Vivek Agrawal Books

Books: अंडरवर्ल्ड बुलेट्स: मुंबई माफिया के अजब-गजब किस्से

वह हमेशा की तरह ही मायानगरी मुंबई की बेहद उमस भरी और सड़कों पर भारी भीड-भाड़ वाली शाम थी। जौहरी बाजार के उस पुराने “करू पांडे” के साथ कार में वीटी से गोरेगांव तक का सफर तय हो रहा था। उनका मुंहबोला बेटा कार चला रहा था। पुराने वक्त की बातें छिड़ीं तो हाजी, करीम, वरदा, ढोलकिया, मिर्ची, टाईगर, दाऊद के बीच डोलने लगीं।

उन्होंने बलजीत सिंह उर्फ बल्लू की गालियों, दिल्ली की दावत पर नशे में पेशाब करने, दुबई के तरणताल में नहाते बड़े सरगनाओं और सिपहसालारों के बावजूद मूत्रत्याग, अनीस के दफ्तर के सामने एक दुकान के बाहर बंधे बकरे को बेवजह हलाक करने जैसे किस्से सुनाए… मैं तो हतप्रभ रह गया।

अरे! ये सब तो मुझे पता ही न था। ये मुझे मालूम न था लेकिन इतना रोचक था, तो जाहिरा तौर पर उन्हें भी पसंद आएगा जो इस तरह के किस्से और किताबें खोज-खोज कर पढ़ते हैं। बस, उसी क्षण मैंने तय कर लिया कि ऐसे छोटे-छोटे मनोरंजक, लोमहर्षक या छुपे हुए किस्से एक जगह समेटने चाहिए।

1992, जबसे लेखक पत्रकारिता करने मुंबई आए, तबसे आरोप झेलते रहे कि वे “अंडरवर्ल्ड को ग्लैमराईज” करते हैं। उनके संपादक से पुलिस अफसरान तक, सबने ये ताना दिया। कुछ दोस्त भी इसमें शामिल हो चले। लेखक ने भी सोचा कि चलो भाई, कुछ और लोग, कुछ और दिन, कुछ और ताने दे लेंगे। क्या फर्क पड़ता है। मुंबई के संगठित गिरोहों की किस्सागोई का ये पसंदीदाद काम लेखक ने छोड़ता गवारा ना किया।

लेखक अपने और सबके स्मृति कोष खंगालने में उसी दिन से जुट गए। दोस्तों, मुखबिरों, वर्तमान और पुराने पुलिस अधिकारियों, कस्टम्स अफसरान, पत्रकारों, कारोबारियों, उद्योगपतियों, सजायाफ्ता मुजरिमों, जेलों या विदेशों से वापस लौटे या सेवानिवृत्त गिरोहबाजों-प्यादों, मटका-सट्टा अड्डा मालिकों और बुकियों का दिमाग खाने लगे। नए-नए किस्से सामने आने लगे। उन्हें लेखक कलमबद्ध करने लगे।

सन 1993 से मुंबई माफिया पर पत्रकारिता और सघन शोध के चलते दो पुस्तकों की तैयारी लेखक करते आ रहे थे। उन्होंने तय किया कि उनमें से एक का प्रकाशन कुछ अर्से के लिए स्थगित करेंगे ताकि पहले ये किस्सागोई सामने आ सके।

उनके मन में आया तो ऐसा किया भी…

अब यह आपके हाथों में है। हाजी से बंटी तक भूमिगत संसार से जुड़े ढेरों छोटे-बड़े किस्सों का ये जखीरा मैंने यहां उंडेल दिया है। ये पढ़ते हुए आपको शायद कभी लगे कि तमाम बातें उन लोगों के मुख से आई हैं, जो किसी न किसी वजह से स्याह सायों के संसार से संबद्ध रहे हैं। लेखक मान कर चलता हूं कि वे गलतबयानी नहीं कर रहे थे। ये बात और है कि विगत डेढ़ दशक में ये किस्से, कब, कहां, किसने, किन हालात में, कितनी देर तक लेखक से साझा किए हैं, वे तयशुदा नहीं बता सकते। जिनके बारे में पता था, उनकी पहचान गोपनीय रखते हुए कूट संकेतों में, इन किस्सों को पेश करते गए।

इसे इतिहास का दर्जा तो कभी नहीं मिलेगा क्योंकि ये किसी नेता, राजा, राष्ट्र, समाज से जुड़ा नहीं है। फिर भी लेखक पुरजोर वकालत करते हैं कि ये “अपराध जगत का इतिहास” है। इतिहास इसलिए क्योंकि यह इसी समाज और देश-दुनिया का हिस्सा है। उन सबसे भी जुड़ा है, उन सबको प्रभावित भी करता है, जिसे हम अवाम कहते हैं, उसका नेतृत्व कहते हैं। तो हर वो घटना जो देश-समाज-नागरिकों को प्रभावित करती है, इतिहास है, तो यह भी “अपराध जगत का इतिहास” ही है।

खैर, ये मुद्दा उतना जरूरी नहीं, जितना ये समझना कि किताब का नाम “अंडरवर्ल्ड बुलेट्स” क्यों है। अंडरवर्ल्ड तो इसमें है ही… लेकिन उसके छोटे-छोटे मारक किस्सों के लिए माफिया की सबसे संहारक मददगारों “बुलेट्स” अर्थात गोलियों या कारतूसों का इस्तेमाल ही सही लगा। इस एक “कैसेट” याने किताब में कुछ ही बुलेट्स भरे हैं – याने किस्से दर्ज हैं।

किसी पुस्तक का आकार और पृष्ठ संख्या उसके लेखों या अध्याय की संख्या निर्धारित कर देते हैं, सो इसमें इतने ही किस्से समाहित करना मजबूरी थी।

किस्से (कुल 112)  
तस्करी का द्वारबखिया बंधुमस्तान साईकिल किराया शॉप
एक अधूरा ख्वाब : हाजी मस्तान की राजनीतिक पार्टीमस्तान के पत्रकार दोस्तहाजी का अरबी दोस्त
‘औरत और शैतान’ का थप्पड़बत्ती के नीचे, जेल के पीछेकरीम लाला बुलेट पर
जुआघरों का रक्षकपापामणि के पापकच्छी मस्तान
कच्छी ऊंटों के जूते!वरदा के नवरत्नदरिया का कीड़ा
दिलीप कुमार – मस्तान भेंडी बाजार मेंकिस्मत का गरीबरानी रूपमती का जलवा
मुंबई में दाऊद के दादा-पिताछठी फेल शाबिर और दाऊददाऊद-आलमजेब में दुश्मनी
दाऊद साबिर!?दाऊद का निकाहदाऊद की रोड सेफ्टी पेट्रोल
दाऊद का भाई बलवंतबटाटेवाले!उमर बख्शी की हत्या क्यों?
सत्तार तेलीकंप्लीट स्मगलर साबिरदाऊद और होटल आरती
बल्लू बादशाह…बल्लू का किस्साए दिल्लीबकरे को मुक्ति
बल्लू का किस्साए दुबईमटके में माफिया स्टाईल मर्डरएक दिन – तीन खुशियां
93 बमकांड का असली गुनहगारदाऊद की लाल सेनाफिरौती ढाई हजार की??!!
दारू का बम कनेक्शनकिलिंग मशीन : फिरोज कोंकणीदाऊद की दाऊद से मुलाकात
चार ‘महाराज’मारवाड़ी शूटरसलमान, नदीम, चंकी और अनीस
6 गोली खाकर जिंदा सुपारी हत्याराटाईगर से नाराज एजाजटोपी वाला अबू सालेम
ऑर्थर रोड जेल की ‘ऊंची दीवारें’पहला टाडाडी-कंपनी का “खबरी”
मौत के साए मंडराए…कंटेनर + जूता कारखाना + इंपेक्स + हवाला + सोना-हीरा तस्करी = केकेनौसैनिक द्वारा अदालत में हत्या
गुजरात अदालत में हत्याडी की जान बचीक्रिकेट मैच ने बनाया गिरोहबाज
दाऊद के जूतेडेथ मर्चेंट फेमेलीभयभीत बमबाज
नकली मन्या सुर्वे – असली हत्याअंडरवर्ल्ड की फेमेली नंबर 1हत्यारे को शहीद बनाने की साजिश
छोकरे ने किया डॉन का खेल खल्लास!पेरोल पर हफ्तावसूलीशॉटगन की सुपारी
सलीम फ्रूट की नकली वियाग्राबिल्डर का हसीना से पंगा2 साल – 24 जमानत
दाऊद तोड़ रहा है जहाज!डॉन को पकड़ना मुश्किल…“डी” का “बीपीओ”
मां से न मिल पाया अबूटायर पर चाकूबाजी का अभ्यासचुनाव आयोग की मुश्किल!
एक अधूरा ख्वाब : अबू भाई एमएलएडी-कंपनी का संप्रदाय!बदनसीब काजल
…शूटर हुआ जिंदा!छोटू… बटल्या… पाव किलो… डेढ़ फुटिया…शरीफ बमकांड आरोपी!?
दाऊद… और घोटाला!?“यादें” पर सट्टे की रोकराणा लाया महाराणा की समाधी
एसटी का इरादा : दाऊद की हत्याफजलू-बुदेश गठबंधनअली-राजन गठबंधन
एजाज-अली गठबंधनविदेश के बदले डी-कंपनी मेंनाई से बना हफ्ताखोर
फिल्मी हस्तियों का परकाला लकड़ावालाफिल्मी तकरार में मुठभेड़ विशेषज्ञबहन की शादी और सुपारी
शरद मरा तो पैसा डूबाशरद अण्णा की घोड़ा फिक्सिंगएजाज को रॉ ने भेजा?
पनीर चिली से मुठभेड़सालेम की फरारीहत्यारे राजन के, नाम सालेम का
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फोर सीटर है क्या?  

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