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क्या मरकजी जेहाद के बाद अब रमजानी जेहाद की तैयारी में सरकार?

मुसलमानों को कटघरे में खड़ा करने के लिए सरकार का एक प्रयोग होता है या फिर संयोग? कह पाना जरा मुश्किल जरूर लेकिन सोचने पर मजबूर कर देता है।

इसके पीछे दो तर्क है, पहला तो देश का मुसलमान बीजेपी ,कांग्रेस ,ओवेसी, आप, सपा, बसपा, टीएमसी में बंटा हुआ है, दूसरा इस समाज को बदनाम करने के लिए किसी बाहरी की जरूरत नही पड़ती।

हर समुदाय कि माफ़िक इस समाज में भी कुछ धर्म के ठेकेदारनुमा भेड़िये एक-एक कटिंग चाय, पान-गुटका के बीच जेहाद की दुहाई देते हुए सड़कों पर हरे झंडे का समंदर खड़ा करने में पीछे नहीं हैं।

खैर ये बात तो लंबी बहस का मुद्दा होगी। आज हम बात कर रहे हैं, उस मुस्लिम समाज की जो सत्ता और विपक्ष के हाथों का खिलौना बन चुका है।

महामारी के गंभीर दौर में जब लाकडाउन के उल्लंघन पर सख्त कार्यवाई चल रही है। जब देश कोरोना के खतरनाक स्टेज में हो! सरकार का हालांकि ये तर्क़ कि वो बाकी देशों से इस महामारी में काफी अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। सरकार के इस प्रदर्शन को फिलहाल भारत देख रहा है, समझ रहा है।

महामारी के ऐसे दौर में 2 दिन से लॉकडाउन में ढील के पीछे सरकार की मंशा असमंजस में डाल रही है।

पहले हम आपको सरकार द्वारा ढील की वजह बताते हैं, फिर मंशा के पीछे का असली गणित भी।

सरकार ने माहे रमज़ान से सभी दुकानें सशर्त खोलने की इजाज़त दे दी है। मॉल व मल्टी ब्रांड रिटेल को हालांकि इससे अलग रखा है। ‘पहले रमज़ान’ का मतलब आप समझ गए होंगे।

गौरतलब है कि मुस्लिम समाज का रमज़ान ऐसा महीना है, जिसमें अमीर मुसलमान दिल खोल कर खरीददारी करता है, जकात निकालता है। जकात का पैसा गरीब तक पहुँचता है। यानि देश का 20 करोड़ मुसलमान ईद की खरीदारी जरूर करता है।

आईए बाज़ार चलते हैं, जहाँ ज्यादातर कपड़ों से लेकर जूते की दुकानें बनिया समाज की हैं। कपड़ों और ब्रांडेड जूतों के मालिक ज्यादातर गुजरात से होते हैं, न कि मुस्लिम समाज के धन्ना सेठ।

आंकड़ों पर गौर करें, तो महज रमज़ान में ईद की खरीदारी साल भर की कमाई देकर चली जाती है। ये मुस्लिम समाज की अज्ञानता का सच है कि उनके लिए ईद से बढ़ कर कोई खुशी नही होती। मैं इसमे कोई इत्तेफ़ाक़ नही रखता।

हाँ आपके मन में अब प्रश्न उठ रहा होगा कि ईद में मुसलमान सबसे ज्यादा सड़कों पर अतिक्रमण करके सबसे ज्यादा दुकानें क्यों लगाते हैं?

तो इसका जवाब आपको यही दिए देता हूं कि सरकार ने कुछ शर्तों के साथ ढील में छूट दी है। इनमें वही दुकाने खुलेंगीं, जो संबंधित राज्य / केंद्र शासित प्रदेशों के स्थापना अधिनियम के तहत पंजीकृत होंगी।

यह भी नियम होगा कि दुकानों में सिर्फ आधा स्टाफ सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क के साथ मौजूद रहेगा।

वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम समाज फलों, सब्जियों, राशन, पानी, खजूर में थूक कर ,पेशाब करके बेच रहा था, तो सरकार की ही जमात ने ऐसे लोगों से बिना आधार कार्ड गले में लटके हुए बेचने पर तो बैन लगाया हुआ है। अगरचे कुछ मुस्लिम ऐसा सोच रहे है, तो गलत है। इसका कारण यह है कि आपके पास आधार कार्ड में खान, शेख, अंसारी सरनेम लिखा है।

गौर करने वाली बात है कि जिस मुसलिम समाज के पास 10वीं पास का सर्टिफिकेट नहीं है, क्या वो नगरपालिका के लाइसेंस के साथ धंधा करता होगा?

ऐसे में साफ है कि तुम्हें कुछ बेचने की इजाज़त नहीं होगी सिवाए खरीदारी करने के। आज जहां तुम्हारे जाने पर पाबंदी है, कल यही सरकार के पार्टी फंडर ईद कि ख़रीदारी के लिए अपनी-अपनी दुकानों में ईद मुबारक का बैनर लगा कर तुम्हारा स्वागत करेंगे। तुम भीड़ जुटा कर लॉकडाउन की धज्जियां उड़ाते रहना।

ये सरकार कि एक कूटनीति है। सरकार की ये नीति कोरोना जैसी महामारी के बीच अपने लोगों को, मुस्लिम समाज की आड़ में फायदा पहुँचाने की है। बदले में उनसे राहत फंड के नाम पर पार्टी मोटा फंड बटोरने की भी है।

ऐसा न होता तो आज इस ढील के विरोध पर भारत के टेलीविज़न चैनलों पर ‘रमज़ान बनाम कोरोना’ की जंग छिड़ी होती।

यहां सरकार की चाणक्य नीति का दूसरा पहलू भी है।

सरकार इस बात से इत्तेफाक रखती है कि रमज़ान के महीने में मुसलमान घर के अंदर नही रुक सकता।

कुछ कट्टर मुस्लिम मस्जिद के अंदर भी सीना तान कर माथा पटकने में गुरेज नही करेंगे।

लिहाज़ा इस ढील में अपनी नाकामियों का ठीकरा इस समाज के ऊपर फोड़ने में एक तीर से दो निशाने लगेंगे।

1: रमज़ान में उनके व्यापारियों की कमाई के चलते, जहां पार्टी को अच्छा-खासा फंड मिलने में आसानी होगी।

2: रमज़ान और ईद की खरीदारी पर उमड़ी भीड़, सरकार को कोरोना की तपिश से बचाने में मददगार साबित होगी।

सरकार को कुछ कहने की जरूरत नहीं होगी। आईटी सेल और भारत के तमाम खबरिया टीवी चैनल ईद के दिन एक खबर की सौगात लेकर आएंगे।

खबरिया चैनलों पर एक खबर की बारिश होगी कि रमज़ान भर मुस्लिम समाज सोशल डिस्टेंसिंग का उलंघन करता रहा, जिसके परिणाम में भारत कोरोना फलां स्टेज पार कर गया।

जी हाँ, ये आने वाले कल का कड़वा सच आज ही आपके सामने पेश है।

मोदी सरकार की वाहवाही करने वाले यही लोग तुम्हें ईद की शाम से ही घेरते नज़र आएंगे। सरकार को मालूम है कि भारत में तुमसे बड़े मूर्ख पूरी दुनिया में खोजने पर भी नही मिलेंगे।

उधर तुम चमचमाते कपड़ों और इत्र के साथ गले मिलते रहोगे, इधर तुम्हारे गलों पर कोरोना का फंदा लग चुका होगा।

भारत का खबरिया टीवी चैनलों के एंकरों की फौज खतरनाक कोरोना के स्टेज का ठीकरा तुम्हारे सर तब तक फोड़ चुके होंगे।

सरकार कि इस दोहरी नीति का विरोध करने वाला आज कोई नहीं क्योंकि इसे ही कहते है चाणक्य नीति।

सरकार जानती है कि उसका ये निशाना दोनों पहलू में सटीक बैठ चुका है।

रमज़ान के चलते विरोध का मुखर स्वर उठेगा नहीं, और उठा भी तो गेंद अपने पाले में पहले से है ही।

याद है ना कोरोना के सेकेंड स्टेज में बढ़ते आकंडों का ठीकड़ा मरकज़ जमातियों पर कैसे फोड़ा गया था।

अब तैयार रहिये जेहादी रमज़ान के नए नामकरण के लिए।

तुम जैसे जाहिलों को समझने का लेकिन कोई औचित्य नही बनता क्योंकि तुम करोगे अपने ही मन की। तुम्हे जाना है क्योंकि जन्नत में और हासिल करना है हूरें।

आश्चर्य है कि देश मे मौजूद लाखों मस्जिदों – मदरसों के ईमाम, बात-बात पर फतवा देने वाले आलिम और मौलवी खामोश क्यों हैं?

या रमज़ान और इस्लाम की कट्टरता उन्हें यहां तक खींच लाई है कि असलियत जानने और समझने में उन्हें तस्बीह का दाना गिनने से फुरसत नहीं।

क्या अपनी नासमझ क़ौम के लिए एक फतवा नही जारी किया जा सकता कि मुसलमान पुराने कपड़ों से ही ईद मनाएं, इफ्तारी में पकौड़े, नल्ला, नहारी, बिरयानी की जगह नमक-पानी से रोज़ा खोलें! ऐसा लेकिन संभव नहीं क्योंकि फतवा तभी जारी होता है, जब मौलवियों का अपना मकसद होता है।

तुम महज सिर्फ नाम के लिए मुसलमान बन कर रह गए हो। जमातियों ने तो अपनी जायज़-नाज़ायज़ हरकतों से जेहादी इस्लाम का नामकरण करवा ही दिया है। अब अगर तुम्हारे अंदर जरा भी गैरत बची होगी तो तुम गैर जमाती मुसलमान रमज़ान को जेहादी रमज़ान न बनने देना।

तुम इस बात से बेखबर तो होगे नहीं कि तुम्हे आईटी सेल कुत्ते की तरह सूंघता है। तुम गैस भी छोड़ते हो तो उसे बम बता कर पेश किया जाता है।

अभी भी वक़्त है, घरों के अंदर ही रह कर अल्लाह की इबादत करना। तुम्हारी एक भूल तुम्हें नल्ला, नहारी, काबली और खरीदारी के रिवाज में, तुम्हारा साथ तो जरूर देगी, लेकिन तुम्हारी हरकतें तुम पर इतनी भारी पड़ेंगीं कि भागने के लिए तुम्हें धरती कम पड़ेगी।

क्या सरकार के पास आने वाले कल के सच का कोई जवाब है या महज इसी रणनीति के चलते लॉकडाउन में ढील का निर्णय लिया है?

ये मेरी निजी राय है। इससे किसी धर्म-समुदाय को चोट पहुँचे तो मुझे क्षमा करें।

अब्बास नकवी

लेखक मुंबई के पत्रकार हैं।

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