन डॉलर पार कर गया है। रुपए में जोड़ें और हिंदी में समझें तो भारत से पिछले एक वर्ष (2020-21) में 7078 करोड़ रुपए की खाद्य वस्तुएं निर्यात की जा चुकी हैं।

अंग्रेजी में छपने वाले बिजनेस अखबारों ने यह खबर छापी है, लेकिन हिंदी अखबार कोरोना संक्रमितों और मृतकों की संख्या में उलझे हुए हैं। इस विज्ञप्ति को हम बोलचाल की भाषा में समझें तो जो प्राकृतिक वस्तुएं जमीन से पैदा होती है, उसे अंग्रेजी में ऑर्गनिक प्रोडक्ट कहा जाता है। इसमें फल-सब्जी, अनाज, सूखे-मेवे, मसाले, तिलहन, दालें, खाद्य तेल, चाय, शक्कर, औषधीय वनस्पति आदि शामिल है। समझा जा सकता है कि भारत की उपज को आर्थिक लाभ के लिए बड़े पैमाने पर विदेश भेजा जा रहा है। इसमें महंगाई बढ़ने का रहस्य भी छिपा हुआ है। पिछले वर्ष कोरोना वायरस के कारण भारत सहित कई देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी। उसके बाद से पूरी दुनिया में खाद्य वस्तुओं की भारी मांग है। खाद्य उत्पादन में भारत को ईश्वरीय वरदान मिला हुआ है। यहां खाने-पीने की चीजों की कोई कमी नहीं है।

अगर कोई गुजरात के बंदरगाहों का जायजा ले तो स्पष्ट होगा कि किन-किन वस्तुओं से लदे हुए जहाज रवाना हो रहे हैं। जिन देशों को भारत से खाद्य वस्तुएं निर्यात की गई हैं, उनमें अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप, कनाडा, आस्ट्रेलिया, स्विटजरलैंड, इजराइल, दक्षिण कोरिया सहित 58 देश शामिल हैं। एक तरफ डंका बज रहा है कि भारत से निर्यात बढ़ रहा है, दूसरी तरफ भारतीय नागरिक खाद्य वस्तुओं की महंगाई झेल रहे हैं। इससे निर्यातकों को कमाई हो रही है। शायद मोदी सरकार भी यही चाहती है कि यहां के लोग तरसते रहें और भारत की जमीन से पैदा होने वाली वस्तुएं बेचकर उसके चहेते निर्यातक कमाई करते रहें।

जो समझते हैं कि महामारी के दौर में खाद्य वस्तुओं का पिछले वर्ष से 51 फीसदी ज्यादा निर्यात कोई पराक्रम की बात है, वे यह नहीं समझते कि इस नीति से देश के नागरिकों की सेहत पर क्या असर पड़ रहा है। देश की उपज को इस तरह कमाई के लिए विदेशों को बेचा जा रहा है, दूसरी तरफ देश के भीतर कोरोना महामारी को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। उसमें भी रुपयों का खेल चल रहा है। जहां 100 करोड़ लोगों को टीका लगाने की अनिवार्यता बना दी गई है, वहीं वैक्सीन बनाने वाली कंपनियों को दाम तय कर खुले बाजार में बेचने की छूट दे दी गई है।

अगर सभी नागरिकों को वैक्सीन लगाना जरूरी है, तो यह केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है। उसे अपने स्तर पर इतनी वैक्सीन खरीदनी चाहिए और राज्यों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में सौंप देना चाहिए। इससे पहले भी देश में टीकाकरण हुए हैं। पोलियो की ड्रॉप बच्चों को पिलाई गई है। इसके लिए कभी भी नागरिकों से पैसा नहीं वसूला गया। मोदी के शासन में कई लोगों पर अनिवार्य रूप से वैक्सीन लगवाने के लिए पांच सौ से हजार रुपए तक खर्च करने की मजबूरी लादने की तैयारी हो गई है। देश के नागरिकों से कोरोना की दवाइयों के नाम पर पहले ही अच्छी-खासी कमाई की जा रही है। ऑक्सीजन का संकट पैदा कर दिया गया है। पाबंदियों के नाम पर अलग वसूली चल रही है। जो मास्क नहीं लगा रहै है, उस पर जुर्माना। जो शादी जैसे कार्यक्रम कर रहा है, उनसे भी वसूली।

मोदी सरकार की उपलब्धि यह है कि उसने देश की मुद्रा को तेजी से खींचने की प्रणाली स्थापित कर दी है। नोटबंदी के बाद से देश में उद्यमीयता का सिलसिला ठप है। स्वरोजगार करना बहुत मुश्किल हो गया है। साधारण नागरिक को जीविकोपार्जन के लिए किसी न किसी का गुलाम बनकर काम करने की मजबूरी पैदा कर दी गई है। पेट भरने के लिए जरूरी चीजों का एक्सपोर्ट किया जा रहा है और पीआईबी शानदार तरीके से विज्ञप्ति जारी करता है कि इंडियाज एक्सपोर्ट ऑफ ऑर्गनिक फूड प्रोडक्ट्स रोज बाई फिफ्टी वन परसेंट इन टर्म्स ऑफ वेल्यू यूएसडी 1040 मिलियन (रुपीज 7078 करोड़) ड्यूरिंग फाइनेंशियल इयर 2020-21 कंपेयर्ड टु प्रीवियस फिस्कल (2019-20)

अंधभक्त समझते हैं कि यह मोदी सरकार का कीर्तमान है। हकीकत यह है कि पिछले साल जब पूरा देश कोरोना से जूझ रहा था, उस समय मोदी सरकार की सदारत में लालची सौदागर देश की रसोई का सामान विदेशों को बेचने में लगे हुए थे। जिन वस्तुओं का आक्रामक रूप से निर्यात किया जा रहा है, क्या उनकी जरूरत देश के भीतर बिलकुल नहीं है? सरसों का तेल दो साल पहले तक 50 से 80 रुपए किलो था, जो अब 150 रुपए किलो पार कर गया है। इसी तरह पिछले एक-दो साल में हर खाद्य वस्तु की कीमत डेढ़-दो गुना बढ़ गई है।

मोदी सरकार अर्थव्यवस्था का बहाना बनाती है और भाजपा के रणनीतिकार भोले-भाले भारतीय नागरिकों को हिंदुत्व के नाम पर गोलबंद करने में लगे हुए हैं। समाज में नफरत के बीज बोए जा रहे हैं। इसके पीछे शायद यही नीति है कि लोग आपस में बिना वजह आपस में लड़ते रहें और देश की संपदा को लूटने का सिलसिला जारी रखा जाए। कोरोना वायरस अपनी जगह है, लेकिन उसके पीछे जो खतरनाक इरादे हैं, उनको कोई समझ पा रहा है या नहीं? क्या मोदी सरकार की नीति से देश खोखला नहीं हो रहा है?

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